अगर दिल में कुछ करने का इरादा हो तो हर मुकाम हासिल किया जा सकता है. 2013 में नौकरी को छोड़कर कुछ अलग करने की ठानी. नया क्या किया जाए, अपने पहाड़ के साथ खुद को नई पहचान कैसी दी जाए, ये सोचकर दिव्या रावत ने एक कदम बढ़ाया. एक आइडिया मशरूम की खेती का क्लिक किया. बस फिर क्या था, जिस सफर के लिए नौकरी को छोड़ा था, उस सफर पर निकली और अपनी मेहनत और लगन से बन गई ‘मशरूम गर्ल’. मशरूम गर्ल दिव्या रावत की कहानी न सिर्फ प्रेरणा देती है, बल्कि युवाओं को कुछ नया करने की सीख भी देती है. राष्ट्रपति ने मशरूम गर्ल को नारी शक्ति सम्मान से नवाज है.
2013 में छोड़ी थी नौकरी
साल 2013 में जब पूरे उत्तराखंड में दैवीय आपदा ने अपना विकराल रूप दिखाया था, उसी दौरान दिव्या ने अपनी नौकरी छोड़ दी. कुछ सालों की मेहनत और लग्न से 29 साल की दिव्या आज देहरादून स्थित मोथरोवाला गांव में न सिर्फ मशरूम का उत्पादन कर रही है बल्कि इसकी खेती का प्रशिक्षण भी दे रही है.
खोला स्वरोजगार के द्वार
मशरूम गर्ल दिव्या रावत जो आज उत्तराखंड में मशरूम उत्पादन के क्षेत्र में एक आइडियल बन चुकी हैं, लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए दिव्या रावत ने काफी संघर्ष किया. मशरूम से शुरू हुआ दिव्या रावत का सफर आज पूरे देश में फैल चुका है. 2015 से दिव्या रावत ने मशरूम उत्पादन की खुद प्रशिक्षण लिया और उसके बाद दिव्या का सफर मशरूम उत्पादन की दुनिया में तेजी से बढ़ाता जा रहा है. दिव्या रावत ने पहले मशरूम से शुरुआत की थी, लेकिन अब हिमालय में पाए जाने वाली कीड़ाजडी की एक प्रजाति कार्डिसेप मिलिटरीज का भी उत्पादन शुरू कर दिया है. मोथरोवाला गांव में उन्होंने कीड़ाजड़ी के स्पान यानी बीज का भी उत्पादन करती है. पूरे देश में दिव्या रावत ने 25 लैब स्थापित कर चुकी हैं. जहां कीड़ाजड़ी का व्यावसायिक उत्पादन किया जा सके.
आखिर 2 भागों में क्यों बंटी होती है सांप की जीभ, वजह जानकर होंगे हैरान
अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में है काफी मांग
कीड़ाजड़ी जिसे यारसागम्बू भी कहते हैं. कीड़ाजड़ी 2 से 3 लाख प्रति किलो में बिकती है. दिव्या रावत कहती है कि कार्डिसेप मिलिटरीज की काफी डिमांड है. विश्व में कीड़ाजड़ी की करीब 680 प्रजातियां पाई जाती है, जिसमें हिमालय में पाई जाने वाली कार्डिसेप्स साइनेंसिस लगभग 12 हजार फीट की उचाईं पर चमोली, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़, बागेश्वर, रुद्रप्रयगा के जिलों में होती है.
हिमालय की गोद में मिलती है दुलर्भ जड़ी बूटी
कीड़ाजड़ी की अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में काफी डिमांड है. हर साल जब मई-जून के महीने में इसे खोजने के लिए स्थानीय लोग इसे ढूढ़ते हैं. बढ़ती मां को देखते हुए दिव्या रावत ने भी अपनी मोथरोवाला लैब में इसी की एक प्रजाति का उत्पादन शुरू किया, जिसका वैज्ञानिक नाम कार्डीसेप मिलिटरीज है.
थाईलैंड में लिया प्रशिक्षण
दिव्या रावत ने कहा कि कीड़ाजड़ी का उत्पादन के लिए उसने थाईलैंड जाकर प्रशिक्षण लिया. दिव्या बताती है कि कीड़ाजड़ी का व्यावसायिक उत्पादन चीन, कोरिया और थाईलैंड जैसे देशों में काफी मात्रा में होता है. लेकिन भारत में इसका व्यावसायिक उत्पादन अभी तक नहीं किया जा सका.
यह साधारण सा दिखने वाला अंडा सोशल मीडिया पर मचाया तहलका, वजह हैरान कर देने वाला
क्यों है कीड़ाजड़ी की डिमांड
कीड़ाजड़ी औषधीय गुणों से युक्त है, इस कारण ही इसकी अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में काफी मांग है. इसका प्रयोग शक्ति बढ़ाने में किया जाता है. कई देशों के एथलीट इसका प्रयोग करते हैं. फेफडों, किडनी और एड्स की बीमारियों में इसका प्रयोग होता है.
ट्रेनिंग टू ट्रेडिंग कॉन्सेप्ट हो रहा है पॉपुलर
दिव्या रावत की मुहिम अब धीरे-धीरे रंग ला रही है. अन्तर्राष्ट्रीय एनजीओ की नौकरी छोड़ चमोली-गढ़वाल के कोट कंडारा की दिव्या रावत अब मशरूम ट्रैनिंग दे रही हैं. उसका सपना है कि देश में उत्तराखंड मशरूम कैपिटल बने. दिव्या रावत न सिर्फ लोगों को मशरूम उत्पादन की ट्रैनिंग दे रही हैं बल्कि अब वे उन्हीं से मशरूम भी खरीद रही है. दिव्या हर दिन करीब 2500 किलो मशरूम खरीदती है.
दिव्या रावत से अभी तक करीब दस हजार से ज्यादा लोग प्रशिक्षण ले चुके हैं. देश के लगभग सभी राज्यों से मशरूम और कीड़ाजड़ी की ट्रैनिंग के लिए लोग दिव्या रावत के पास आते हैं. मुंबई से आई रेखा वैद्य का कहना है कि मशरूम उत्पादन एक अच्छा विकल्प है. वो भी इसकी ट्रैनिंग लेकर मुंबई के बाहरी इलाके में इसका उत्पादन करने की सोच रही हैं. यमुनागर से ट्रैनिंग में कोमल कुमार ने कहा कि वे भी कीड़ाजड़ी का उत्पादन करना चाहता हैं. ऋषिकेश से सुधांशु जोशी ने कहा कि मशरबम उत्पादन से कम समय में अच्छा कमाई की जा सकती है.
मशरूम से बनाया हेल्थ मसाला
दिव्या ने हाल ही में मशरूम से हेल्थ मसाला बाजार में उतारा है. इस मसाले में 97 प्रतिशत मशरूम का पाउडर है. इसमें काली मिर्च, अदरक और नमक है. इसमें एन्टीआक्सीडेंट और 42 प्रतिशत प्रोटीन होता है, जो हमारे शरीर में एनीमिया और इम्यूनुटी को मजबूत करता है. इसे किसी भी सब्जी, दाल में डाल सकते है साथ ही सूप भी बना सकते है. दिव्या रावत ने ना सिर्फ लोगों को ट्रैनिंग दे रही है बल्कि उन्हें मार्केटिंग का गुर भी सिखा रही है.
हो रही है ऑनलाइन बिक्री
एमेजन में भी दिव्या रावत के उत्पाद ऑनलाइन बिक रहे हैं. मशरूम से अचार, हेल्थ मसाला, पापड़. जबकि कीड़ाजड़ी से चाय, कैप्सूल और पाउडर की बिक्री हो रही है. दिव्या बताती हैं कि मशरूम उत्पादन करना बेहद आसान है और इसमें ज्यादा खर्चा भी है. पहाड़ों में जहां एक तरफ पलायन होने की वजह से कई गांव खाली होते जा रहे हैं, वहीं दिव्या के एक कदम ने पहाड़ छोड़कर जा रहे लोगों में आशा की एक नई किरण जगाई है.