गिरते भूजल स्तर ने बढ़ाई जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की चिंता, गर्मी आते ही पानी सप्लाई करने में सबका दम फूला
इंदौर में भूजल का स्तर लगातार गिर रहा है और अब प्रशासनिक अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के माथे पर भी चिंता की लकीरें खिंचने लगी हैं। सर्वाधिक जलसंकट वाले क्षेत्र बिचौली, श्रीजी वैली और उसके आसपास की दर्जनों कॉलोनियों में 800 फीट तक बोरिंग कराने पर भी पानी नहीं निकल रहा है। कई कालोनियों में साल के सिर्फ दो महीने बोरिंग में पानी आ रहा है और दस महीने यहां के लोग टैंकर पर निर्भर हैं।
पिछले सप्ताह महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने भूजल के लिए आयोजित बैठक में कहा कि यदि इसी तरह से हम भूजल का दोहन करते रहे तो आने वाले चार से पांच साल में हमें भूजल मिलना लगभग बंद हो जाएगा। उन्होंने कहा कि भूजल के अति दोहन को रोकने के साथ ही इसके स्तर को बढ़ाने के लिए सभी को समग्र रूप से काम करना होगा तभी हम इंदौर को पानी के संकट से बचा पाएंगे।
निगम के प्रयास नहीं आ रहे नजर
हालांकि इन सबके बावजूद प्रशासन और जनप्रतिनिधियों का इसके लिए कोई गंभीर प्रयास नजर नहीं आ रहा है। साल 2022 में शहर में एक लाख से अधिक रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाए गए थे लेकिन साल 2023 में सिर्फ तीन हजार रैन वाटर हार्वेस्टिंग लगे। साल 2024 में तो इसके लिए कोई योजना ही नहीं बनी। अभी इंदौर का 25 प्रतिशत हिस्सा अप्रैल के बाद पानी के लिए तरस जाता है। जिस तरह से शहर में बाहर से लोग आकर बस रहे हैं माना जा रहा है कि साल 2025 के बाद शहर का 40 प्रतिशत हिस्सा पानी के लिए तरस जाएगा। यह क्षेत्र पूरी तरह से बाहर से बुलाए जाने वाले टैंकरों के भरोसे रहेगा। गिरते भूजल की वजह से यहां अप्रैल में ही पानी समाप्त हो जाएगा।
चेता रही हैं रिपोर्ट्स
कुछ समय पहले आई सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) की रिपोर्ट के अनुसार इंदौर में भूजल का स्तर क्रिटिकल स्थिति में पहुंच गया है। इसी तरह लगातार भूजल दोहन के कारण भविष्य में सूखे का खतरा बढ़ सकता है। भूजल स्तर पिछले 10 वर्षों में 10 मीटर से अधिक गिर गया है। इंदौर में भूजल का स्तर 2012 में 150 मीटर था, जो 2023 में 160 मीटर से अधिक हो गया है। रिपोर्ट के अनुसार यदि भूजल दोहन इसी गति से जारी रहा तो 2030 तक भूजल स्तर 200 मीटर से अधिक गहरा हो सकता है। हाल ही में नीति आयोग ने अनुमान लगाया है कि अगले एक दशक में देशभर के करीब 30 शहरों में जल संकट उत्पन्न हो सकता है। इसमें दक्षिण राज्य के कई शहर हैं और एमपी का इंदौर इस सूची में शामिल है।
आंकड़ों में समझें भयावह हालात
70 किलोमीटर दूर से आता है इंदौर में नर्मदा का जल
400 करोड़ रुपए हर साल होता है निगम का इस पर खर्च
500 एमएलडी पानी हर दिन नर्मदा से आ रहा इंदौर
836 एमएलडी नर्मदा का पानी चाहिए अभी शहर को
30 एमएलडी पानी तालाबों से मिलता है शहर को
105 पानी की टंकी हैं अभी नगर निगम क्षेत्र में
32 नई टंकियों की जरूरत है पानी के लिए
10,000 बोरिंग हैं शहर में अभी
25 प्रतिशत हिस्से में अभी नर्मदा लाइन नहीं है शहर के
33 लाख की वर्तमान जनसंख्या के लिए भी यह कम
2025 में बढ़ने वाली जनसंख्या को नर्मदा का पानी पड़ेगा बेहद कम
12 में से 10 महीने पानी के टैंकर पर निर्भर हैं शहर की 15 कालोनी
800 फीट तक बोरिंग पर भी पानी नहीं मिल रहा बिचौली मर्दाना जैसे दस से अधिक क्षेत्रों में
280 टैंकर रोज चल रहे हैं निगम के
क्यों गिरा भूजल
अनियंत्रित बोरिंग
बढ़ती आबादी
भूजल दोहन
अनियंत्रित शहर विस्तार
जल संचय की कमी
क्या है हल
रिचार्ज पिट बनाना
तालाबों का निर्माण
हर घर को वाटर हार्वेस्टिंग में लाना
सिटी फारेस्ट डवलप करना
क्या बोले जिम्मेदार
जल संकट को देखते हुए शहर में अलग-अलग टीमों के माध्यम से बड़ा अभियान शुरू किया जाएगा। घर-घर में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाने के साथ पुराने रिचार्ज शाफ्ट को बदला जाएगा। रहवासी क्षेत्र के साथ व्यावसायिक क्षेत्र और उद्योगों से जुड़े प्रतिनिधियों को भी रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगवाने के निर्देश दिए हैं। शहर में मौजूद वाटर बॉडी के कैचमेंट एरिया और चैनल को साफ किया जाएगा। इससे बारिश के पानी को ज्यादा से ज्यादा एकत्रित किया जा सकेगा।
– महापौर पुष्यमित्र भार्गव
शहर के तालाबों के गहरीकरण पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। इससे तालाबों के साथ आसपास स्थानों पर पानी का भराव बढ़ जाएगा। नगर निगम ने अपने सभी इंजीनियरों को वाटर हार्वेस्टिंग के लिए सख्त निर्देश दिए हैं।
– शिवम वर्मा, नगर निगम कमिश्नर
इंदौर के हालात लगातार चिंताजनक होते जा रहे हैं। प्रशासन, जनता और जनप्रतिनिधियों को मिलकर प्रयास करना होंगे। यदि अभी नहीं चेते तो आने वाले चार से पांच साल में इंदौर में भूजल लगभग समाप्त हो जाएगा। इसके लिए हर घर से वाटर हार्वेस्टिंग करना होगी। सड़क, मैदान सभी जगह कवर करना होगी। पानी के अति दोहन को रोकना होगा और कड़े प्रतिबंध लगाना होंगे।
– सुधींद्र मोहन शर्मा, भूजल विशेषज्ञ