आज चैत्र मास की तृतीया तिथि के दिन गणगौर व्रत रखा जाता है। आज के दिन माता पार्वती और भगवान शिव की उपासना करने से भक्तों को विशेष लाभ मिलता है और जीवन में आ रही सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं।
हिन्दू पंचांग के अनुसार आज यानि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन गणगौर व्रत रखा जाता है। यह व्रत मुख्य रूप से राजस्थान व ब्रज के कुछ इलाकों में अधिक प्रचलित है। इस दिन सुहागिन महिलाएं परिवार के कल्याण के लिए और पति की दीर्घायु के लिए भगवान शिव व माता पार्वती की उपासना करती हैं। साथ ही अविवाहित कन्याएं अच्छे और योग्य वर की कामना करते हुए, इस व्रत का पालन करती हैं। आइए जानते हैं गणगौर व्रत पूजा मुहूर्त और विधि
गणगौर 2023 पूजा मुहूर्त
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के गणगौर व्रत रखा जाता है, जिसे गौरी व्रत के नाम से भी जाना जाता है। बता दें कि आज के दिन सुबह 06 बजकर 21 मिनट से दोपहर 01 बजकर 22 मिनट तक सर्वार्थ सिद्धि योग का निर्माण हो रहा है। साथ ही दोपहर 01 बजकर 22 मिनट से 25 मार्च सुबह 06 बजकर 20 मिनट तक है रवि योग रहेगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, आज के दिन इस शुभ योग में पूजा-पाठ करने से साधकों को विशेष लाभ मिलता है।
गणगौर व्रत 2023 पूजा विधि
- शास्त्रों में बताया गया है कि सुहागिन महिलाओं द्वारा गणगौर व्रत रखने से पति को दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है और परिवार में सुख-समृद्धि का आगमन होता है। आज के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की उपासना का विधान है। गणगौर पूजा के लिए शुभ मुहूर्त में मिट्टी से निर्मित भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा को सुंदर वस्त्र पहनाकर स्थापित करें। इसके बाद माता पार्वती को सुहाग की सामग्री अर्पित करें।
- ऐसा करने के बाद दीवार पर श्रृंगार लगाने का विधान है। इसके लिए 16 बिंदियां, रोली, मेहंदी और काजल का प्रयोग किया जाता है। इसके बाद भगवान शिव को धूप-दीप, चंदन, अक्षत और फल अर्पित करें। एक थाली में चांदी का सिक्का, पान, सुपारी, दूध, गंगाजल, हल्दी, कुमकुम और दूर्वा डाल लें। इसे सुहाग जल के नाम से जाना जाता है।
- सबसे पहले दूर्वा से सुहाग जल के छींटे भगवान शिव और माता पार्वती पर डालें और फिर कुछ छींटे खुदपर भी छिड़क लें। इसके बाद ध्यानमग्न होकर भगवान शिव और माता पार्वती से अखंड सौभाग्य की प्रर्थना करें, साथ ही उन्हें चूरमा प्रसाद का भोग अर्पित करें। फिर पूजा के एक दिन बाद शुभ समय देखकर दोनों प्रतिमाओं को जल में विसर्जित कर दें।