इंटरनेट के बारे में भी यही नियम लागू होता है। इंटरनेट ने हमारे जीवन को सुलभ जरूर बना दिया हो लेकिन उस पर ज्यादा समय बिताना खतरनाक हो सकता है। इंटरनेट का हद से ज्यादा उपयोग हमारे मस्तिष्क में बदलाव लाता है जो हमारे ध्यान, याददाश्त, सामाजिक व्यवहार को प्रभावित करता है।
इंटरनेट हमारी चेतना के एक विशिष्ट दायरे में लगातार और तेज परिवर्तन करता है जोकि मस्तिष्क में बदलाव का कारण बनता है। अब शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि हमारी चेतना की प्रक्रिया को बदलने में इंटरनेट किस तरह से भूमिका निभाता है। ऑस्ट्रेलिया की वेस्टर्न सिडनी यूनिवर्सिटी के जोसेफ फर्थ ने बताया कि इस अध्ययन से जो मुख्य बात सामने आती है वह यह है कि इंटरनेट के ज्यादा इस्तेमाल से मस्तिष्क के कई हिस्से प्रभावित होते हैं। जिसको पाने के लिए ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ती। इंटरनेट की तमाम सूचनाएं और संकेत हमारे ध्यान को लगातार विभाजित रखते हैं जो हमें एक कार्य पर एकाग्रता बनाए रखने के लिए हमारी क्षमता को कम कर सकती है।
ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर, अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने बताया कि इंटरनेट के प्रभावों पर अधिकतर शोध अभी केवल वयस्कों पर ही किए गए हैं, लेकिन छोटे बच्चों पर भी इस तरह के शोध की बहुत आवश्यकता है। इंटरनेट मस्तिष्क की संरचना और कार्यप्रणाली दोनों को बदलने की क्षमता रखता है। अभिभावकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके बच्चे इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस से कम खेलें बाहरी शारीरिक गतिविधियां ज्यादा करें, जितना संभव हो सके खुद भी बच्चों के साथ खेलें। इससे उनका संपूर्ण विकास होगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन 2018 के दिशा-निर्देश के अनुसार छोटे बच्चों (2-5 वर्ष की आयु) को दिन में केवल एक घंटे या उससे भी कम स्क्रीन के संपर्क में रहना चाहिए। परिजनों को चाहिए कि वह यह सुनिश्चित करें कि उनके बच्चे बहुत अधिक समय डिजिटल प्लेफार्म पर न बिताएं, जिससे की उनकी फिजिकल एक्टिविटी, सामाजिक संपर्क न बाधित हो।