झारखंड के चार प्रमुख विश्वविद्यालयों के कुलपति का पद एक जून को रिक्त हो जायेगा। झारखंड राज्यपाल सचिवालय ने इन पर नियुक्ति के लिए 18 मई को विज्ञापन निकाला है। मात्र 14 दिन पहले निकाले गए इस विज्ञापन में कहा गया है कि ऑनलाइन आवेदन दिया जा सकता है। पर योग्यता के अनुसार झारखंड में कुलपति पद के लिए योग्य व्यक्ति (प्रोफेसर) का मिलना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन भी है।
झारखंड में 15 वर्ष से विश्वविद्यालय में विधिवत रूप से असिस्टेंट प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर को प्रोन्नति नहीं दी गई है। फलस्वरूप यहां प्रोफेसर का मिलना संभव नहीं है। हाल के दिनों में जो हुए भी हैं उनके पास पदोन्नति में विलंब होने के कारण या सीधे प्रोफेसर पद पर साक्षात्कार के द्वारा नियुक्त होने के बावजूद विज्ञापन के अनुसार कुलपति पद के लिए पर्याप्त अनुभव नहीं है।
एक जून से कोल्हान विवि चाईबासा, विनोबा भावे विवि, हजारीबाग, नीलांबर-पीतांबर विवि पलामू तथा सिदो कान्हू मुर्मू विवि, दुमका जैसे जनजातीय बहुल विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा किसके भरोसे चलेगा इसकी कल्पना की सकती है।
शोध उच्च शिक्षा का मेरुदंड होता है। शोध से ही विश्वविद्यालय के विभाग जाने जाते हैं, जिनका मार्गदर्शन और प्रतिनिधित्व कुलपति करते हैं। वर्षों का अध्ययन-अध्यापन, शोध का अनुभव रखने वाले प्रोफेसर विश्वविद्यालय के कुलपति पद के लिए योग्य होते हैं। इन्हीं के हाथों विश्वविद्यालय का प्रशासन और उच्च शिक्षा के साथ शोध का नेतृत्व होता है। प्रशासनिक अनुभव से ज्यादा अध्ययन-अध्यापन के साथ शोध का अनुभव तथा उच्च शिक्षा के स्वस्थ वातावरण की समझ आवश्यक होती है। विश्वविद्यालय अपने नियम-परिनियम से बंधा हुआ होता है। झारखंड में नियम-परिनियम की अवहेलना एक आम बात हो गई है। अंतत इसका प्रभाव यहां 26 प्रतिशत से अधिक जनजाति और उनके उन बच्चों पर पड़ता है, जो उच्च शिक्षा के लिए यहां के विश्वविद्यालयों पर निर्भर करते हैं।