NEW DELHI: दबंग सलमान खान हमेशा किसी न किसी कारण से चर्चा में रहते हैं| कभी बच्चों के लिए सोशल वर्क के कारण तो कभी एक्शन को लेकर| अपनी फिल्म सुलतान के ज़रिये कमाइ के सारे रिकॉर्ड तोडते हुए इन्होने एक बार फिर खुद को साबित कर दिया|लेकिन बहुत कम लोगों को ये बात पता होगी कि अपनी मुस्कान के पीछे ये कितना दर्द लिए फिरते हैं|
1 – मुस्कान के पीछे छुपाते हैं दर्द
जी हैं, सलमान खान एक ऐसी बीमारी से पीड़ित हैं जिसके कारण इन्हे असहनीय पीड़ा से गुज़रना पड़ता है| सलमान खान की बीमारी को आत्महत्या रोग के नाम से भी जाना जाता है| हालाकि इस बीमारी को अंग्रेजी में ट्रैजमाइनल न्यूरैलजिया एंड एन्यूरिज्म के नाम से जाना जाता है|
2 – शूटिंग के दौरान मिली जानकारी, विदेश में करवाया इलाज
पार्टनर फिल्म की शूटिंग के दौरान अचानक सलमान को लगा जैसे उनके फेशिअल मसल्स को शॉक दिया जा रहा है| उन्हें तुरंत शूटिंग रोक कर अपना इलाज करवाना पड़ा| पता चला की इस बीमारी का इलाज भारत में नहीं है इस कारण उन्हें विदेश जाकर ट्रैजमाइनल न्यूरैलजिया एंड एन्यूरिज्म का इलाज करवाना पड़ा| हालाकि इलाज के बाद भी सलमान पूरी तरह से ठीक नहीं हुए हैं. आज भी कई बार उनका दर्द उभर जाता है|
3 – जानिए लक्षण, कहीं आपको भी तो नहीं ये बीमारी
डॉक्टरों की मानें तो ट्रैजमाइनल न्यूरैलजिया एंड एन्यूरिज्म बीमारी से एक या दो हज़ार में कोइ एक व्यक्ति पीड़ित पाया जाता है| इस बीमारी में व्यक्ति को चेहरे के एक तरफ इतनी असहनीय पीड़ा होती है कि व्यक्ति मरने के बारे में सोचने लगता है|
4- अब लखनऊ के पीजिआई में हो सकता है इलाज
पिछले साल ही लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में ट्रैजमाइनल न्यूरैलजिया एंड एन्यूरिज्म बीमारी का इलाज शुरू किया जा चुका है| इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑन पेन मैनेजमेंट के दौरान प्रो. अनिल अग्रवाल ने बताया था कि ये बीमारी दिमाग में ट्यूमर मल्टीपल स्केलोरोसिस के कारण होता है। 50 फीसदी लोगों में इस दर्द का कारण पता नहीं चल पाता| ऐसे में रेडियो फ्रीक्वेंसी लीजनिंग तकनीक से दर्द से ख़त्म किया जाता है| जबकि 10 से 15 फीसदी लोगों में सुपीरियर सेरीब्रल आर्टरी के ट्रैजमाइनल नर्व पर दबाव पड़ने के कारण ये दर्द होता है।
5- यंग एज में जल्द दूर होती समस्या
डॉक्टरों की मानें तो अगर मरीज कम उम्र का है तो न्यूरो सर्जन सर्जरी कर ट्रैजमाइनल न्यूरैलजिया एंड एन्यूरिज्म दूर कर सकते हैं| लेकिन अन्य मरीजों के लिए रेडियो फ्रीक्वेंसी तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है| इसमें एक निडल को ट्रैजमाइनल नर्व तक पहुंच कर उसका तापमान 65 डिग्री सेल्यिस तक 80 सेकेंड तक बढ़ाया जाता है। इससे नर्व के दर्द पैदा करने वाले फाइबर नष्ट हो जाते हैं और मरीज को दर्द से राहत मिल जाती है।