विविधताओं का देश भारत दुनियाभर में अपना कला संस्कृति और परंपराओं के लिए मशहूर है। यहां कई ऐसी इमारतें मौजूद हैं जो भारत के समृद्ध इतिहास को बयां करती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यहां कुछ स्मारक ऐसे भी हैं जिन्हें महिलाओं ने बनवाया है।
अपनी संस्कृति और कला के लिए मशहूर भारत आज भी दुनियाभर के लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करता है। विविधताओं से भरे इस देश में अलग-अलग परंपराएं मशहूर हैं। यहां का अपना अलग इतिहास रहा है, जिसकी झलक आज भी यहां मौजूद कई सारी इमारतों और स्मारकों में देखने को मिलता है। भारत पूरी दुनिया में अपनी खूबसूरत और ऐतिहासिक इमारतों के लिए जाना जाता है।
यहां कई ऐसी इमारतें हैं, जिनका अपना अलग इतिहास रहा है। भारत में मौजूद ज्यादातर इमारतें या स्मारक ऐसे हैं, जिन्हें पुरुषों द्वारा बनवाया गया है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि यहां कुछ ऐसी इमारतें और स्मारक भी हैं, जिनका निर्माण महिलाओं द्वारा करवाया गया है। अगर आप अभी इनसे अनजान हैं, तो आज हम आपको बताने जा रहे हैं ऐसी ही कुछ इमारतों के बारे में-
हुमायूं का मकबरा, दिल्ली
इस मकबरे का निर्माण 16वीं शताब्दी में दूसरे मुगल बादशाह हुमायूं की पत्नी बेगा बेगम ने करवाया था। इसे भारत में मुगल वास्तुकला के शुरुआती उदाहरणों में से एक माना जाता है और यह यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है।
इत्माद-उद-दौला, आगरा
इस मकबरे का निर्माण 17वीं शताब्दी में नूरजहां ने अपने पिता मिर्जा गियास बेग की याद में करवाया था। ताजमहल से इसकी समानता होने के कारण इसे अक्सर “बेबी ताजमहल” भी कहा जाता है।
रानी की वाव, पाटन
गुजरात के पाटन शहर में स्थित इस बावड़ी का निर्माण 11वीं शताब्दी में महारानी उदयमती ने करवाया था। यह यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल की लिस्ट में भी शामिल है और भारत का सबसे खूबसूरत बावड़ियों में से एक है।
विरुपाक्ष मंदिर, पट्टाडकल
इस मंदिर का निर्माण 8वीं शताब्दी में रानी लोकमहादेवी ने कर्नाटक के पट्टाडकल शहर में करवाया था। यह भगवान शिव को समर्पित है और चालुक्य स्थापत्य शैली के सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है। इस मंदिर को लोकमहादेवी ने पल्लवों के खिलाफ अपने पति विक्रमादित्य द्वितीय की जीत के उपलक्ष्य में बनवाया था।
लाल दरवाज़ा मस्जिद, जौनपुर
उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में मौजूद इस ऐतिहासिक मस्जिद को सन 1447 में सुल्तान महमूद शर्की की रानी राजे बीबी ने बनवाया था। यह मस्जिद संत सैय्यद अली दाऊद कुतुबुद्दीन को समर्पित थी। इसकी डिजाइन और शैली ‘अटाला मस्जिद’ से काफी मिलती-जुलती है।