सनातन संस्कृति में होने वाली पूजा-पद्धति या कर्मकांड ऐसे ही नहीं होते हैं। इनके पीछे एक खास महातम्य छिपा हुआ होता है जो तर्क संगत और विज्ञान आधारित है।
फिर चाहें वह तिलक लगाना हो, पैर छूना, तुलसी के पौधे पर जल चढ़ाना हो या यज्ञ-हवन करना हो। इन सबके पीछे वैज्ञानिक कारण छिपा हुआ है। इन्ही में से एक खास वैदिक परंपरा है – हाथ में कलावा बांधना। कलावा को मौली भी कहते हैं। पूजा के दौरान हाथों में लाल या पीले रंग का कलावा बांधने का चलन है। इसके अलावा किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत करते समय या नई वस्तु खरीदने पर हम उसे कलावा बांधते हैं।
कलावा कच्चे सूत के धागे से बना होता है। मौली लाल रंग, पीले रंग, या दो रंगों या पांच रंगों की होती है। शास्त्रों के अनुसार कलावा बांधने की परंपरा की शुरुआत देवी लक्ष्मी और राजा बलि ने की थी।
कलावा को रक्षा सूत्र भी कहा जाता है, माना जाता है कि कलाई पर इसे बांधने से जीवन पर आने वाले संकट से रक्षा होती है। इसका कारण यह है कि कलावा बांधने से ब्रह्मा, विष्णु और महेश त्रिदेव की कृपा प्राप्त होती है। धार्मिक महत्व रखने के साथ साथ कलावा बांधना वैज्ञानिक तौर पर भी काफी लाभप्रद है।