आगरा में जिस ताजमहल को देख हम बरबस ही कह उठते हैं- वाह ताज! उस ताजमहल की रूह तो बुरहानपुर की ताप्ती नदी किनारे कहीं बसती है। मुगलों की छावनी रहे बुरहानपुर को यह अफसोस हो सकता है कि मुमताज महल की याद में शाहजहां ने बुरहानपुर में ताजमहल क्यों नहीं बनाया, पर यहां की अवाम को इससे अधिक अफसोस इस बात के लिए होना चाहिए कि यहां की बची-खुची धरोहर खत्म हो रही है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और मध्यप्रदेश के पुरातत्व विभाग के संरक्षण में यहां के 24 स्मारक बताए जाते हैं लेकिन इनकी सार-संभाल नहीं हो रही है। इन विभागों के पास इच्छाशक्ति का टोटा तो है ही, बाकी की कसर वे पैसे की तंगी बताकर पूरी कर देते हैं। बुरहानपुर में 388 साल पहले जून महीने में ही प्रसूति के दौरान मुमताज महल की मौत हो गई थी। तब मुमताज की याद में ताजमहल तो आगरा में बनाया गया था लेकिन ताजमहल बनने तक मुमताज का शव बुरहानपुर में ताप्ती नदी किनारे एक कब्र में दफनाकर रखा गया था।
उसी मुमताज को याद करते हुए हम ऐतिहासिक शहर बुरहानपुर की धरोहर की पड़ताल करते हैं तो दर्द और गुस्से के सिवाय के कुछ हाथ नहीं लगता। बात शुरू करते हैं मुमताज की कब्र से ही। ईरान से आई वह जनाना शख्सियत जिसके प्रेम में शाहजहां ने आगरा में दुनिया के सात आश्चयों में से एक नायाब रचना ताजमहल के रूप में की। ताजमहल को देखने तो हर दिन और हर साल हजारों-लाखों लोग पहुंचते हैं, लेकिन बुरहानपुर के जैनाबाद में मुमताज की कब्र को संवारने अब तक न तो कोई शाहजहां आया, न ही सरकार को इसकी फिक्र है। बुरहानपुर की फिजाओं में अब भी शायद मुमताज की रूह भटक रही होगी कि उसकी कब्र तक पहुंचने के लिए एक अदद सड़क भी नसीब नहीं है। देश-विदेश से पर्यटक जब यहां आते हैं तो धूल फांकते हुए, गिरते-पड़ते यहां तक पहुंचते हैं। पर न तो यहां के प्रशासन को इससे कोई मतलब है, न ही जनप्रतिनिधियों को परवाह है।
शहर के टूटे परकोटे से ताप्ती में गंदगी उड़ेलता है शहर- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण एएसआई और राज्य पुरातत्व विभाग के पास अलग-अलग स्मारक और धरोहरों का संरक्षण है। इसमें एएसआई के पास असीरगढ़ का किला, शाही किला, राजा जयसिंह की छत्री, जनता हमाम, शाहनवाज का मकबरा, बेगम शाहसूजा का मकबरा, फारूखी बादशाहों के मकबरे आदि स्मारक हैं। जबकि राज्य पुरातत्व विभाग के संरक्षण में दौलत खां लोधी का मकबरा, मोती महल, बारादरी, अकबरी सराय और शहर का 4 किलोमीटर लंबा परकोटा है। परकोटे पर विवाद है क्योंकि नगर निगम भी इस पर अपना हक जताता है। जब हम ताप्ती किनारे देखते हैं तो यहां परकोटे के टूटे हुए हिस्सों से शहर के बाशिंदे नदी में गंदगी उड़ेलते नजर आएंगे। परकोटे के टूटे हिस्से से नदी की ओर गंदगी का पहाड़ बन चुका है। स्वच्छता की बात करने वाला नगर निगम न तो इसे रोकने की जहमत उठाता है, न हटाने की।
धरोहरों के आसपास हो रहे अवैध कब्जे- शहर के कई स्मारक न तो एएसआई के पास है, न ही राज्य पुरातत्व विभाग के पास हैं। ऐसे में वे लावारिस की तरह हैं और उनके आसपास अवैध कब्जे हो रहे हैं। बानगी के तौर पर तोपखाना ऐसा ही स्मारक है। यह बहुत खूबसूरत धरोहर है लेकिन इसके आसपास के खेत वाले खाली जमीन पर कब्जा करते जा रहे हैं। यही हाल ताप्ती नदी के दूसरी ओर बनी तोता-मैना की कब्र का है। यहां पास में ही कुछ कॉलोनाइजर और बिल्डर कॉलोनी बना रहे हैं। उनकी नजर इस स्मारक के आसपास की जमीन पर भी है और अतिक्रमण बढ़ता जा रहा है। इसे रोकने की फुरसत जिला प्रशासन के पास भी नहीं है। नंदकिशोर देवड़ा, इतिहासकार व बुरहानपुर पर किताब के लेखक कहते हैं, पुरातत्व विभाग के पास जितनी रकम आती है, उतना काम कर देता है। उसमें भी ठीक से काम नहीं हो पाता। कितनी बड़ी विडंबना है कि इतने सालों में मुमताज महल की कब्र तक पहुंचने के लिए एप्रोच रोड तक नहीं बन पाया। इतिहास और धरोहरों को लेकर हमारे समाज में बहुत उपेक्षा का भाव है। लोग न तो इतिहास को सहेजना चाहते हैं, न अपनी धरोहरों को।
होशंग हवलदार, बुरहानपुर कन्वीनर ने बताया कि बुरहानपुर में सैकड़ों धरोहरें बिखरी हैं, पर यहां न तो पुरातत्व विभाग का पूरा ध्यान है, न ही यहां के राजनेताओं का। बुरहानपुर पर्यटन के भी सारे आयामों पर खरा उतरता है। यहां वॉटर टूरिज्म, जंगल टूरिज्म, ट्रैकिंग की भी खूब संभावनाएं हैं। शाही किले में लाइट एंड साउंड शो शुरू किया जाना चाहिए। योजनाबध्द तरीके से काम किया जाए तो बुरहानपुर पुरातत्व और पर्यटन के क्षेत्र में काफी आगे जा सकता है। बुरहानपुर के रास्ते से महाराष्ट्र में अजंता-एलोरा चले जाते हैं लेकिन बुरहानपुर नहीं स्र्क पाते। इसमें मध्यप्रदेश सरकार के पर्यटन विभाग की सबसे बड़ी कमी है। उसने बुरहानपुर को अपने टूरिज्म सर्कल में भी शामिल नहीं किया है। यदि बुरहानपुर का प्रचार-प्रसार किया जाए तो यहां काफी पर्यटक आ सकते हैं।
मोहम्मद याकूब ने कहा कि पुरातत्ववेत्ता शाही किले और हमाम की हालत बहुत खराब हो रही है। किले में मुगलकालीन टकसाल भी थी जहां सिक्के बनाए जाते थे। उसका संरक्षण भी नहीं हो पा रहा है। यही हालत संग्रहालय की है। इसमें रखा सामान बेतरतीब पड़ा है। मुमताज महल की कब्र तक जाने के लिए पहुंच मार्ग की मांग भी कबसे हो रही है, लेकिन प्रशासन का ध्यान नहीं है। बुरहानपुर की पुरातात्विक धरोहर के संरक्षण के लिए हमने योजना बनाई है। इसमें शाही किला और असीरगढ़ किले में काम होना है। मुमताज की कब्र राज्य पुरातत्व विभाग के पास है। वहां की एप्रोच रोड बनाने की जिम्मेदारी हमारी नहीं है। यह काम पीडब्ल्यूडी ही कर सकता है। यहां के कई स्मारक ऐसे हैं जो एएसआई या राज्य पुरातत्व में से किसी के पास अधिसूचित नहीं है।