देश में निवेश करने का ट्रेंड तेजी से बढ़ रहा है। पहले निवेश सिर्फ बड़े और वरिष्ठ नागरिक अपने भविष्य में वित्तीय सुरक्षा के लिए करते थे, लेकिन 21वीं सदी के नए भारत में अब युवा भी निवेश में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। चाहे 500 रुपये ही क्यों न निवेश करें, लेकिन युवा निवेश की तरफ तेजी से बढ़ते जा रहे हैं और यही वजह है कि अब निवेश के तरीकों को भी बहुत आसान, सरल, सुलभ और ऑनलाइन बना दिया गया है।
सामान्य तौर पर दो तरह के निवेशक होते हैं। या तो वे शेयर बाजार में निवेश करेंगे या तो म्यूचुअल फंड में। जहां एक तरफ शेयर बाजार में आप डायरेक्ट निवेश कर कंपनी के शेयर खरीदते हैं, वहीं दूसरी ओर म्यूचुअल फंड में आप शेयर बाजार में इन-डायरेक्ट निवेश करते हैं।
Diversification:
डायवर्सिफिकेशन को अक्सर म्यूचुअल फंड के मुख्य लाभों में गिना जाता है, लेकिन हमेशा अधिक विविधीकरण अच्छा नहीं होता। कभी-कभी ये जोखिम साबित होता है। ज्यादा विविधीकरण से आपकी ऑपरेटिंग कॉस्ट बढ़ जाती है, जिससे आपको हुए मुनाफे का पता नहीं चलता।
उतार-चढ़ाव वाला रिटर्न :
म्युचुअल फंड निश्चित गारंटीड रिटर्न की पेशकश नहीं करता है, इसलिए आपको अपने म्यूचुअल फंड के मूल्य में गिरावट सहित किसी भी घटना के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। हर म्यूचुअल फंड के पीछे एक पेशेवर प्रबंधन और टीम होती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वह आपके फंड को खराब प्रदर्शन से बचाएगा।
नहीं रहेगा आपका कंट्रोल:
म्यूचुअल फंड आपको बाजार में सीधा निवेश करने की इजाजत नहीं देता है। सभी प्रकार के म्युचुअल फंड का प्रबंधन फंड मैनेजर द्वारा किया जाता है। कई मामलों में, फंड मैनेजर को विश्लेषकों की एक टीम द्वारा सलाह और सहायता दी जाती है।
नतीजतन, एक निवेशक के रूप में, आपका अपने निवेश पर कोई नियंत्रण नहीं होता है। आपके फंड से संबंधित सभी बड़े फैसले आपके फंड मैनेजर द्वारा लिए जाते हैं।
फंड मूल्यांकन :
कहीं पर भी निवेश करने से पहले आपको रिसर्च करना पड़ता है और कई निवेशकों को बड़े पैमाने पर रिसर्च करने और विभिन्न फंडों के मूल्य का मूल्यांकन करने में मुश्किल हो सकती है। म्युचुअल फंड का नेट एसेट वैल्यू (एनएवी) निवेशकों को फंड के पोर्टफोलियो का मूल्य प्रदान करता है।