एकादशी माता की पूजा के बिना अधूरा है यह व्रत, जानें पूजा विधि, भोग, मंत्र और महत्व

वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इस साल यह पावन तिथि 24 अप्रैल, 2025 यानी आज पड़ रही है। यह भगवान विष्णु और देवी एकादशी की पूजा के लिए समर्पित है और इसका व्रत रखने से साधको को सभी दुखों से मुक्ति मिलती है, जो लोग इस व्रत का पालन कर रहे हैं, उन्हें एकादशी माता की पूजा भी विधि-विधान से करनी चाहिए, क्योंकि इसके बिना व्रत पूरा नहीं होता है।

एकादशी माता की पूजा विधि
इस दिन सुबह उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ वस्त्र धारण करें।
पूजा स्थल को गंगाजल से पवित्र करें और एक वेदी पर लाल या पीला वस्त्र बिछाएं।
भगवान विष्णु और एकादशी माता की प्रतिमा स्थापित करें।
उन्हें रोली, चंदन, अक्षत, धूप, दीप, और पुष्प आदि चीजें अर्पित करें।
भोग में तुलसी दल जरूर शामिल करें।
एकादशी व्रत कथा का पाठ करें या सुनें।
भगवान विष्णु और एकादशी माता के मंत्रों का जाप करें।
अंत में आरती करें और परिवार के लोगों में प्रसाद बांटें।

भोग
एकादशी के दिन भगवान विष्णु और एकादशी माता को सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। इसमें ऋतु फल, पंचामृत, पीली मिठाई, खीर (मखाने की), मेवे, दूध से बनी मिठाइयां और धनिया की पंजीरी के साथ तुलसी दल जरूर शामिल करना चाहिए। इस दिन अनाज और चावल से बने भोजन का भोग नहीं लगाया जाता है।

पूजन मंत्र
“ॐ एकादशी देव्यै नमो नमः”
“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”

वरूथिनी एकादशी का महत्व
वरुथिनी एकादशी का व्रत रखने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति को धन, यश और कीर्ति की प्राप्ति होती है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से कन्यादान के समान पुण्य फल मिलता है। यह व्रत विशेष रूप से संतान प्राप्ति और पारिवारिक सुख-समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।

एकादशी माता की पूजा इस व्रत के महत्व को और भी बढ़ा देती है, जिससे भक्तों को भगवान विष्णु का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।

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