कैंसर के मरीजों के लिए ग्रीन टी वो माध्यम है जिसके उपयोग से किडनी खराब होने के खतरे से बच सकते हैं। एम्स के फार्माकोलॉजी विभाग के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन में साफ किया है कि ग्रीन टी के इस्तेमाल से कैंसर में दी जाने वाली सिसप्लाटिन नामक दवा के दुष्परिणामों को खत्म किया जा सकता है।

शोधार्थियों की माने तो ग्रीन टी में एपिकैटेचिन गैलेट नामक ऐसा तत्व होता है जो सिसप्लाटिन दवा क दुष्परिणामों को खत्म कर देता है। एम्स के फार्माकोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ.वाई.के.गुप्ता ने बताया कि आमतौर पर हेड एंड नेक, गर्भाशय कैंसर सहित कई अन्य अंगों के कैंसर के उपचार में सिसप्लाटिन दवा का इस्तेमाल किया जाता है। रिसर्च में यह देखा गया कि कैंसर के जितने मरीजों के उपचार में इस दवा का प्रयोग होता है उनमें से करीब 30 फीसद मरीजों की किडनी को इस दवा के दुष्परिणाम के चलते खराब होने का खतरा रहता है। एक अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हुए इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि ग्रीन टी के उपयोग से इस परेशानी का हल हो सकता है। अपने शोध के दौरान चूहों पर इस तत्व का इस्तेमाल कर सफलता की पड़ताल भी की गई।
एम्स के इस शोध परिणाम को अंतरराष्ट्रीय जर्नल लेबोरेट्री इंवेस्टिगेशन में जगह मिली है। डॉ.गुप्ता ने बताया कि भविष्य में इस तत्व का इस्तेमाल करके ऐसी दवा तैयार की जा सकती है जिसका इस्तेमाल कैंसर के इलाज में दी जाने वाली दवा से होने वाले साइड इफेक्ट्स से बचाने में किया जा सकता है।
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