केन्द्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री पीयूष गोयल दिल्ली में एक कार्यक्रम में ‘भारत आटा की बिक्री’ का शुभारंभ किया। सरकार ने दिवाली के दौरान भारत आटा की कीमत 2 रुपये प्रति किलोग्राम कम कर दिया है। इसका मतलब है कि भारत आटा लोगों को वर्तमान कीमत 29.50 रुपये से दो रुपये सस्ता यानी 27.50 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव पर उपलब्ध होगा।
क्या है भारत आटा? कहां हो रही है बिक्री?
फरवरी में केंद्रीय भंडार, नाफेड और एनएफसीसी को उपभोक्ताओं को 29.50 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से भारत आटा बेचने के लिए कहा गया था। केन्द्रीय भंडार, भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (नेफेड) और भारतीय राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता संघ लिमिटेड (एनसीसीएफ) को एफसीआई डिपो से 3 एलएमटी तक गेहूं उठाने और इसे आटा में परिवर्तित करने के बाद विभिन्न खुदरा दुकानों, मोबाइल वैन आदि के माध्यम से उपभोक्ताओं को 29.50 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बेचने के लिए कहा गया था। इसे ही भारत आटा का नाम दिया गया था। अब इसे 27.50 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव पर बेचा जाएगा।
इस महीने सार्वजनिक क्षेत्र की भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने ई-नीलामी के 19वें दौर में बफर स्टॉक से थोक उपभोक्ताओं को 2.87 लाख टन गेहूं बेचा। भारतीय खाद्य निगम जून से खुली बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत आटा मिलों और छोटे व्यापारियों जैसे थोक खरीदारों को साप्ताहिक ई-नीलामी के माध्यम से केंद्रीय पूल से गेहूं और चावल बेच रहा है ताकि इन प्रमुख वस्तुओं के खुदरा मूल्यों को नियंत्रित किया जा सके।
खाद्य मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि ई-नीलामी में 2,389 बोलीदाताओं को 2.82 लाख टन गेहूं बेचा गया। इस बिक्री के लिए उचित और औसत गुणवत्ता वाले गेहूं के लिए भारित औसत बिक्री मूल्य 2,291.15 रुपये प्रति क्विंटल था, जबकि आरक्षित मूल्य 2,150 रुपये प्रति क्विंटल था।
31 मार्च 2024 तक जारी रहेगी खुले बाजार में गेहूं बिक्री की योजना
खुले बाजार की बिक्री योजना (OMSS) के तहत गेहूं की बिक्री 31 मार्च, 2024 तक जारी रहेगी और तब तक लगभग 101.5 लाख टन गेहूं बाजार में उतारा जाएगा। पिछले हफ्ते, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि सरकार अपने मुफ्त खाद्यान्न कार्यक्रम को पांच साल तक बढ़ाने की योजना बना रही है, क्योंकि सरकार अगले साल की शुरुआत में आम चुनाव से पहले अनाज की बढ़ती कीमतों से 80 करोड़ उपभोक्ताओं को बचाने की कोशिश कर रही है। इसका मतलब यह भी है कि कल्याणकारी कार्यक्रम को बनाए रखने के लिए किसानों से गेहूं और चावल की अधिक सरकारी खरीद की जाएगी और इस पर अधिक सरकारी खर्च होगा। इस योजना के तहत 80 करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त अनाज प्रदान किया जाता है।
मुफ्त अनाज कार्यक्रम से सरकार पर सालाना करीब दो लाख करोड़ रुपये का बोझ पड़ने का अनुमान है। यह योजना इस साल के अंत में समाप्त होने वाला थी। बता दें कि भारत, जो गेहूं और चावल का दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, ने घरेलू बाजारों में बढ़ती कीमतों को रोकने के लिए पहले ही दोनों अनाजों के निर्यात को प्रतिबंधित कर दिया है।
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