कहानी: कालाकांडी में 3 कहानियां एक साथ चलती हैं। एक व्यक्ति जिसे पता चलता है कि वह बीमार है तो वह अपने सारे नियम-कायदे तोड़कर थोड़ा सा जीने का प्रयास करता है, एक महिला जो एक हिट-ऐंड-रन मामले में दोषी है और इससे बचना चाहती है और 2 गुंडे जिन्हें यह निर्णय लेना है कि वे एक-दूसरे पर विश्चवास करें या नहीं।
रिव्यू: ‘डेल्ही बेली’ जैसी अलग तरह की कॉमिडी फिल्म लिखने के बाद अक्षत वर्मा ने कालाकांडी की कहानी को मुंबई पर केंद्रित किया है जो दर्शकों को काफी आकर्षित करती है। यह उन लोगों के चारों ओर घूमती है जिन्हें हमेशा हर अच्छा-बुरा काम करना चाहिए जिसमें वे शायद ही कुछ ठीक करते हैं।
अगर आप कोएन ब्रदर्स के फैन हैं और उनके डार्क ह्यूमर को पसंद करते हैं तो यह नई बात है कि इस जॉनर का प्रयोग अब भारतीय फिल्ममेकर्स भी कर रहे हैं। फिल्म कालाकांडी में बेतुके से मनोरंजन में सैफ अली खान एक सफलता के तौर पर देखे जा सकते हैं। जब एक अच्छे खासे नौजवान (सैफ) को पता चलता है कि उन्हें कैंसर है तो उन्हें बड़ा अफसोस होता है कि उन्होंने इतने सीधे तरीके से अपनी जिंदगी क्यों बिताई। वह बची जिंदगी में सारे काम करना चाहते हैं जिसमें कई अजीब बातें शामिल हैं।
फिल्म में सैफ और नैरी सिंह के बीच एक गर्मजोशी भरा बॉन्ड दिखता है जो भारतीय सिनेमा में समलैंगिग संबंधों को ऐतिहासिक कहा जा सकता है। यह दोनों किरदार फिल्म में गर्मजोशी से भरे और छिपे हुए नजर आते हैं जिससे पता चलता है कि हमारे यहां सैक्शुऐलिटी को इतना ओवर-रेटेड क्यों है और दिखता है कि मानव समाज में कितनी असमानता और यह सामाजिक नियमों का अतिक्रमण करता है।
सैफ के कजिन के तौर पर अक्षय ओबेरॉय का किरदार खासा महत्वपूर्ण है। विजय राज ने अपनी भूमिका बेहतरी से निभाई है हालांकि ऐसे बोल्ड किरदार के चुनाव के लिए सैफ अली खान की तारीफ की जानी चाहिए लेकिन कालाकांडी दर्शकों को निराश करती है। शुरुआत में फिल्म काफी थ्रिलर लगती है लेकिन जल्द ही यह अपनी गति खो देती है। सैफ के अलावा जो दो कहानियां हैं वे पटरी से उतर जाती हैं जिसके कारण फिल्म में जो मनोरंजन, मजा और इमोशंस हो सकते थे, वे गायब हैं। लेकिन अगर आप बिना किसी सोच-समझ के धैर्य के साथ फिल्म देखना जारी रखते हैं तो यह फिल्म आपको ठीक लग सकती है।