उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार ने सत्ता संभालते ही अवैध बूचड़खानों पर कार्रवाई की. प्रदेश में योगी सरकार के कमान संभाले ढाई महीने होने को आए हैं. बूचड़खानों के बंद होने का असर गोश्त बेचने वाले छोटे व्यापारियों पर पड़ा है. इन्हें घर के गुजारे के लिए धंधा बदलने को मजबूर होना पड़ा है. इन लोगों की शिकायत है कि पूरी मेहनत के बावजूद वो दो जून की रोटी का भी जुगाड़ नहीं कर पा रहे हैं.
इनकी मांग है कि सरकार को उनकी हालत पर ध्यान देते हुए तत्काल उन्हें राहत देनी चाहिए. इनका कहना है कि या तो इन्हें पहले की तरह गोश्त बेचने की इजाजत दी जाए या फिर नया कारोबार जमाने में मदद की जाए जिससे कि वो अपने परिवारों को पाल सकें.
लखीमपुर खीरी
जिले के खीरी कस्बे में जहां कभी गोश्त बेचा जाता था, वहां का नजारा ही अब दूसरा है. बूचड़खाने बंद होने और गोश्त बेचने के लिए सख्त नियम-कायदे लागू होने के बाद गोश्त विक्रेताओं ने दूसरे धंधे अपनाना ही बेहतर समझा.
कोई केले का ठेला लगा रहा है तो किसी ने कबाड़ का काम शुरू कर दिया है. किसी ने परचून की दुकान खोल ली है तो कोई पान बेचने लगा है.
समीउद्दीन हाल तक गोश्त की दुकान चलाते थे. दुकान बंद हुई तो समीउद्दीन ने केले का ठेला लगाना शुरू कर दिया. समीउद्दीन का कहना है कि अब इतना भी नहीं कमा पाते कि घर में दो वक्त का खाना भी बन सके.
ऐसी ही कहानी फारूख कुरैशी की है. फारूख को अब कबाड़ का काम करना पड़ रहा है. फारूख कहते हैं कि या तो उनका पुराना रोजगार दे दिया जाए या उन्हें रोड पर झाड़ू लगाने का ही काम दे दिया जाए. फारूख का सवाल है कि बच्चों का पेट भरें तो कैसे भरें. अतीक की भी सरकार से यही मांग है कि मीट की दुकान फिर से खुलवाने में मदद की जाए. कमोवेश ऐसी ही कहानी पान की दुकान चलाने वाले मोहम्मद उमर की है.
कानपुर
कानपुर के मछरिया इलाके में रहने वाले मोहम्मद जब्बार मीट की दुकान बंद कर अब चाय की दुकान चला रहे हैं. वो पहले बूचड़खाने से मीट खरीद कर लाकर बेचते थे. पांच बच्चों के पिता जब्बार का कहना है कि अब मीट नहीं मिल रहा था इसलिए चाय की दुकान खोलने को मजबूर होना पड़ा. जब्बार का कहना है कि पूरे दिन में एक लीटर भी दूध नहीं लग पाता, इसी से अंदाज लगा लीजिए कि क्या कमाई होती होगी. जब्बार का कहना है कि सरकार से गुजारिश है कि वो उनकी रोजी-रोटी के लिए सोचे.
इलाहाबाद
अवैध बूचड़खानों के बंद होने और मीट की दुकान के लिए सख्त नियम-कायदों के लागू होने से कई लोगों के रोजगार पर संकट आ गया है. ये कई पीढ़ियों से इस रोजगार से जुड़े थे. कई दिन तक बेकार बैठे रहने के बाद मीट के इन छोटे व्यापारियों ने परिवार का पेट पालने के लिए दूसरे धंधे अपना लिए हैं. बबलू भाई अब चाय की दुकान चला रहे हैं. वहीं फरहान को ई-रिक्शा चला कर गुजारा करना पड़ रहा है.
बहरहाल, हर जगह एक ही कहानी दिखी. मीट की छोटी-मोटी दुकान चला कर जो परिवार का पेट भरते थे, उनका कहना है कि वो पुराने धंधे पर लौटना चाहते हैं. लेकिन दुकान पर टाइल और एसी लगाने जैसी तमाम शर्तें कहां से पूरी करें.