कारों की मांग गिरने की वजह से कार कंपनियों ने उत्पादन कम कर दिया है. कुछ कंपनियों ने कई प्लांट्स बंद कर दिए हैं, कुछ ने काम के घंटे घटा दिए हैं. इस संकट के लिए केवल मंदी जिम्मेदार नहीं है. एक साथ कई नीतियों में फेरबदल करने से ग्राहक दुविधा में पड़ गए हैं कि वो कार खरीदें या अभी इंतजार करें. कार कंपनियों पर ये छोटा-मोटा संकट नहीं है. ये संकट इतना बड़ा है जो ग्रोथ की रफ्तार पर ब्रेक लगा सकता है. इस वक्त मोदी सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती कार इंडस्ट्री में नई जान फूंकने की है.
देश की सबसे बड़ी कंपनी मारुति सुजुकी हो या कोई और कंपनी, हर किसी की हालत पस्त है. ग्राहकों में दुविधा है कि कार खरीदने के लिए इंतजार करें या फिर ये सही मौका है. मंदी के माहौल में नौकरी का ठिकाना नहीं तो नई EMI का बोझ लेने से भी लोग कतरा रहे हैं. अब राहत पैकेज के बगैर इस सेक्टर में जान फूंकना मुमकिन नहीं है.
मारुति सुजुकी, टाटा मोटर्स, हुंडई, होंडा, महिन्द्रा एंड महिन्द्रा, हीरो मोटोकॉर्प ये देश की वो दिग्गज कार और दोपहिया वाहन बनाने वाली कंपनियां है जो सालाना कई सौ करोड़ों रुपये का मुनाफा कमाती है. लेकिन इन दिनों इन सबपर मंदी हावी है. एक-एक कार बेचने के लिए इन कंपनियों को नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं. इनके प्लांट्स में लाखों गाड़ियां ग्राहक के इंतजार में खड़ी है लेकिन ग्राहक नदारद है.कार कंपनियों के बिक्री के आंकड़े पर नजर डाले तो जनवरी से जुलाई के बीच मारुति सुजुकी की बिक्री में 31 फीसदी की गिरावट आई है.
हुंडई मोटर्स की बिक्री 15 फीसदी गिरी. महिन्द्रा एंड महिन्द्रा की बिक्री 29 फीसदी. टाटा मोटर्स की बिक्री 40 फीसदी, जबकि होंडा की बिक्री में 44 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है.इन आंकड़ों से साबित होता है कि सभी कार कंपनियों की इन दिनों हवा निकली हुई है. ऑटो सेक्टर में गिरावट देश की अर्थव्यवस्था का खेल खराब करने के लिए काफी है, क्योंकि ऑटो इंडस्ट्री का देश की GDP में 7 फीसदी का योगदान है.
इंडस्ट्रियल GDP में ऑटो कंपनियों का 26 फीसदी का योगदान है. मैन्यूफैक्चरिंग GDP में ऑटो कंपनियों की 49 परसेंट की हिस्सेदारी है. यानी ऑटो सेक्टर का पटरी से उतरना देश की ग्रोथ के लिए खतरनाक है. कारों की बिक्री कम होने से ऑटो पार्ट्स बनाने वाली कंपनियों की भी हालत पतली है.
इन कंपनियों ने उत्पादन 30 फीसदी तक कम कर दिया है, जिसकी वजह से हजारों लोगों की नौकरी चली गई है. अगर आगे भी ऑटो सेक्टर का ये ही हाल रहा तो स्थित और भी भयावह हो सकती है.चेन्नई को भारत का डेट्रोयट कहा जाता है, यहां कार बनाने वाली कंपनियों के बड़े-बड़े प्लांट्स है. देश में बिकने वाली 30 फीसदी गाड़ियां इसी शहर में तैयार होती हैं. RG Bronze जो पिछले 40 साल से कारों के लिए कलपुर्जे तैयार कर रही है, उसने उत्पादन में 40 से 45 फीसदी की कमी की है.
दिसंबर से पहले तक यहां 14 घंटे काम होता था अब सिर्फ 10 घंटे काम होता है.काम में कटौती के चलते सैकड़ों कॉन्ट्रैक्ट मजदूरों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. गुजरात के राजकोट में भी ऑटो पार्ट्स बनाने वाली कंपनियों का बुरा हाल है. कार कंपनियों को जो पहले मोटे ऑर्डर मिलते थे उनमें कमी आई है, राजकोट की ऑटो इंडस्ट्री में काम करने वाले बिहार के करीब 10 हजार लोगों को वापस लौटना पड़ा है.गुजरात के बाद आपको सीधे झारखंड लिए चलते हैं, यहां पर भी कार के पार्ट्स बनाने वाली कंपनियों पर मंदी की मार है.
क्या बड़े क्या छोटे सभी पर कारोबार ठंडा पड़ा है. पूरे प्रदेश में 200 गाड़ियों के शोरूम बंद हो गए हैं. कारों के बॉडी पार्ट्स बनाने वाली सैकड़ों यूनिट्स बंद हो गई हैं. कार के पार्ट्स बनाने वाली कंपनियों के नुमाइंदों की माने तो ऊंची टैक्स दर और सरकार की गलत नीतियों की वजह से ऑटो उद्योग की दुर्गती हुई है.जहां पहले ही ऑटो उद्योग का बैंड बजा पड़ा है. ऐसे में कारों की क़ीमत और रजिस्ट्रेशन फीस में इजाफा आग में घी का काम करेगा, यानी ऑटो उद्योग को मंदी के दौर से बाहर निकालना आसान नहीं है.
आने वाले कुछ महीनों में भी ऑटो इंडस्ट्री के लिए दूर-दूर तक राहत की किरण नजर नहीं आ रही है, क्योंकि सरकार के कुछ नियम ऑटो कंपनियों की ग्रोथ में आड़े आने वाले हैं. अप्रैल 2020 से देश में सिर्फ BS-6 इंजन वाली गाड़ियां ही बेची जाएंगी. BS-6 इंजन की वजह से गाड़ियों की लागत में 20 फीसदी तक बढ़ जाएंगी. इससे कारों की क़ीमतों में 12 फीसदी तक का इजाफा तय माना जा रहा है. इसके अलावा परिवहन मंत्रालय का वाहनों की रजिस्ट्रेशन फीस में 10 से 20 गुना इजाफा करने का प्रस्ताव है.