लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की सियासत काफी अहम होती है। कहते हैं दिल्ली में प्रधानमंत्री की सरकार का रास्ता उत्तर प्रदेश से तय होता है। ऐसे में आने वाले आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है और सटीक रणनीति की तैयारी में जुट गई है।

पार्टी चुनाव से पहले अपने संसद सदस्यों (सांसदों) का रिपोर्ट कार्ड तैयार करवा रही है। कहा जा रहा है कि सांसदों की रिपोर्ट कार्ड के आधार पर तय किया जाएगा कि उन्हें टिकट दिया जाएगा या नहीं दिया जाएगा।
ऐसे सांसदों का कट सकता है टिकट
कम अटेंडेंस रिकॉर्ड वाले सांसदों को इस बार टिकट से हाथ धोना पड़ सकता है क्योंकि पार्टी की आंतरिक यूनिट उनके खिलाफ कदम उठा सकती है। इसके अलावा सांसदों का रिपोर्ट कार्ड बेहद ही गुप्त रखा जा रहा है। पार्टी अपने निर्वाचन क्षेत्र के अलावा, सार्वजनिक रूप से सांसदों के आचरण पर भी विचार कर अपना रिपोर्ट कार्ड तैयार कर रही है।
उत्तर प्रदेश राज्य ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की भारी जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
16 सीटों पर हैं बीजेपी की नजर
इस बार बीजेपी का लक्ष्य यूपी में लोकसभा की सभी 80 सीटों पर कब्जा करना है, क्योंकि इसका मेन फोकस उन 16 सीटों पर होगा, जिसे वह पिछले चुनावों में नहीं जीत सकी थी। बीजेपी के जीतने के लिए सबसे महत्वपूर्ण सीटों में से एक रायबरेली होगी – जिसकी अगुवाई कांग्रेस की पूर्व प्रमुख सोनिया गांधी करती हैं।
2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने ‘मोदी लहर’ में 64 सीटों पर जीतने में रही। इसलिए बीजेपी के लिए एकमात्र चुनौती उत्तर प्रदेश से लगातार तीसरी बार ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतना है। बीजेपी राज्य के विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनावों में अपने असेसमेंट टेस्ट के साथ पहले ही प्रयोग कर चुकी है, जिसका उसे सबसे ज्यादा फायदा हुआ।
अब देखना होगा कि आने वाले चुनाव में क्या बीजेपी अपने इतिहास को दोहरा पाती हैं या नहीं।