भगवान श्रीराम की नगरी भगवान श्रीकृष्ण के भी रंग से रोशन है। नगरी के हजारों मंदिरों में भगवान राम की तरह ही भगवान श्रीकृष्ण की पूजा होती है और कृष्ण जन्मोत्सव भी राम जन्मोत्सव की तर्ज पर मनाया जाता है। रामनगरी अयोध्या में कृष्ण के आगमन की विरासत भी जीवंत है। रामभक्तों की प्रमुख पीठ कनकभवन में महाराज विक्रमादित्य के जमाने की एक शिला संरक्षित है, उसके अनुसार जरासंध का वध करने के बाद तीर्थों का भ्रमण करते हुए श्रीकृष्ण अयोध्या भी आए और उस कनक भवन को देखा, जो उनके समय तक टीले की शक्ल में सिमट कर रह गया था।
शिला पर उत्कीर्ण श्लोक के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने उस टीले पर अत्यंत आनंद का अनुभव किया। इस श्लोक की व्याख्या के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने कनक भवन का जीर्णोद्धार कराया और मूर्तियों की स्थापना कराई। यह मूर्ति आज भी कनक भवन में स्थापित है। इसी शिलालेख में आगे वर्णन मिलता है कि कृष्ण के युगों बाद युधिष्ठिर संवत 2431 की पौष कृष्ण द्वितीया यानी लगभग दो हजार वर्ष पूर्व गंधर्वसेन के पुत्र नृपतिलक विक्रमादित्य ने कनकभवन का जीर्णोद्धार कराया।
भगवान कृष्ण के अयोध्या आने की पुष्टि रुक्मिणी कुंड से भी होती है। अयोध्या का अतीत विवेचित करने वाले ग्रंथ रुद्रयामल के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण रुक्मिणी सहित यहां आए और कुछ काल तक यहां निवास कर पूर्व जन्म का स्मरण कराने वाले तीर्थों का जीर्णोद्धार कराया। साथ ही रुक्मिणी कुंड के रूप में अपने आगमन का स्मारक निॢमत कराया।
अयोध्या में विशेष अनुष्ठान की परंपरा : प्रत्येक वर्ष कार्तिक कृष्ण पक्ष की नवमी को यहां विशेष अनुष्ठान की परंपरा भी स्थापित थी। 1902 में तत्कालीन प्रशासन की पहल पर गठित एडवर्ड तीर्थ विवेचनी सभा ने रामनगरी और इसके आस-पास जिन 148 पौराणिक-ऐतिहासिक महत्व के स्थलों को चिन्हित किया, उसमें से एक रुक्मिणी कुंड भी शामिल था। हालांकि, रुक्मिणी कुंड आज नाम मात्र तक सिमट कर रह गया है। कुंडों को बचाने का अभियान चलाने वाले नाका हनुमानगढ़ी के महंत रामदास कहते हैं, नगरी के तकरीबन तीन दर्जन पौराणिक महत्व के कुंडों को संरक्षित करने की जरूरत है और भगवान कृष्ण के रामनगरी में आगमन को सुनिश्चित करने वाले रुक्मिणी कुंड को तो प्राथमिकता के आधार पर संरक्षित किया जाना चाहिए।
राम जन्मोत्सव की तर्ज पर मनाया जाता है कृष्ण जन्मोत्सव : रामानुरागी संत चैत्र शुक्ल नवमी को मनाए जाने वाले राम जन्मोत्सव की तरह भाद्र कृष्ण अष्टमी को श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाते हैं। राम जन्मोत्सव जहां दोपहर ठीक 12 बजे, तो कृष्ण जन्मोत्सव मध्य रात्रि 12 बजे मनाया जाता है। रामभक्तों की प्रमुख पीठ कनकभवन का राम जन्मोत्सव जितना आकर्षक होता है, श्रीकृष्ण जन्मोत्सव भी उतनी ही भव्यता से मनाया जाता है। तरीका बिल्कुल राम जन्म की तरह होता है। जन्मोत्सव के मुहूर्त से आधा घंटा पूर्व परात्पर ब्रह्म के पिंड विग्रह शालिग्राम को खीरे के बीच प्रतिष्ठित कर प्रतीकात्मक रूप से गर्भस्थ किया जाता है और ऐन जन्म के मुहूर्त में उनका प्राकट्य कराया जाता है। पंचामृत से अभिषेक के बाद शालिग्राम का वैदिक विधि-विधान से पूजन-शृंगार होता है। इसी के साथ मंदिरों में स्थापित भगवान के विग्रह का भी पूजन-शृंगार होता है।
रामनगरी में भगवान कृष्ण के भी मंदिर : मंदिरों में स्थापित भगवान के विग्रह का भी पूजन-शृंगार होने के बाद पट खुलता है और एक साथ रामनगरी के हजारों मठ-मंदिर प्राकट्य के घंटा-घड़ियाल से गूंज उठते हैं। वहीं, रामनगरी में भगवान कृष्ण के कुछ चुनिंदा मंदिर भी हैं। इनमें अयोध्या राज परिवार का राधा-बृजराज मंदिर, भाजपा नेता अभिषेक मिश्र का बृजमोहनकुंज आदि प्रमुख हैं। जगद्गुरु स्वामी रामदिनेशाचार्य के आश्रम हरिधाम गोपाल मंदिर में भी लड्डू गोपाल का मनोरम विग्रह स्थापित है।