इसे ग्लोबल वार्मिंग का असर कहें अथवा स्थानीय संसाधनों का अनियंत्रित ढंग से विदोहन, लेकिन सच यही है कि जलस्रोत निरंतर सूख रहे हैं। उत्तराखंड भी इससे अछूता नहीं है। ऐसे में जरूरी है कि इन्हें बचाए रखने को गंभीरता से कदम उठाए जाएं। शोध संस्था हेस्को की ओर से इस दिशा में 2002 से शुरू की गई पहल के सार्थक नतीजे सामने आए हैं। अब तक राज्य में 52 धारे न सिर्फ पुनर्जीवित हो चुके हैं, बल्कि इनमें जलस्राव 50 से 250 लीटर प्रति मिनट तक बढ़ गया है। इसके अलावा पड़ोसी हिमाचल प्रदेश में भी 21 जल धारों को पुनर्जीवन दिया गया है।
एक दौर में नौले-धारे (प्राकृतिक जलस्रोत) ही विषम भूगोल वाले उत्तराखंड में हलक तर करने का अहम जरिया हुआ करते थे। लोग इनका संरक्षण भी पूरी शिद्दत से करते थे। वक्त ने करवट बदली और नौले-धारों की अनदेखी होने लगी। परिणाम इनके सूखने अथवा इनमें जलस्राव घटने के रूप में सामने आया।
साथ ही संबंधित क्षेत्र की हरियाली पर भी असर पड़ा। स्थिति कितनी खराब हो चुकी है, यह नीति आयोग की रिपोर्ट से स्पष्ट हो जाता है। रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में 300 के आसपास जलस्रोत या तो सूख चुके हैं अथवा सूखने की कगार पर हैं।
राज्य में सूखते जल धारों से चिंतित शोध संस्था हेस्को के संस्थापक पद्मश्री डॉ. अनिल जोशी ने इन्हें पुनर्जीवित करने की दिशा में कदम उठाने की ठानी। इसमें भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर का भी सहयोग लिया गया। हेस्को ने 2002 में चमोली जिले के गौचर क्षेत्र से शुरुआत की और वहां 16 जल धारे चिह्नित कर उनकी आइसोटोप स्टडी की गई।
फिर इनके कैचमेंट एरिया (जलसमेट क्षेत्र) में जल संरक्षण के मद्देनजर परकुलेशन पॉन्ड, चेकडैम, ट्रैंच, पौधरोपण जैसे रिचार्जिंग स्ट्रक्चर तैयार किए गए। नतीजा यह रहा कि 2007-08 में न सिर्फ इन सभी धारों में जलस्राव बढ़ गया, बल्कि आसपास के स्रोत भी रीचार्ज हुए।
इससे उत्साहित हेस्को ने उत्तरकाशी के ब्रह्मखाल व रुद्रप्रयाग के ककोड़ाखाल में नौ-नौ और जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर के पिपाया क्षेत्र में 18 जल धारों पर कार्य किया। इसकी कमान संभालने वाले हेस्को के विज्ञानी वीएस खाती बताते हैं कि यहां भी नतीजे बेहतर सामने आए हैं।
बताया कि अब उत्तरकाशी के शेरपुर बंगारी व चंपावत क्षेत्र में भी जलधारों को जिंदा करने के मद्देनजर अध्ययन प्रारंभ किया गया है।
वह बताते हैं कि हेस्को ने हिमाचल के सिरमौर, सुरला कंडेला, अंबोया में भी 21 धारे इसी प्रकार पुनर्जीवित किए हैं। खाती के मुताबिक जल धारे को पुनर्जीवन देने के लिए हर स्तर पर इस प्रकार के प्रयास गंभीरता से किए जाने की दरकार है। इसमें ग्रामीणों की सक्रिय भागीदारी जरूरी है