भाजपा ने राज्यसभा उम्मीदवारों की घोषणा के सहारे भी मिशन 2019 पर निशाना साधा है। पार्टी ने प्रदेश से राज्यसभा सदस्य विनय कटियार को इस बार टिकट नहीं दिया है तो उनकी जगह पर दो पिछड़ों को प्रत्याशी बनाकर समीकरण को दुरुस्त करने की कोशिश की है। प्रत्याशियों में आंध्र प्रदेश के जीवीएल नरसिम्हा राव को छोड़ दें तो शेष सात प्रत्याशियों में दो पिछड़ा, दो ब्राह्मण, एक ठाकुर, एक जाटव और एक वैश्य को शामिल कर पार्टी के रणनीतिकारों ने प्रदेश के सामाजिक समीकरणों को साधने की कोशिश की है। कांता कर्दम के रूप में एक महिला को टिकट दिया गया है।
आगे बढ़ा यादव-जाटव जोड़ो अभियान
भाजपा ने यादव और जाटव बिरादरी के एक-एक व्यक्ति को टिकट देकर राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के मिशन यादव-जाटव जोड़ो अभियान को आगे बढ़ाया है। साथ ही पूर्वांचल के बलिया से पार्टी के सामान्य कार्यकर्ता और संघ के स्वयंसेवक सकलदीप राजभर को राज्यसभा भेजने का फैसला कर कार्यकर्ताओं की चिंता नहीं करने का संदेश दिया गया है।
ओमप्रकाश राजभर से निपटने की तैयारी
यही नहीं, सकलदीप राजभर को टिकट देकर प्रदेश में सरकार बनने के बाद से ही भाजपा के लिए सिरदर्द बन रहे ओमप्रकाश राजभर की नाराजगी से होने वाले नुकसान की भरपाई की तैयारी कर ली गई है। माना जाता है कि प्रदेश सरकार में पहले से ही पार्टी कोटे से मंत्री अनिल राजभर और अब सकलदीप राजभर के जरिये भाजपा ने 2019 के लिए पूर्वांचल के राजभर वोट को साथ जोड़ने की तैयारी की है।
अखिलेश के गढ़ में सेंधमारी
भाजपा ने प्रत्याशियों के जरिये सपा के क्षत्रपों मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के गढ़ में भी सेंधमारी की कोशिश की है। साथ ही पश्चिम के जातीय गणित को भाजपा के अनुकूल बनाने की कोशिश की है। हरनाथ यादव, डॉ. अशोक वाजपेयी, विजय पाल तोमर, अनिल जैन व कांता कर्दम इसका प्रमाण हैं। संघ के प्रचारक रहे हरनाथ यादव का प्रभाव क्षेत्र भी इटावा, मैनपुरी, एटा, कन्नौज सहित पश्चिम के पूरे इलाके में है। वे वहां से निर्दलीय एमएलसी रह चुके हैं।
भाजपा ने उनके जरिेये पश्चिम के इस इलाके के यादवों को जोड़ने की कोशिश की है। साथ ही जैन, वाजपेयी, कर्दम और तोमर के जरिये वैश्य, ब्राह्मण, जाटव और ठाकुर जातियों को भी जोड़ने की कोशिश की है। कल्याण सिंह के चलते इस क्षेत्र का लोध भाजपा के साथ माना जाता है। केशव मौर्य के चलते मौर्य, कुशवाहा व सैनी जैसी पिछड़ी जातियों की भी भाजपा के साथ लामबंद मानी जाती है।
ब्राह्मणों को संदेश, नरेश को नसीहत
भाजपा ने सपा से नरेश अग्रवाल का टिकट कटने के बाद उनके धुर विरोधी डॉ. अशोक वाजपेयी को राज्यसभा भेजने का फैसला कर अवध और पश्चिम में नरेश विरोधियों को अपने साथ लामबंद करने की कोशिश की है। साथ ही ब्राह्मणों को यह संदेश देने का प्रयास किया है कि भाजपा को उनकी चिंता है।
पश्चिम को तरजीह के साथ संदेश भी
प्रत्याशियों में सकलदीप राजभर के रूप में पूरब के सिर्फ एक व्यक्ति को भागीदारी दी गई है। वहीं, पश्चिम से अनिल जैन, हरनाथ यादव, कांता कर्दम और विजय पाल तोमर के रूप में चार लोगों को मौका दिया गया है। मध्य उत्तर प्रदेश से भी अशोक वाजपेयी के रूप में सिर्फ एक सदस्य को भागीदारी मिली है। पर, माना जाता है कि इसे आगे विधान परिषद के चुनाव में हिस्सेदारी बढ़ाकर संतुलित कर लिया जाएगा। फिलहाल पश्चिम से भाजपा को लेकर जो थोड़ी नकारात्मक खबरें आ रही थीं, उसे देखते हुए ही पार्टी ने पश्चिम को यह संदेश देने की कोशिश की है कि भाजपा को इस इलाके का पूरा ख्याल है।
दलित समीकरण पर दांव
पश्चिम में दलित और उसमें भी खासतौर पर जाटव बिरादरी काफी संख्या में है। मायावती भी पश्चिम से आती हैं। वे भी जाटव हैं। ऐसे में कांता कर्दम को राज्यसभा भेजकर पार्टी ने यह बताने की कोशिश की है कि जाटव उसके एजेंडे से बाहर नहीं हैं। प्रदेश में जाटव समाज का कोई मंत्री न होने की भरपाई भी कांता के जरिये कर ली गई है। विजयपाल सिंह तोमर के जरिये किसानों के साथ ही पश्चिमी यूपी के ठाकुरों को संदेश देने की कोशिश की गई है।
अरुण जेटली का अर्थ
दिल्ली के अरुण जेटली, राष्ट्रीय महासचिव डॉ. अनिल जैन और आंध्र प्रदेश के जीवीएल नरसिम्हा राव को उत्तर प्रदेश से राज्यसभा भेजने का फैसला अकारण नहीं है। पहले हरदीप पुरी और अब जेटली तथा जैन व राव को यूपी से राज्यसभा ले जाकर भाजपा ने एक तरह से यूपी को राष्ट्रीय राजनीति में खास महत्व देने का संदेश दिया है।
जानें, इन प्रत्याशियों के बारे में
अरुण जेटली
केंद्रीय वित्त मंत्री और सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता अरुण जेटली अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के पदाधिकारी रह चुके हैं। वे दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष भी रहे। आपातकाल के विरुद्ध आंदोलन में उन्होंने हिस्सा लिया और जेल भी गए। राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष की भी जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। प्रधानमंत्री रहते अटल बिहारी वाजपेयी ने 1999 में अपनी सरकार में उन्हें सूचना प्रसारण राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बनाया। नवंबर 2000 में वाजपेयी ने ही उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाते हुए उद्योग, वाणिज्य और कानून मंत्रालयों की जिम्मेदारी सौंपी। जेटली पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता भी रहे। वर्ष 2014 का लोकसभा चुनाव अमृतसर से हार गए थे।
जीवीएल नरसिम्हा राव
जीवीएल नरसिम्हा राव भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं। आंध्र प्रदेश के रहने वाले नरसिम्हा राव जाने-माने चुनाव विश्लेषक भी हैं। उन्होंने ही सबसे पहले वर्ष 2011 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की भविष्यवाणी की थी। नरसिम्हा ने कई किताबें भी लिखी हैं।
डॉ. अशोक वाजपेयी
चार दशक तक समाजवादी रहे डॉ. अशोक वाजपेयी प्रदेश का बड़ा ब्राह्मण चेहरा माने जाते हैं। वे पिछले वर्ष विधान परिषद की सीट और सपा छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। उनके इस्तीफेसे खाली हुई सीट पर उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा निर्विरोध एमएलसी चुने गए। भाजपा ने वाजपेयी को राज्यसभा टिकट के रूप में रिटर्न गिफ्ट के साथ ही ब्राह्मण समीकरण साधने की कोशिश की है। मूलत: हरदोई के रहने वाले वाजपेयी सात बार विधायक रह चुके हैं। वाजपेयी भले ही लंबे समय तक मुलायम सिंह यादव के साथ रहे हों, लेकिन मूलत: संघ के स्वयंसेवक हैं। कुछ कारणों से जनता पार्टी के गठन और उसके बाद उसके टूटन पर मुलायम सिंह यादव के साथ जुड़ गए। आपातकाल के दौरान जेल गए। सपा के भी संस्थापक सदस्यों में रहे। कई सरकारों में मंत्री रहे। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में सपा ने उन्हें लखनऊ से उम्मीदवार घोषित किया था, पर बाद में अभिषेक मिश्र को लड़ाया। वाजपेयी सपा की राजनीति में नरेश अग्रवाल के धुर विरोधी माने जाते हैं।
सकलदीप राजभर व डॉ. अनिल जैन हैं भाजपा के पुराने कार्यकर्ता
सकलदीप राजभर
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे बेल्थरा रोड विधानसभा क्षेत्र के बिहरा हरपुर निवासी सकलदीप राजभर भाजपा के पुराने कार्यकर्ता हैं। वे 1995 में ग्राम प्रधान चुने गए थे। 2002 में भाजपा प्रत्याशी के रूप में उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। उन्होंने इंटर तक शिक्षा ग्रहण की है। इनका व्यवसाय कृषि है। कुछ साल पहले तक वे तहसील में बतौर मोहर्रिर काम करते थे।
डॉ. अनिल जैन
मूल रूप से फिरोजाबाद के रहने वाले डॉ. अनिल जैन भाजपा के पुराने कार्यकर्ता हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े रहे जैन भाजपा में कई पदों पर रह चुके हैं। मौजूदा समय में वे राष्ट्रीय महासचिव तथा छत्तीसगढ़ और हरियाणा के प्रभारी हैं। वह ऑल इंडिया टेनिस एसोसिएशन के भी पदाधिकारी हैं। वे भारत स्काउट गाइड सहित कई संस्थाओं के पदाधिकारी भी रहे हैं।
विजय पाल तोमर, हरनाथ सिंह यादव व कांता कर्दम को मिला मौका
विजय पाल तोमर
मेरठ के रहने वाले विजय पाल तोमर जनता दल से एक बार सरधना क्षेत्र से विधायक रहे। फिर वह भाजपा में आ गए। किसानों के बीच काम करने के कारण भाजपा ने उन्हें पहले किसान मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया। फिर उन्हें तरक्की देकर मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया। सपा के शासनकाल में भाजपा ने तोमर की अगुवाई में गन्ना किसानों की समस्याओं के समाधान को लेकर संघर्ष किया था। लखनऊ में भी बड़ा प्रदर्शन किया गया था।
हरनाथ सिंह यादव
संघ के प्रचारक रहे एटा के हरनाथ सिंह यादव ने भाजपा में विभाग संगठन मंत्री और प्रदेश महामंत्री पद की भी जिम्मेदारी संभाली। 1990 में विधान परिषद के स्नातक कोटे से सदस्य के लिए भाजपा से चुनाव लड़े लेकिन हार गए। 1996 में टिकट नहीं मिला तो निर्दलीय लड़कर चुनाव जीता। इसके बाद सपा में शामिल हो गए। वर्ष 2002 में वे सपा के टिकट पर स्नातक कोटे की सीट का चुनाव लड़े और जीते। कुछ वर्षों पहले उनकी सपा से भी नहीं पटी और उन्होंने सपा छोड़ दी। बाद में भाजपा में लौट आए।
कांता कर्दम
भाजपा के आठ उम्मीदवारों में सिर्फ एक महिला कांता कर्दम हैं। मेरठ की रहने वाली कांता जाटव बिरादरी की हैं। निकाय के पिछले चुनाव में पार्टी ने उन्हें मेरठ नगर निगम में महापौर पद का चुनाव लड़ाया था, पर वह हार गईं। कर्दम भाजपा में कई पदों पर रहीं। इस समय वह लगातार दूसरी बार भाजपा की प्रदेश उपाध्यक्ष हैं। पार्टी इन्हें विधानसभा का भी चुनाव लड़ा चुकी है।