यूं तो हर कोई कहता है कि ‘जल ही जीवन है’, लेकिन इंदौर के ज्यादातर बाशिंदे इस जीवन के बदले मामूली खर्च भी करने को तैयार नहीं हैं। पड़ताल में चौंकाने वाला सच सामने आया है कि इंदौर नगर निगम हर साल करोड़ों खर्च कर नर्मदा का पानी 70 किमी दूर से शहर लाता है, लेकिन लोग हर महीने का 200 रुपए जलकर भी नहीं चुका रहे हैं।
कुल मिलाकर जलकर वसूली के काम में इंदौर नगर निगम पिछड़ा हुआ है। चार साल के आंकड़े देखें बिजली, मेंटेनेंस और कर्मचारियों की तनख्वाह पर करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं। निगम के जलकार्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2016-17 में खर्च का यह आंकड़ा 160 करोड़ के पार पहुंच गया। मगर जलकर की वसूली 20 फीसद ही रही।
बिजली और मेंटेनेंस पर बड़ा खर्च, वसूली कम
निगम ने एक अप्रैल 2016 से 31 मार्च 2017 के बीच बिजली बिल, मेंटेनेंस और कर्मचारियों की सैलरी पर कुल 161 करोड़ रुपये खर्च किए। जबकि पानी के बिलों का भुगतान इतना कम हुआ इस साल 31 मार्च तक निगम के खजाने में जलकर के रूप में 31 करोड़ रुपये से कुछ ज्यादा राशि ही आई।
वहीं बिजली कंपनी का निगम पर 206 करोड़ बकाया है। एक और खास बात यह है कि नगर निगम को प्रदेश सरकार से हर महीने पांच करोड़ रुपए नगर विकास के लिए मिलते हैं, लेकिन बिजली कंपनी का बकाया होने के कारण यह राशि नगर निगम को न मिलते हुए सीधी बिजली कंपनी को जा रही है, ताकि बकाया चुकाया जा सके। जलकर न मिलने का यह भी एक खामियाजा है जो पूरे शहर को भुगतान पड़ रहा है। सालभर में यह राशि 60 करोड़ रुपए होती है।
इंदौरवासियों को पानी पिलाने का बिजली खर्च कितना ज्यादा इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दो साल में जलूद के पंपिंग और वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट के रखरखाव तथा नर्मदा से पानी खींचने में ही बिजली पर 249.17 करोड़ खर्च हुए हैं।
दिक्कत बढ़ेगी, क्योंकि महंगी हुई बिजली
2016 में बिजली नियामक आयोग ने जलूद और यशवंत सागर से पानी लाने में लगने वाली बिजली चालीस पैसे प्रति यूनिट महंगी कर दी है। इस इजाफे के बाद निगम पर 48 करोड़ रुपए सालाना का भार बढ़ गया है।
संपत्तिकर की चिंता, लेकिन जलकर की नहीं
चौंकाने वाली बात यह भी है कि निगम के रिकॉर्ड में जहां दिसंबर-2017 तक संपत्तिकर के करीब 5 लाख खाते हैं, वहीं जलकर के केवल सवा 2 लाख खाते ही हैं। ऐसे में संपत्तिकर और जलकर के खातों में बहुत बड़ा अंतर है। इसका मतलब इतनी संपत्तियों से निगम को जलकर की राशि नहीं मिल रही है।
– नए खाते खोलने में जोन 16 सबसे फिसड्डी साबित हुआ। यहां तीन साल में संपत्तिकर के 11615 नए खातों के मुकाबले जलकर के सिर्फ 1701 नए खाते खुले, जोकि 0.146 फीसद है।
– नईदुनिया की इस पड़ताल पर मुहर लगाते हुए नगर निगम में जलकार्य समिति के प्रभारी बलराम वर्मा ने कहा, ‘जोन 16, 8 और 3 जलकर के मामले में काफी पीछे हैं। ऐसे हर जोन में अभियान चलाकर खाते खुलवाए जा रहे हैं। प्रस्ताव यह भी है कि जलकर की वसूली और बिल देने के लिए अलग से एक कर्मचारी की नियुक्ति की जाएगी।’
– दूसरे नंबर पर रहा जोन 8, यहां भी तीन साल में संपत्तिकर के 15,954 नए खाते खुले, जबकि जलकर के 3006 ही खाते खुले, जो संपत्तिकर के मुकाबले आधा फीसद से भी कम है।
– तीन साल में जोन-2 में खुले केवल 692 जलकर के नए खाते, जबकि इसी दौरान संपत्तिकर के 1039 खाते खुले।
– जोन-3 में इन तीन साल में खुले सिर्फ 854 नए जलकर खाते, जबकि इसी दौरान 11 सौ से ज्यादा नए संपत्ति कर खाते खुले।
अभियान से जागी उम्मीद
अच्छी बात यह है कि अप्रैल 2016 में मार्च 2017 तक नए नल कनेक्शन की संख्या में इजाफा हुआ है। इस एक साल में अलग-अलग 19 जोन में कुल 14,420 नए नल कनेक्शन हुए हैं। नगर निगम में जलकार्य समिति के प्रभारी बलराम वर्मा बताते हैं, ‘नए जलकर खातों के लिए दो साल में अभियान चलाया है। इससे 35 हजार नए कनेक्शन खुले हैं।’
आधे इंच के एक घरेलू नल कनेक्शन पर निगम को हर महीने 200 रुपए जलकर मिलता है। वहीं आधे इंच के व्यवसायिक संयोजन के लिए निगम की इस साल की प्रस्तावित दर 750 रुपए है। जो नए खाते खुले हैं, उससे न सिर्फ निगम को एकमुश्त राजस्व मिला, बल्कि हर महीने जलकर भी मिलना शुरू हुआ।
ऐसे बुझती ही इंदौर की प्यास
– वर्तमान में इंदौर में नर्मदा के साथ ही यशवंत सागर एवं अन्य जल स्त्रोतों से लगभग 360 एमएलडी पानी प्रतिदिन आ रहा है। इसके अलावा 4956 ट्यूबवेल एवं 788 हैंडपंप के माध्यम से अतिरिक्त जलापूर्ति की गई है। वहीं अमृत प्रोजेक्ट के तहत शहर में नई पाइपलाइन डालने और नई टंकियां बनाने के लिए अलग से 630 करोड़ की योजना स्वीकृत की गई है।
– इंदौर में 70 किमी दूर यानी जलूद से नर्मदा का पानी इंदौर लाया जाता है। इस पानी को एक किलोमीटर दूर नदी से खींचकर पंपिंग स्टेशन तक लाया जाता है, जो 534 मीटर की ऊंचाई पर है। यहां पानी को लिफ्ट करने के साथ ही इसे पीने लायक बनाने के लिए ट्रीटमेंट प्लांट बना है।
– इसके बाद ये पानी इंदौर के बिजलपुर नर्मदा कंट्रोल रूम पहुंचता है। इस दौरान महू और दूसरी अलग-अलग ग्राम पंचायतों में लगभग 15 एमएलडी पानी बंट जाता है। बांटने के दौरान ही नर्मदा का 10 से 12 एमएलडी कीमती पानी बर्बाद हो जाता है।