अरविन्द मोहन: लगता है कि लोगोँ ने नए नोटों की होर्डिंग शुरु कर दी है. बैंक की शाखाओं और एटीएम मशीनोँ के आगे खत्म न हो रही लाइनोँ के बाद सरकार और बैंकिंग से जुडे लोग इस नतीजे पर पहुंच रहे हैँ पर इसे रोकने का कोई तरीका अभी समझ नहीँ आ रहा है.
पर इस बात की शिकायत होने लगी है कि लोग कई-कई जगह और कई-कई खातोँ से पैसे निकाल रहे हैँ और कोई भी बैंकोँ मेँ छोटे नोट या नए नोट वापस जमा नहीँ करा रहा है. जिस किसी के पास नए या खुले नोट हैँ वह या तो उसको अपने घर मेँ बन्द करके रख रहा है या कुछ ज्यादा ‘सक्रिय’ ठिकाने वाले लोग इसका दुरुपयोग पुराने नोट बदलने के धन्धेबाजोँ तो नोट पहुंचाकर कर रहे हैँ. सरकार ने अब काला-सफेद के इस गैर-कानूनी धन्धे पर ध्यान देना शुरु किया है. बैंक या पुराने नोट लेने के लिए अधिकृत कुछ ठिकानोँ-रेलवे, हवाई सेवा, सरकारी बिलोँ का भुगतान, पेट्रोल पम्प जैसे ठिकानोँ से भी काला-सफेद का खेल चलने की शिकायतेँ हैँ.
अब यह तो बाजार का नियम है कि जिस चीज की कमी होगी उसकी होर्डिंग भी होगी और उस पर प्रीमियम भी चलेगा. आज नए और खुदरा नोटोँ का अकाल है तो उसके लिये लोग कुछ ज्यादा रकम देने को तैयार हैँ क्योंकि नए या खुदरा नोट न होने से उनके धन्धे का ज्यादा नुकसान हो रहा है. फिर यह भी है कि अगर सरकार द्वारा घोषित 49.5 फीसदी की दर पर खुले बाजार मेँ ही काला सफेद हो जाएगा तो कौन अपनी पहचान और आगे की सफाई देने का जोखिम मोल लेगा. तीसरी वजह यह है कि नोटबन्दी के बावजूद काले धन की जरूरत कम नहीँ हुई है क्योंकि कामकाज का पुराना ढर्रा जारी है. जिन लोगोँ को कालेधन से खेलने की आदत पडी है वे बदलने को तैयार नहीँ है. और काला धन लेने वाले लोग अगर अपनी शर्त पर काम करेंगे तो उन्हे देने के लिये और अपना काम कराने के लिए भी कालाधन जुटाना ही पडेगा. खास तौर से जो कारोबार से जुडे लोग हैँ उनके साथ यह बात लागू होती है.
पर कारोबार वालोँ के लिए यह शर्त भी परेशानी का कारण है कि वे हफ्ते और महीने मेँ एक खास सीमा तक ही पैसा निकाल सकते हैँ-और बैंकोँ मेँ पहुंचने वाले कैश का यह हाल है कि वह रकम भी टुकडे-टुकडे करके, सिर्फ खाताधारी को ही मिल रही है. अब व्यापार करने वाला अगर आधे दिन लाइन मेँ लगकर बैंक से दस-पांच हजार, और वह भी दो-दो हजार के नोट मेँ ही निकाल पाएगा तब वह धन्धा कब करेगा. फिर वह हाथ आए कैश और खुले रुपयोँ को बैंक मेँ डालकर ज्यादा मुसीबत क्योँ मोल लेगा-इससे ज्यादा अच्छा विकल्प अपना कैश अपने पास रखने का है भले ही उसमेँ कुछ खतरा हो. इसलिर पैसे चाहे बैंक से निकलेँ या ग्राहक दे जाए उसे सम्भालकर अपने
पास ही रखना सबको होशियारी लगती है.
पर कैश की मुसीबत कई-कई बैंकोँ मेँ खाता रखने और कई-कई एटीएम रखने वाले लोग भी बढा रहे हैँ जो कमी वाली चीज को घर मेँ भरकर रखने की स्वाभाविक सोच से काम करते हैँ. उन्हे जब जहाँ लह जा रहा है वही से कैश उठा ले रहे हैँ. जिस एटीएम के सामने कम भीड दिखी, जिस ब्रांच के सामने लोग नहीँ दिखे और कैश होने की खबर मिली उससे अधिकतम सम्भव पैसा निकालकर अपने बटुए मेँ या पास मेँ रख लेना उन्हे ज्यादा अच्छा लग रहा है. ऐसे लोग शहरोँ मेँ ज्यादा हैँ. इस काम से दूसरोँ की परेशानी बढ रही है या बैंकिंग व्यवस्था चरमरा रही है इसका उनको खयाल नहीँ होता. इसलिए आज अधिकांश एटीएम मशीनोँ को नए नोटोँ का लेन-देन करने लायक बना दिये जाने के बावजूद हर एटीएम का पैसा दो-ढाई घंटे से ज्यादा नहीँ टिक पा रहा है.
अभी सरकार केलिए यह भी सम्भव नहीँ है कि वह एक ही खाता या एक ही कार्ड का कोई प्रोग्राम शुरु करे. इस स्थिति की तुलना रसोई गैस की किल्लत वाले दिनोँ मेँ हर समर्थ व्यक्ति द्वारा कई-कई कनेक्शन रखने से की जा सकती है. पर जैसे ही आधार कार्ड से गैस सब्सिडी को जोडने और ज्यादा कनेक्शन रखना गैर कानूनी किया गया अचानक काफी सारे कनेक्शन वापस हो गए.
पर सबसे मुख्य बात तो सरकारी तैयारियोँ की कमी है जो नोट छापने से लेकर एटीएम मशीनोँ को नए नोटोम के अनुरूप न बदल सकने से लेकर सिर्फ दो हजार के नोट छापने जैसी गलतियोँ की है. आज होर्डिंग की बात एक हद तक और कुछ लोगोँ पर लागू हो रही हो पर असलियत यही है कि जब पुराने नोट जमा करने का आंकडा ग्यारह लाख करोड से ऊपर पहुंच चुका है तब नए नोट जारी करने का आंकडा दो लाख करोड से थोडा ही ऊपर गया है. साफ बात है कि बाजार मेँ अभी नोट और खुदरा की भयावह कमी है और पच्चीस दिन बीत जाने पर भी स्थिति मेँ जल्दी सुधार के लक्षण दिखाई नहीँ दे रहे हैँ.
और यह तथ्य सरकार या नोटबन्दी करने वाले हर किसी को मालूम था कि सिर्फ 500 और 1000 रुपए के नोट मेँ ही 86 फीसदी कैश बाजार मेँ है. तो मात्र 13-14 फीसदी छोटे नोटोँ और अब आए बीस फीसदी से भी कम कैश से कैसे काम चलेगा. इसलिये व्यक्ति से लेकर अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र से हाय-तौबा तो मचनी ही थी, और वही हो रहा है. होर्डिंग होगी भी तो बहुत कम.
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