कोरोना संकट की वजह से पहले से स्थापित कई परंपराएं टूट रही हैं तो कई नई परंपराओं का आगाज भी हो रहा है. ऐसे ही एक नई परंपरा की शुरुआत हुई राष्ट्रपति भवन में.
राष्ट्रपति भवन में गुरुवार को ऐसा कुछ हुआ जो इसके 70 साल के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ. 26 जनवरी 1950 को डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने देश के पहले राष्ट्रपति के तौर पर राष्ट्रपति भवन में कार्यभार संभाला था.
राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने गुरुवार को सात देशों के राजदूत/उच्चायुक्तों के परिचय पत्र डिजिटली यानि वीडियो कॉन्फ्रेंसिग के जरिए स्वीकार किए. ऐसा Covid-19 की वजह से प्रतिबंधों के चलते करना पड़ा.
डेमोक्रेटिक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया, सेनेगल, त्रिनिदाद और टोबैगो, मॉरीशस, ऑस्ट्रेलिया, कोट द’आइवोर (पुराना नाम आइवरी कोस्ट) और रवांडा के राजनयिकों ने डिजिटल लिंक के माध्यम से अपने कागजात पेश किए.
राष्ट्रपति कोविंद ने डिजिटल रूप से सक्षम परिचय पत्र पेश किए जाने को खास दिन बताया. उन्होंने कहा कि “नई दिल्ली में राजनयिक समुदाय के साथ भारत के संपर्क में आज विशेष दिन है.”
शुरुआत में योजना यह थी कि राजनयिक अपने-अपने दूतावास से परिचय पत्र पेश करेंगे. लेकिन प्रोटोकॉल से बंधे समारोह का संचालन सही तरह से होना सुनिश्चित करने के लिए सभी 7 राजनयिकों को विदेश मंत्रालय के जवाहर भवन मुख्यालय ले जाया गया.
विदेश मंत्रालय के सचिव (पश्चिम) विकास स्वरूप और प्रोटोकॉल अधिकारियों ने राष्ट्रपति के वीडियो लिंक पर आने के बाद समारोह को शुरू किया. एक-एक करके सभी राजनयिकों ने अपने परिचय पत्र पेश किए.
ये एक औपचारिक पत्र होता है जो राजनयिक को दूसरे सम्प्रभु देश में अपना राजदूत या उच्चायुक्त नियुक्त किए जाने के संबंध में उसके देश की ओर से जारी किया जाता है. ऐसा पत्र एक राष्ट्राध्यक्ष की ओर से दूसरे राष्ट्राध्यक्ष के नाम होता है.
राष्ट्रपति ने औपचारिक रूप से प्रत्येक पत्र को स्वीकार किया. इससे सातों राजनयिकों की भारत में राजदूत/उच्चायुक्त के तौर पर पारी की शुरुआत हुई. इन परिचय पत्रों को आधिकारिक तौर पर विदेश मंत्रालय को सौंपा गया, जहां से इन्हें राष्ट्रपति भवन को सौंपा जाएगा.
इस अवसर पर राष्ट्रपति कोविंद ने कहा, “डिजिटल तकनीक ने दुनिया को Covid-19 की ओर से उत्पन्न चुनौतियों से उभरने और अपने कामों को एक अभिनव तरीके से पूरा करने में सक्षम बनाया है.”