देहरादून। जब तंद्रा टूटे, तभी भोर। उत्तराखंड में जंगलों की सुरक्षा की जिम्मेदारी संभालने वाले वन विभाग की जल संरक्षण को लेकर अब तंद्रा टूटी है। यूं कहें कि उसे दायित्व बोध हुआ है तो अनुचित नहीं होगा।
दरअसल, लंबे समय से बात सामने आ रही कि वन क्षेत्रों में नमी सिमट रही है। वनों में आग फैलने के पीछे यह बड़ा कारण है और वह भी विशेषकर पहाड़ के जंगलों में। यद्यपि, जंगलों में नमी बनाए रखने के दृष्टिगत वर्षा की बूंदों को सहेजने के छिटपुट रूप से जतन अवश्य हो रहे हैं, लेकिन इसके सकारात्मक परिणाम नहीं दिखे।
अब यह तय किया गया है कि छिटपुट की बजाय समूचे जंगल में जल संरक्षण को दीर्घकालिक कार्ययोजना बनाकर कार्य किया जाए। इसके लिए नरेंद्रनगर वन प्रभाग के हेंवल माडल को केंद्र में रखा जाएगा। वन प्रभागों ने इसकी तैयारियां शुरू कर दी हैं, जिनके धरातल पर उतरने की प्रतीक्षा है।
फोटो सेशन तक ही न सिमटे पौधारोपण
मानसून की फुहारें लगातार भिगो रही हैं। इसके साथ ही प्रकृति भी नया श्रृंगार करने लगी है। जंगलों में पेड़-पौधों पर नई कोंपलें खिलने से नवजीवन का काल प्रारंभ हो चुका है। यही नहीं, प्रकृति के श्रृंगार को और अधिक निखारने को पौधारोपण की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं।
जंगलों में लगभग डेढ़ करोड़ पौधे रोपने का क्रम शुरू हो गया है तो प्रकृति पर्व हरेला पर भी 15 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य रखा गया है। हरेला पर्व के उपलक्ष्य में विभिन्न प्रजातियों के पौधों का रोपण जंगलों से इतर होना है।
साफ है कि यह पूरी कसरत धरती की हरियाली बढ़ाने के लिए है। अमूमन, यह देखने में आया है कि पर्व विशेष पर होने वाला पौधारोपण फोटो सेशन तक ज्यादा सिमटा रहता है। फिर पौधों को अपने हाल पर छोड़ दिया जाता है। यह परिपाटी त्यागते हुए रोपित पौधों के प्रति सजग व संवेदनशील होना हेागा।
पौधे तभी बचेंगे, जब उचित देखभाल होगी
पर्यावरण के महत्व को कोरोनाकाल के दौर में सभी ने बखूबी समझा है। पेड़-पौधे और हरियाली होगी तो प्राणवायु अच्छी होगी। इससे स्वास्थ्य बेहतर रहेगा। इस क्रम में देखें तो हरियाली बढ़ाने को प्रतिवर्ष बड़े पैमाने पर पौधे लगाए जा रहे, लेकिन इनमें से कितने जीवित रह रहे हैं, इसकी वास्तविकता सभी जानते हैं।
यदि पिछले 21 वर्षों में रोपे गए पौधों में से तय मानकों के अनुसार 70 प्रतिशत जिंदा रहते तो आज तस्वीर कुछ और होती। साफ है कि देखभाल के मोर्चे पर बहुत अधिक गंभीरता दिखाने की जरूरत है। पौधों की देखभाल ठीक उसी तरह की जानी चाहिए, जैसी हम अपने पाल्यों की करते हैं।
शास्त्रों में भी कहा गया है कि एक पेड़ सौ पुत्रों के समान है। कहने का आशय ये कि पौधे तभी बचेंगे, जब इनकी उचित ढंग से देखभाल होगी। तो आइये, इस बार पौधारोपण करते समय उनकी देखभाल का भी संकल्प लें।
प्रकृति दर्शन, जागरूकता के साथ स्वरोजगार भी
प्रकृति से जुड़ने के लिए उसके करीब जाकर उसे समझना होगा। इस दृष्टिकोण से वन विभाग की रिसर्च विंग ने बेहतर पहल की है। मुनस्यारी में ईको पार्क, नैनीताल के नजदीक खुरपा ताल में मास गार्डन, हल्द्वानी में रामायण, महाभारत नाम से विभिन्न वाटिकाएं, चकराता के देववन में क्रिप्टोगेमिक गार्डन इसके बेहतर उदाहरण हैं।
इन स्थानों पर लोग न केवल प्रकृति को करीब से देख और समझ रहे हैं, बल्कि वन एवं वन्यजीवों के संरक्षण का संकल्प भी ले रहे हैं। इसके साथ ही इन प्रयासों से स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर सृजित हो रहे हैं।
देहरादून के आनंद वन को ही लें तो नेचर व नालेज पार्क के रूप में विकसित इस वन में हर साल डेढ़ लाख के लगभग लोग पहुंच रहे हैं। साफ है कि प्रकृति के संरक्षण और स्वरोजगार को बढ़ाने देने में सहायक इस तरह की पहल अन्य क्षेत्रों में भी अपनाई जानी चाहिए।