राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ कभी उनके उप मुख्यमंत्री रहे सचिन पायलट की बगावत की जंग करीब महीने भर चलने के बाद गांधी परिवार के सीधे हस्तक्षेप से अब शांत हो गई है. सोमवार दोपहर राहुल गांधी से अपनी पीड़ा साझा करने के बाद सचिन पायलट ने बागी तेवर में नरमी दिखाई और शाम तक कांग्रेस आलाकमान ने उनकी शिकायतों की सुनवाई के लिए एक कमिटी बनाने का एलान कर दिया. सचिन पायलट गुट गहलोत सरकार को परेशान नहीं करेगा और बदले में बागियों पर कार्रवाई भी नहीं होगी. ऐसे में जानना दिलचस्प होगा कि राजस्थान की इस बाजी में कौन जीता कौन हारा और इस लड़ाई में आखिरकार किसे बलि का बकरा बनाया जाएगा?
बहुमत के जादुई आंकड़े से जीते गहलोत
जहां तक विजेता का सवाल है तो जाहिर है मुख्यमंत्री अशोक गहलोत स्वभाविक विजेता साबित हुए. सचिन और डेढ़ दर्जन विधायकों की बगावत के बावजूद उन्हें 200 सदस्यीय विधानसभा में 100 से ज्यादा विधायकों का समर्थन यानी बहुमत प्राप्त था. इस वजह से कांग्रेस पार्टी और आलाकमान उनके साथ मजबूती से खड़ा रहा. विधायक दल की दो बैठकों में उपस्थित नहीं होने पर आखिरकार सचिन पायलट को राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष और उप मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया. पायलट खेमे के दो विधायकों को मंत्री पद से हाथ धोना पड़ा तो एक विधायक को प्रदेश यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष पद से हटाया गया. इस दौरान अशोक गहलोत ने सचिन पायलट को निकम्मा तक कह डाला और बीजेपी के साथ मिलकर सरकार गिराने की साजिश करने आरोप लगा कर पायलट को लेकर अपनी पुरानी खुन्नस भी निकाल ली.
कानूनी पचड़े में उलझने के बावजूद गहलोत विधानसभा का सत्र बुलाने में भी सफल रहे जिसमें अगर पायलट खेमा अनुपस्थित रहता तो सभी की विधायकी भी खत्म हो जाती. आखिरकार गहलोत ने पायलट को झुकने पर मजबूर कर दिया और 14 अगस्त से शुरू होने वाले विधानसभा सत्र के चार दिन पहले पायलट ने राहुल गांधी से मुलाकात कर संघर्ष विराम कर दिया और कांग्रेस नेतृत्व को भरोसा दिया कि गहलोत सरकार को विधानसभा में बहुमत साबित करने में केंद्रीय नेतृत्व की मंशा के मुताबिक पूरी मदद करेंगे.
सचिन पायलट की हार नहीं हुई
तो क्या सचिन पायलट की हार हुई? जवाब है नहीं. गहलोत जीते जरूर हैं लेकिन पायलट हारे नहीं हैं. महीने भर तक बगावत का झंडा उठाए सुप्रीम कोर्ट तक ‘पार्टी के पक्ष’ के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले पायलट की घर वापसी सम्मानजनक तरीके से हुई है. कांग्रेस के एक बड़े नेता के मुताबिक सोनिया गांधी का स्पष्ट संदेश था “सचिन पायलट को जाने नहीं देना है.” गहलोत ने जब सार्वजनिक रूप से पायलट पर निजी हमले किए तो उन्हें ऐसा ना करने के निर्देश दिए गए. प्रियंका और राहुल गांधी ने पायलट को शुरू में भी काफी मनाने की कोशिश की थी. बातचीत टूटने के बाद भी प्रियंका गांधी पायलट के संपर्क में थीं. उन्हीं की कोशिशों के बाद राहुल गांधी ने सचिन पायलट से मुलाकात की और फिर पायलट की वापसी का रास्ता तैयार हो गया.
यानी एक तरफ जहां गांधी परिवार के निर्देश पर कांग्रेस पार्टी गहलोत के साथ खड़ी रही. वहीं अंदरखाने गांधी परिवार सचिन की नाराजगी दूर करने की कोशिशों में लगा रहा. प्रियंका गांधी राहुल-सचिन की मुलाकात में तो मौजूद थीं ही इसके बाद प्रियंका ने अहमद पटेल, केसी वेणुगोपाल के साथ देर शाम पायलट गुट के विधायकों के साथ बैठक कर उनको ‘सुनवाई’ का भरोसा दिया.
उच्चस्तरीय कमिटी दूर करेगी पायलट कैंप की शिकायत
कांग्रेस के उच्च सूत्रों के मुताबिक आने वाले दिनों में सचिन गुट के विधायकों को सरकार में अहम पद और नेताओं को संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जाएगी. सचिन पायलट को कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर पर बड़ा पद दिया जाएगा. सबसे महत्वपूर्ण यह है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी तीन नेताओं की कमिटी गठित करेंगी जो सचिन और नाराज विधायकों की मांगों पर उचित तरीके से विचार करेगी. यानी सचिन पायलट और उनके साथी विधायकों की गहलोत सरकार में उपेक्षा की शिकायत का समाधान यह उच्चस्तरीय कमिटी निकलेगी. बागियों पर कोई कार्रवाई नहीं होगी. माना जा रहा है कि भविष्य में उचित समय पर सचिन पायलट की राजस्थान में बतौर मुख्यमंत्री वापसी भी हो सकती है. हालांकि फिलहाल इस बाबत कोई चर्चा नहीं है.
गहलोत बनाम पायलट में प्रभारी की बलि चढ़ेगी
यानी गहलोत ने फिलहाल यह मुकाबला जीत लिया है लेकिन उनका प्रतिद्वंद्वी यानी सचिन हारा नहीं है और भविष्य में पासा पलट भी सकता है. लेकिन इस लड़ाई में राजस्थान के प्रभारी महासचिव अविनाश पांडे की बलि चढ़ाई जा सकती है. सूत्रों के मुताबिक प्रियंका गांधी और अहमद पटेल के सामने सचिन पायलट ने प्रभारी अविनाश पांडेय को हटाने की मांग रखी. पायलट ने कहा कि अविनाश पांडे ने एकतरफा अशोक गहलोत का साथ दिया. बैठक में मौजूद एक बड़े नेता के मुताबिक सचिन को उनकी मांग पर विचार का भरोसा दिया गया. आने वाले दिनों में अविनाश पांडे को राजस्थान से हटाकर किसी दूसरे राज्य की जिम्मेदारी दी जा सकती है.
इस लड़ाई में जैसे सचिन ने प्रदेश अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री का पद गंवाया वैसे ही भविष्य में जब अविनाश पांडे को हटाया जाएगा तो उसे अशोक गहलोत के नुकसान के तौर पर देखा जाएगा. हालांकि नए प्रभारी और उससे पहले उच्चस्तरीय कमिटी के सामने भी दोनों गुटों को साथ लाने की चुनौती होगी. पायलट तो घर वापस आ गए लेकिन उनके और गहलोत के बीच दरार जो महीने भर में खाई में तब्दील हो चुकी है उसे भरना बेहद कठिन रहने वाला है.