कम उम्र में ही शरीर का इंजन जाम कर देता है मोटापा

सबसे ज्यादा युवा जनसंख्या वाला देश भारत विश्व के लिए भविष्य की आशा और आर्थिकी का इंजन है, मगर तब क्या होगा जब यह इंजन अपने ही ईंधन को अच्छी तरह से जलाने में असमर्थ होकर जाम होने लगें?

द लैंसेट ग्लोबल हेल्थ-2023 की एक रिपोर्ट तो कुछ ऐसी ही आशंका जताती है। इसके अनुसार, भारत में पिछले दशक में मोटापे की दर में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। अब लगभग 40 प्रतिशत वयस्क भारतीय मोटापे के साथ जी रहे हैं।

एक ऐसे देश में, जहां की समृद्ध परंपरा, सनातन धर्म और जीवनशैली में शरीर को ‘मंदिर’ और अन्न को ‘ब्रह्म’ की संज्ञा दी गई है, वहां स्वास्थ्य में यह विचलन निश्चित रूप से चिंताजनक है, क्योंकि यह डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर और हार्ट डिजीज जैसे गंभीर जीवनशैली विकारों से जुड़ा हुआ है।

राष्ट्रव्यापी है चिंता

इसी संदर्भ में देहरादून, उत्तराखंड में राष्ट्रीय खेलों के उद्घाटन पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाषण का एक अंश युवाओं के बीच बहुचर्चित और इंटरनेट मीडिया पर प्रचलित हो रहा है। कई सेलेब्रिटीज, चिकित्सक, स्वास्थ्य एवं फिटनेस विशेषज्ञ, अभिनेताओं से लेकर पाडकास्टर तक इस मुद्दे पर एकमत होकर सामने आ रहे हैं। लगभग एक पखवाड़े पूर्व ‘फिट इंडिया’ के इस उद्बोधन में प्रधानमंत्री ने कहा था, ‘हमारे देश में मोटापा तेजी से बढ़ रहा है। हर आयु वर्ग और यहां तक कि युवा भी इससे बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं।

यह चिंता का विषय है क्योंकि मोटापा मधुमेह, हृदय रोग आदि के जोखिम को बढ़ाता है। आज मैं देशवासियों से दो चीजों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहना चाहता हूं। पहला, हर दिन कुछ समय निकालें और व्यायाम करें। चलने से लेकर कसरत करने तक, जो भी संभव हो करें। दूसरा, अपने आहार पर ध्यान केंद्रित करें। अपने भोजन में अस्वास्थ्यकर वसा और तेल को कम करें। हर महीने जो तेल हम उपयोग करते हैं, उसकी मात्रा 10 प्रतिशत कम करें। ऐसे छोटे कदम आपके स्वास्थ्य में बड़ा बदलाव ला सकते हैं।’

संपूर्ण स्वास्थ्य का सहज मार्ग

व्यक्तिगत स्वास्थ्य पर यह अभियान सामूहिक आंदोलन के शंखनाद जैसा है। वास्तव में आज कैशोर्य और युवावस्था से ही मोटापे को नियंत्रित करने की आवश्यकता है, नहीं तो यह सार्वजनिक स्वास्थ्य महामारी बन सकता है। यही नहीं, इससे जुड़ी बाडी शेमिंग इस आयुवर्ग में मानसिक अवसाद का भी बड़ा कारण बनती है। जबकि अगर आनुवांशिक, किसी व्याधिजन्य अथवा कुछ विशेष शारीरिक हार्मोनल परिस्थितियां न हों तो मोटापे पर नियंत्रण पाना अथवा इसे पनपने ही न देना व्यक्ति, परिवार और समाज की दृढ़ मानसिक स्थिति के अतिरिक्त किसी अन्य चीज का मोहताज नहीं है।

भारत में धर्म, आयुर्वेद और योग की समृद्ध परंपरा इस विषय पर मार्गदर्शन के लिए पर्याप्त है। सर्वाधिक सुंदर बात तो यह है कि संपूर्ण स्वास्थ्य के इस मार्ग पर पथप्रदर्शक के रूप में साक्षात् जगद्गुरु और योगेश्वर ज्ञानरूप में उपस्थित हैं। युवाओं के बीच सर्वाधिक लोकप्रिय और हार्वर्ड जैसे विदेशी विश्वविद्यालय में प्रबंधन ग्रंथ के रूप में समादृत श्रीमद्भगवद्गीता में अर्जुन के मोह का निवारण करते हुए भगवान श्रीकृष्ण केवल युद्ध करने और शस्त्र उठाने की बात नहीं करते, वे यह भी बताते हैं कि स्वस्थ और सुखी जीवन के लिए आहार-विहार कैसा होना चाहिए।

वे इसके 17वें अध्याय में केवल सात्विक, राजसी और तामसिक आहार की संपूर्ण व्याख्या नहीं करते, व्यक्ति पर इसके प्रभाव का वर्णन मात्र नहीं करते बल्कि पूर्व में ही छठे अध्याय के 17वें श्लोक में ही स्पष्ट कर देते हैं, ‘जिसका आहार और विहार संतुलित है, जिसका आचरण अच्छा है, जिसका शयन, जागरण व ध्यान नियमित है, उसके जीवन के सभी दुख स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं।’ क्या यह ज्ञान केवल महाभारत की कुरुक्षेत्र रणभूमि के निमित्त था? कभी किसी मेट्रो स्टेशन के बाहर अथवा अपने शहर के चौक-चौराहों-बाजारों में श्रद्धाभाव से श्रीमद्भगवद्गीता का प्रचार-प्रसार करते इस्कान के युवा अनुयायियों के चमकते चेहरे और स्वस्थ-सुंदर शरीर देखिए तो आपको स्वतः ही इसका उत्तर प्राप्त हो जाएगा!

जैसा अन्न वैसा मन

समस्या का सिरा पकड़ में आ जाए तो समाधान उतना मुश्किल नहीं रह जाता। समय का संदेश स्पष्ट है कि स्वस्थ तन-मन के लिए जीवनशैली में परिवर्तन करना ही होगा। यह भी समझना होगा कि आपका शारीरिक-मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य कोई तीन अलग-अलग अवधारणाएं नहीं, एक ही चीज है जिसे भारतीय मनीषा में ‘संपूर्ण स्वास्थ्य’ के रूप में संबोधित किया गया है। लोकमानस में यह ‘जैसा खाए अन्न, वैसा बने मन’ के सरल रूप में शताब्दियों से प्रचलित है।यदि दैनिक आहार में तेल की कुछ बूंदें कम करके, नमक को नियंत्रित करके, अस्वास्थ्यकर जंकफूड को सीमित करके, कुछ योग-व्यायाम-कसरत-खेलकूद करके तन-मन-जीवन सुंदर बन सकता है, तो इसमें आलस्य और दो बार सोचना कैसा? इतिहास गवाह रहा है कि वक्त के साथ हर नई पीढ़ी पिछली पीढ़ी से कुछ अधिक समझदार साबित हुई है, तो क्यों न आशा करें कि आज के किशोर और युवा भी इस बात को सही सिद्ध कर दिखाएंगे।

ठोस कदम उठाने का वक्त

डिजिटल क्रांति के इस दौर में विभिन्न इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म्स के माध्यम से नई पीढ़ी का वैश्विक सभ्यता, आहार संस्कृति और फिटनेस के प्रति जितना एक्सपोजर है, उतना किसी पूर्ववर्ती पीढ़ी का नहीं रहा है। आज के युवा और किशोर भलीभांति जानते हैं कि शरीर और स्वास्थ्य के लिए सबसे अच्छा आहार और जीवनशैली क्या है, अब जरूरत है तो बस इस ज्ञान को अमल में लाने की और स्वयं ही नहीं, अपने साथियों-स्वजनों तक यह बात पहुंचाकर स्वस्थ भारत बनाने की।

वे जानते हैं कि घर का बना ताजा भोजन और प्रकृति से मिले आहार के उपहार ही सर्वश्रेष्ठ हैं। औसत भारतीय थाली में नाममात्र के छौंक के साथ उबालकर पकाई गई दाल, भाप में पके चावल, कम तेल-नमक में बनी स्वादिष्ट मौसमी सब्जी-साग, सिंकी हुई रोटियां, सलाद-चटनी हो या आग में पकी लिट्टी और उबला-भुना मसला हुआ चोखा, नाश्ते में पोहा, दलिया, उपमा, इडली हो या कार्नफ्लेक्स और शाम अथवा देर रात की फूड क्रेविंग के लिए ताजे मौसमी फल, आज के युवाओं और किशोरों को हर बात का ज्ञान है।

इंटरनेट पर इंटरनेशनल एक्सपोजर की वजह से वे यह भी जानते हैं कि असली बर्गर का अर्थ तली हुई आलू की टिकिया, पास्ता का अर्थ ढेर सारा मेयोनीज-क्रीम या चाइनीज का अर्थ ढेर सारा तेल-मसाला-रंगीन सास नहीं होता है बल्कि इन विदेशी व्यंजनों के असली प्रारूप में खूब सारी कच्ची अथवा उबली सब्जियां भी शामिल होती हैं। वाकई यह पीढ़ी ज्ञान से भरी और संघर्ष से तपी हुई है। इसने कम उम्र में वह सब देख-सीख लिया है जिसे जानने में पिछली पीढ़ियों की जिंदगी गुजर जाती थी। बस अब इसके लिए वक्त है संपूर्ण स्वास्थ्य की दिशा में ठोस कदम उठाने का, सही आहार-विहार-दिनचर्या से काया को कुंदन बनाने का। भारत के इस बलशाली भविष्य के लिए यह अवसर भी है और चुनौती भी कि इतिहास उसे किस रूप में याद रखेगा!20 मिलीलीटर अर्थात चार छोटे चम्मच तेल की ही आवश्यकता होती है एक वयस्क को पूरे दिन के खाने में।

जंक और प्रोसेस्ड फूड इसमें कई गुना वृद्धि कर देते हैं। बाजार में बिकने वाले खाने की बात करें तो जब आप तेल को अधिक गर्म, कई बार गर्म करते हैं तो इस प्रक्रिया से उत्पन्न होने वाले विषैले पदार्थ शरीर में बुरे कोलेस्ट्राल का स्तर बढ़ाते और रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचाते हैं।मोटापे के साथ ही हृदय अवरोध, मधुमेह और लिवर-किडनी की समस्याओं को जन्म देता है शरीर में एकत्र हो रहा अतिरिक्त वसा। इसे पिघलाने के लिए नियमित तौर पर योग-व्यायाम को दिनचर्या का अंग बनाना चाहिए। 4 साथी हैं सही सेहत के। यह हैं घर का बना आहार, सात-आठ घंटे की पर्याप्त नींद, शारीरिक सक्रियता और प्रकृति से निकटता।

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