कोरोना काल में पूरी दुनिया में आयुर्वेदिक उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ी है। बीते साल की तुलना में इस साल सितंबर में आयुर्वेदिक उत्पादों का निर्यात करीब डेढ गुना बढ़ा है। मसालों के निर्यात में भी काफी बढ़ोतरी दर्ज हुई हैं।
आज एक तरफ भारत जहां वैक्सीन की टेस्टिंग कर रहा है। वहीं दूसरी तरफ कोविड से लड़ने के लिए आयुर्वेदिक रिसर्च पर भी इंटरनेशनल कोलेबोरेशन को तेजी से बढ़ा रहा है। इस समय 100 से ज्यादा स्थानों पर रिसर्च चल रही है।
कोरोना से मुकाबले के लिए जब कोई प्रभावी तरीका नहीं था तो भारत के घर-घर में हल्दी, काढ़ा, दूध जैसे अनेक इम्यूनिटी बूस्टर जैसे उपाय बहुत काम आए। इतनी बड़ी जनसंख्या वाला हमारा देश अगर आज संभली हुई स्थिति में है तो उसमें हमारी इस परंपरा का बहुत बड़ा योगदान है।
देश में सस्ते और प्रभावी इलाज के साथ प्रिवेंनटिव हेल्थ केयर वेलनेस पर ज्यादा फोकस किया जा रहा है। आचार्य चरक ने कहा है- स्वास्थस्य स्वास्थ्य रक्षणं आतुरस्य विकार प्रशमनं च। यानी, स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना और रोगी को रोगमुक्त करना ये आयुर्वेद के उद्देश्य हैं।
21वीं सदी का भारत अब टुकड़ों में नहीं, होलिस्टिक तरीके से सोचता है। हेल्थ से जुड़ी चुनौतियों को भी अब होलिस्टिक अप्रोच के साथ उसी तरीके से ही सुलझाया जा रहा है।
इसी साल संसद के मानसून सत्र में दो ऐतिहासिक आयोग भी बनाए गए हैं। पहला- नेशनल कमिशन फोर इंडियन सिस्टम ऑफ मेडिसिन, दूसरा- नेशनल कमिशन फोर होम्योपैथी। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारत की मेडिकल एजुकेशन में इंटीग्रेशन की एप्रोच को प्रोत्साहित किया गया है।