पूरे विधि-विधान से पूजा अर्चना के बाद आज (शुक्रवार) सुबह 4.30 बजे बदरीनाथ मंदिर के कपाट खोल दिए गए। इस बार बेहद सादगी के साथ कपाट खोले गए।
कपाटोद्घाटन मे मुख्य पुजारी रावल, धर्माधिकारी भूवन चन्द्र उनियाल, राजगुरु, हकहकूकधारियो सहित केवल 11 लोग ही शामिल हो सके। बदरीनाथ धाम के कपाट खोलने की प्रक्रिया 14 मई (गुरुवार) से ही शुरू हो गई थी।
कपाट खोलने से पहले बदरीनाथ सिंह द्वार, मंदिर परिसर, परिक्रमा स्थल, तप्त कुंड के साथ ही विभिन्न स्थानों को सैनिटाइज किया गया।
योग ध्यान बदरी मंदिर पांडुकेश्वर में कुबेर जी, उद्धव जी और गरुड़ जी की विशेष पूजाएं हुईं। हक-हकूकधारियों ने सामाजिक दूरी का पालन करते हुए भगवान श्री बदरीनाथ की पूजा अर्चना की और पुष्प अर्पित किए।
बदरीनाथ धाम को 10 क्विंटल गेंदे के फूलों से सजाया गया है। पुष्प सेवा समिति ऋषिकेश की ओर से मंदिर को सजाया गया। देवस्थानम बोर्ड के मीडिया प्रभारी डॉ. हरीश गौड़ ने बताया कि पुष्प सेवा समिति ऋषिकेश की ओर से मंदिर को सजाया गया है।
बता दें कि जब से चारधाम यात्रा शुरू हुई है तब से अब तक बदरीनाथ धाम के इतिहास में यह पहली बार हुआ है जब धाम में कपाट खुलने के समय वेद मंत्रों और जय बदरीनाथ का जयघोष तो सुनाई दिए, लेकिन उनके भक्तों का हुजूम मौजूद नहीं रहा।
इतना ही नहीं इतिहास में पहली बार बदरीनाथ धाम के कपाट तय तिथि 30 अप्रैल को न खुलकर इस बार कोरोना संकट के कारण तिथि को बदलकर 15 मई कर दिया गया।
चमोली नेहरु युवा केंद्र के जिला समन्वयक डॉ. योगेश धस्माना ने बताया कि वर्ष 1920 में स्वामी विवेकानंद सरस्वती हैजा रोग फैलने के कारण बदरीनाथ की तीर्थयात्रा पर नहीं जा पाए थे और कर्णप्रयाग से ही लौट गए थे। लेकिन तब यह संकट की स्थिति यात्रा के मध्य में आई थी।