चुनाव बड़ा हो या छोटा लेकिन उसके नतीजे पार्टी के लिए बहुत ही मायने रखते हैं, ऐसे में फिर चाहे वो पार्टी की हार हो या जीत। पार्टी अगर जीतती है तो उसकी खूबियों को गिनाया जाता है, लेकिन पार्टी हारती है तो उसके कामकाज पर सवाल उठाए जाते हैं। चुनाव में हार जीत तो होती रहती है, ये कोई नई बात नहीं है। बता दें कि यहां हम राजस्थान में हुए उपचुनाव की बात इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि साल के आखिरी में वहां विधानसभा चुनाव है, ऐसे में नतीजा वहां की सत्ताधारी पार्टी के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकती है। आइये जानते हैं कि हमारे इस रिपोर्ट में खास क्या है?
बीते गुरूवार को केंद्रीय वित्तमंत्री अरूण जेटली लोकसभा में बजट पेश करते हुए वाहवाही बटौर रहे थे, तो वहीं दूसरी तरफ राजस्थान में उनके नेता एक एक कर ध्वस्त होते दिखाई दे रहे थे। जी हां, राजस्थान में हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी को मात दी, जिसके बाद अगर ये कहा जाए कि राजस्थान में कांग्रेस संजती संवरती नजर आ रही है, तो ये गलत नहीं होगा। राजस्थान की सरकार के रवैये से जनता पेरशान हो चुकी है, ऐसे में जनता अब सत्ता परिवर्तन के मूड में दिखाई दे रही है, जोकि बीजेपी के लिए खतरे की घंटी बन सकती है। बताते चलें कि कांग्रेस की जीत के बाद बीजेपी ने अपनी हार के कारणों को तलाशना शुरू कर दिया, जिसमें से कई ऐसे कारण बाहर आएं, जिसकी वजह से बीजेपी को राजस्थान उपचुनाव में मुंह के बल गिरना पड़ा।
इन कारणों के अलावा बीजेपी के परंपरागत मतदाताओं का भी बीजेपी से नाराज होना, यो तो वाकई खतरे की घंटी बन सकती है। इन सबके बीच जो सबसे बड़ी वजह सामने आई वो ये है कि केंद्र और राज्य सरकार से युवा नाराज है, क्योंकि केंद्र और राज्य द्वारा रोजगार के नए अवसर पैदा नहीं किया, जोकि बीजेपी का बंटाधार करने के लिए पर्याप्त है।
ऐसे में अब बीजेपी को अगर राजस्थान में अपनी सत्ता को बरकरार रखना है तो इन कारणो से जल्द ही निपटना है क्योंकि चुनाव में सिर्फ 8 महीनों का ही समय बचा है, वरना राजस्थान की लहर देश के अन्य राज्यों में भी पड़ सकती है, जोकि बीजेपी कतई नहीं चाहती है। बहरहाल, देखना ये होगा कि क्या बीजेपी खुद को संभाल पाएगी या फिर जनता से जवाब लेने के लिए तैयार रहेगी?