आखिर कैसे लौटे स्वर्ग की वह शांति

देशभर में शिकारों, सेवफल और केसर के लिए जानी जाने वाली धरती इन दिनों दहल रही है। अपने घर-परिवार को मीलों दूर छोड़कर हिंदुस्तान की सरहद पर खड़ा जवान लोगों के पत्थर, उलाहनाऐं और मार सह रहा है। आखिर कैसे लौटे स्वर्ग की वह शांतिकहीं चिंगारी सुलगकर आग की भीषण लपटों में बदल रही है तो कहीं लोग अपने घरों में दबे छुपे रहने के लिए मजबूर हैं। दरअसल जम्मू कश्मीर में बीते कई समय से अशांत वातावरण है। कथिततौर पर भटके हुए कश्मीरी युवा सेना के जवानों पर पत्थर बरसा रहे हैं।

घायल कोई भी हो रहा है। जीवन किसी का भी प्रभावित हो रहा है इन सभी में हिंदुस्तान ही रो रहा है। जी हां, वह कश्मीरी जो जम्मू कश्मीर को लेकर अपने मन में कई संशय पाले बैठा है भारत की स्वाधीनता के इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी खुद को अलग थलग मानता है। अब तो हालात ऐसे हो रहे हैं कि आग कश्मीर में लगती है और उसका असर राजस्थान तक होता है। खुद को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए आए आम कश्मीरी युवा पर इस अशांत माहौल का असर होता है और उसे पीट दिया जाता है।

पत्थर तो एक जवान पर फैंका गया था लेकिन उसकी चोट से हिंदुस्तान लगभग छलनी छलनी होता नज़र आने लगा है। यही तो चाहती है पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और हम हैं कि उसे अपने नापाक इरादों में सफल होने दे रहे हैं। देश में जब नोटबंदी का निर्णय हुआ तो यह माना गया कि अब जाली नोट की परेशानी समाप्त होने के साथ जम्मू कश्मीर में होने वाली पत्थरबाजी भी बंद हो जाएगी। मगर अब फिर से पत्थरबाजी का दौर प्रारंभ हो गया है।

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पहले जहां खुले तौर पर आईएसआईएस के ध्वज फहराए जा रहे थे वहां अब सेना के जवानों के प्रति रोष दिखाया जा रहा है। घुसपैठ से उपजी परेशानी से निजात पाने के लिए सेना के जवानों को सीमा पर तैनात किया गया है तो पाकिस्तान घुसपैठ में नाकाम होने के कारण कथित प्रदर्शनकारियों के माध्यम से अपने मंसूबे सफल करने का प्रयास कर रहा है लेकिन वह यह भूल रहा है कि यह वह देश है जिसने समय के साथ कई संस्कृतियों को अंगीकार बनाया और फिर ये संस्कृतियां एक महासमुद्र की तरह एकाकार हो गईं।

इसी तरह से प्रयास किया जा रहा है कि पत्थरबाज युवाओं को मुख्यधारा में जोड़ दिए जाऐं और इस तरह से शांति और भाईचारे के साथ अपनेपन की नई पहल की जा सके, जिसके माध्यम से कश्मीरी युवा खुद को कश्मीरी मुसलमान से अधिक भारतीय मान सके।

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