लंका दहन रामायण का एक महत्वपूर्ण प्रसंग है. सभी जानते हैं कि हनुमान जी ने लंका को जलाकर भस्म कर दिया था. लेकिन लंका के जलने का यही कारण था या फिर इसके पीछे कोई ऐसी वजह है जिसके बारे में अधिक लोग नहीं जानते हैं. दरअसल मां पार्वती के श्राप के कारण रावण की सोन की लंका जलकर राख हो गई थी.
कथा कुछ यूं हैं कि एक बार भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी मां पार्वती के निमंत्रण पर कैलाश पहुंचे. इस दौरान मां लक्ष्मी ठंड ठिठुर रही थी. जब उनसे न रहा गया तो उन्होंने पार्वती से कहा कि आप राजकुमारी होते हुए भी इस हिम-पर्वत पर इतने ठंड में कैसे रह रहीं हैं? इससे मां पार्वती को बहुत दुख है.
कुछ दिनों बाद शिव और पार्वती देवी लक्ष्मी के बुलावे पर बैकुंठ धाम पहुंचे. बैंकुठ धाम का वैभव देखकर मां पार्वती ने शिव से भी अत्यंत भव्य महल बनाने की इच्छा जताई. शिव ने देवशिल्पी विश्कर्मा को लंका बनाने की काम सौंपा. इसके बाद ही उन्होंने सोने के महल का निर्माण किया.
इस महल की वस्तुप्रतिष्ठा की पूजा के लिए ऋषि विश्रवा को बुलाया गया था लेकिन वह महल की सुंदरता के दीवाने हो गए और उन्होंने यह महल ही शिव से दान में मांग लिया. शिव ने ऋषि विश्रवा को यह महल दान कर दिया.
मां पार्वती इससे बड़ी क्रोधित हुई और उन्होंने विश्रवा को श्राप देते हुए कहा कि तेरी यह नगरी भस्म हो जाए. पार्वती के श्राप के कारण ही रावण द्वारा रक्षित वह लंका हनुमान ने फूँक डाली थी. गौरतलब है कि श्रषि विश्रवा ही रावण के पिता थे.
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