जो एकादशी निर्जला एकादशी के बाद और देवशयनी एकादशी से पहले आती है उसको योगिनी एकादशी कहते हैं। योगिनी एकादशी आषाढ़ मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को होती है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। इस साल योगिनाा एकादशी का व्रत 17 जून 2020 बुधवार को है।
योगिनी एकादशी का फल
मान्यता है कि योगिनी एकादशी का व्रत करने से मानव के समस्त पापों का नाश हो जाता हैं और जीवन में सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। योगिनी एकादशी का व्रत करने से इस लोक में समस्त सुखों के मिलने के साथ स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है. योगिनी एकादशी तीनों लोकों में पुण्यदायी है। इस एकादशी का व्रत रखने का उतना ही महत्व होता है जितना 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने से मिलता है।
योगिना एकादशी के शुभ मुहूर्त
योगिनी एकादशी बुधवार, 17 जून
एकादशी तिथि का प्रारम्भ – 16 जून को 5 बजकर 40 मिनट से
एकादशी तिथि का समापन – 17 जून को 4 बजकर 50 मिनट तक
पारण का समय- 18 जून 2020 को सुबह 5 बजकर 28 मिनट से 8 बजकर 14 मिनट तक
योगिनी एकादशी की पूजा विधि
एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर घर की सफाई करें। इसके बाद स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। अब मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित करें। अब भगवान विष्णु की मूर्ति पर अक्षत, फूल, तुलसी पत्ता, नारियल चढ़ाएं। पीपल के पेड़ की पूजा करें और एकादशी व्रत की कथा सुनें और अगले दिन पारण करें।
योगिनी एकादशी कथा
स्वर्ग की अलकापुरी नामक नगरी में कुबेर नाम का एक राजा रहता था. वह शिव भक्त था इसलिए प्रतिदिन शिव पूजा किया करता था. हेम नाम का एक माली शिव पूजन के लिए उसके यहाँ फूल लाया करता था. हेम की विशालाक्षी नाम की सुंदर पत्नी थी. एक दिन वह मानसरोवर से फूल लेकर तो आया लेकिन कामासक्त होने के कारण वह अपनी स्त्री से हास्य-विनोद और रमण करने लगा. इधर राजा उसकी दोपहर तक फूल के लिए राह देखता रहा. अंत में राजा कुबेर ने सेवकों को आज्ञा दी कि तुम लोग जाकर माली के न आने की वजह पता करो, क्योंकि वह अभी तक पूजा के फूल लेकर नहीं आया. सेवकों ने कहा कि महाराज वह पापी और अतिकामी है, अपनी पत्नी के साथ हास्य-विनोद और रमण कर रहा होगा. यह सुनकर कुबेर ने क्रोधित होकर उसको बुलाया.
हेम माली राजा के भय से काँपता हुआ उनके समक्ष उपस्थित हुआ. राजा कुबेर ने क्रोध में आकर कहा- ‘अरे पापी! नीच! कामी! तूने मेरे परम पूजनीय देवादिदेव महादेव का अनादर किया है, इसलिए मैं तुझे अभी शाप देता हूँ कि तू पत्नी वियोग सहेगा और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी बनेगा.’
कुबेर के शाप से हेम माली का स्वर्ग से पतन हो गया और वह उसी पल पृथ्वी पर गिर गया. धरती पर आते ही उसके शरीर में श्वेत कोढ़ हो गया. उसकी पत्नी भी उसी वक्त अंतर्ध्यान हो गई. मृत्युलोक में आकर माली ने महान दु:ख भोगे, भयानक वन में जाकर बिना अन्न और जल के भटकता रहा.
भटकते हुए एक दिन वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पहुँच गया, जो ब्रह्मा से भी अधिक वृद्ध थे और उनका आश्रम ब्रह्मा की सभा के समान लगता था. हेम माली वहाँ पर जाकर उनके पैरों में पड़ गया. उसे देखकर मार्कण्डेय ऋषि बोले तुमने ऐसा कौन-सा पाप किया है, जिसकी वजह से तुम्हारी यह हालत हो गई. हेम माली ने सारा वृत्तांत ऋषि को कह सुनाया. यह सुनकर ऋषि बोले- निश्चित ही तूने मेरे सम्मुख सत्य वचन कहे हैं, इसलिए तेरे उद्धार के लिए मैं एक व्रत बताता हूँ. यदि तू आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की योगिनी नामक एकादशी का विधिपूर्वक इस व्रत करेगा तो तेरे सब पाप नष्ट हो जाएँगे.
यह सुनकर हेम माली ने अत्यंत प्रसन्न होकर मुनि को साष्टांग दंडवत किया. मुनि ने उसको स्नेह के साथ उठाया. हेम माली ने मुनि के कथनानुसार विधिपूर्वक योगिनी एकादशी का व्रत किया. इस व्रत के प्रभाव से अपने पुराने स्वरूप में आकर वह अपनी स्त्री के साथ सुखपूर्वक रहने लगा.