जिंदगी में कमजोर वक़्त आते ही लोग शनि के असर पर विचार करने लगते हैं। अक्सर जिंदगी में बड़े अवरोध शनि की साढ़ेसाती तथा ढैया में आते हैं। अवरोधों को दूर करने का सर्वाेत्तम उपाय यही है कि कर्म की शुचिता तथा स्पष्टता रखी जाए। सत्कर्म स्वयं में भगवान की पूजा के समान हैं। सच्चाई एवं ईमानदारी से किए गए काम निश्चित ही फलित होते हैं। लोग शनि के प्रकोप तथा कठोर दृष्टि से बचना चाहते हैं सर्वप्रथम उन्हें अपने कामों पर ध्यान देना चाहिए। कामकाज में जरुरी सुधार करना चाहिए। किसी को भी ठगने, धोखा देने, झूठ बोलने तथा नीचा दिखाने की आदत छोड़ देनी चाहिए।

लोग साढ़ेसाती एवं ढैया में शनिदेव को मनाने के लिए उन्हें पूजने शनि मंदिरों में जाते हैं। ऐसा करने से मनोबल बढ़ता है किन्तु जिस प्रकार न्यायाधीश तथ्यों के आधार पर निर्णय सुनाता है उसी तरह शनिदेव कर्मफल के मुताबिक भाग्य का असर दिखाते हैं। वही ऐसे में शनिदेव की आरधना से कहीं ज्यादा कर्म की शुद्धि तथा सत्यता महत्वपूर्ण हो जाती है। शनि अपना असर साढे़ साती में ज्यादा दिखाते हैं।
वही यह जिंदगी में सामान्यतः तीन बार आती है। तीसरी साढ़ेसाती मनुष्य के जीवन में सबसे कष्टकर साबित होती है। मनुष्य के अच्छे कर्म ही यहां उसकी रक्षा करते हैं। शनिदेव जन साधारण की सेवा खुश होते हैं। मनुष्यों की भलाई से भाग्य प्रबल होता है। हर काम को आम जन के हित में समझ करने से शनिदेव कभी अप्रसन्न नहीं होते हैं।
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