हाल ही में जैसे उपचुनावों की घोषणा हुई है, यूपी सहित सभी राज्यों की राजनीति में हलचल बढ़ गयी है. अगर देखा जाए तो महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा में चुनाव होने हैं.

18 राज्यों की 63 राज्यों की विधानसभा सीटों पर उचुनाव की घोषणा हुई है. इन चुनाओं के नतीजे आने वाली सियासत के निर्माण में बड़ी भूमिका निभाने बाले हैं. इसी के साथ ही कर्नाटक, बिहार और यूपी के मुख्यमत्रियों पर भार बढ़ गया है.
राजस्थान और मध्यप्रदेश के नतीजे बताएंगे कि वहां की सियासत में जारी शह और मात के खेल में भाजपा और कांग्रेस में किसका पलड़ा भारी है। जबकि केरल के नतीजे तय करेंगे कि वाम दलों की देश की सियासत में आखिरी उम्मीद भी बचेगी या नहीं।
कर्नाटक है सबसे अहम-
उपचुनाव की दृष्टि से कर्नाटक सबसे अहम है जहां 15 सीटों पर उपचुनाव होने हैं। ये वह सीटें हैं जो कांग्रेस और जदएस के विधायक के इस्तीफे से खाली हुई है। बहुमत हासिल करने के लिए सत्तारूढ़ भाजपा को हर हाल में 8 सीटें जीतनी होगी। ऐसा नहीं होने पर येदियुरप्पा और भाजपा सरकार मुश्किलों में घिर सकती है।
येदियुरप्पा की चुनौती इसलिए भी बड़ी है कि जिन इलाकों की ये सीटें हैं उन्हें कांग्रेस-जदएस का गढ़ माना जाता है। इस समय 224 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के पास 105 विधायक हैं जो बहुमत से 8 कम हैं।
यूपी से भी तय होंगे परिणाम-
यूपी का उपचुनाव भाजपा ही नहीं सपा-बसपा की प्रतिष्ठा से भी जुड़ा हुआ है। सीएम योगी के सामने जहां भाजपा की 11 में से 9 सीटें बचाने की चुनौती है, वहीं नतीजे यह साबित करेंगे कि सपा और बसपा में से कौन सही मायने में भाजपा को टक्कर दे रहा है।
सपा और बसपा दोनों को पता है कि उपचुनाव के नतीजे में विपक्ष का वोट जिस दल की ओर ज्यादा झुकेगा उस दल के पक्ष में भविष्य में भाजपा विरोधी वोटों का ध्रुवीकरण भी होगा। यही कारण है कि सपा और बसपा ने उपचुनाव के लिए सारी ताकत झोंक दी है।
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