गरीबी का रामबाण इलाज भारत के इस गांव के पास, तभी चीन की इस पर बुरी नजर

गरीबी का रामबाण इलाज भारत के इस गांव के पास, तभी चीन की इस पर बुरी नजर

आजादी के बाद से कितनी सरकारें आई और गई लेकिन आज तक कोई भी गरीबी को जड़ से नहीं मिटा पाई। उधर अपने ही देश में एक ऐसा गांव होने का दावा किया जा रहा है जो गरीबी का रामबाण इलाज कर सकता है। कहते हैं कि लंबे समय से चीन भी इस गांव पर डोरे डाल रहा है। दरअसल, ये गांव ही इतना अद्भुत। गरीबी का रामबाण इलाज भारत के इस गांव के पास, तभी चीन की इस पर बुरी नजरकहते हैं कि इस गांव के बारे में जिसे पता चला वह वहां गया और फिर अमीर बन गया। उत्तराखंड से लगी चीन की सीमा पर स्थित इस गांव के बारे में ऐसी मान्यता है कि जो भी यहां आता है उसकी गरीबी दूर हो जाती है। यहीं नहीं इस गांव को श्रापमुक्त जगह का दर्जा प्राप्त है। इसलिए ऐसी मान्यता है कि व्यक्ति के यहां एक बार आने पर वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है।

लेकिन यहां नागरिकों ने चीन के भारी दबाव और लालच के बावजूद इस समूचे क्षेत्र को चीन के प्रभुत्व में आने से बचाकर भारत में शामिल कराने में अहम भूमिका निभाई।

10,248 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह भारतीय सीमा का अंतिम गांव है। पवित्र बदरीनाथ धाम से 3 किमी आगे भारत और तिब्बत की सीमा स्थित इस यह गांव का नाम भगवान शिव के भक्त मणिभद्र देव के नाम पर पड़ा था। इस गांव के साथ एक अनोखी कहानी भी जुड़ी है। जिसके बारे में जानकर आप हैरान रह जाएंगे। 
उत्तराखंड संस्कृत अकादमी, हरिद्वार के उपाध्यक्ष पंडित नंद किशोर पुरोहित के अनुसार डॉ. नंद किशोर के मुताबिक माणिक शाह नाम एक व्यापारी था जो शिव का बहुत बड़ा भक्त था। एक बार व्यापारिक यात्रा के दौरान लुटेरों ने उसका सिर काटकर कत्ल कर दिया।

लेकिन इसके बाद भी उसकी गर्दन शिव का जाप कर रही थी। उसकी श्रद्धा से प्रसन्न होकर शिव ने उसके गर्दन पर वराह का सिर लगा दिया। इसके बाद माना गांव में मणिभद्र की पूजा की जाने लगी। शिव ने माणिक शाह को वरदान दिया कि माणा आने पर व्यक्ति की दरिद्रता दूर हो जाएगी।

डॉ नंदकिशोर के मुताबिक मणिभद्र भगवान से बृहस्पतिवार को पैसे के लिए प्रार्थना की जाए तो अगले बृहस्पतिवार तक मिल जाता है। इस गांव में आने पर व्यक्ति स्वप्नद्रष्टा हो जाता है, जिसके बाद वह होने वाली घटनाओं के बारे में जान सकता है।

माणा से 24 किमी दूर भारत-चीन सीमा है। 1962 के भारत-चीन युद्ध तक माणा के भोटिया जनजाति निवासी जो मंगोल जाति के वंशज हैं, वे चीनी नागरिक समझे जाते थे। उन्हें भारतीय नागरिकता तक हासिल नहीं थी। सीमा पूरी तरह खुली और असुरक्षित थी। आर्मी तो दूर यहां कोई सुरक्षा बल भी तैनात न थे।

तब यहां से 50 किमी दूर जोशीमठ के आगे से यहां पैदल आना होता था। यहां के नागरिक बताते हैं कि तब भारत दूर और चीन नजदीक था और चीनी नागरिक खुलेआम यहां तक आते थे। यहां तक कि माणा के निवासी भी चीनी भाषा बोलते और समझते थे।

माणा में स्थित अंतिम भारतीय दुकान चलाने वाले भूपेंद्र सिंह टकोला बताते हैं कि इस सबके बावजूद भारत-चीन युद्ध में यहां के निवासियों ने चीन के दबाव और प्रलोभन को दरकिनार कर भारतीय फौज का साथ दिया और क्षेत्र को भारत में बनाए रखने में भूमिका निभाई।

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