पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी अगले सप्ताह दिल्ली आने की घोषणा से सियासी हलकों में चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है। हालांकि 31 जुलाई से शुरू हो रहे दो-दिवसीय दौरे को गैर सियासी बताया गया है, लेकिन माना जा रहा है कि वे महागठबंधन को लेकर अन्य नेताओं का रुख भांपने आ रही हैं। 
बता दें कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मंगलवार को ही प्रधानमंत्री पद पर दावा छोड़कर किसी अन्य विपक्षी नेता को गठबंधन की तरफ से दावेदार मानने की घोषणा की थी। इसके ठीक अगले दिन ममता के दौरे की योजना सामने आने के कारण भी इस बात को बल मिला है। तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने भी बुधवार को राहुल गांधी की घोषणा का स्वागत करते हुए अपनी पार्टी के पश्चिम बंगाल की सभी 42 सीट जीतकर ममता को प्रधानमंत्री बनाने की घोषणा से दिल्ली दौरे का मंतव्य आंका जा रहा है।
अल्पसंख्यकों से जुड़े कार्यकमों में जाएंगी
ममता 31 जुलाई को दिल्ली पहुंचेंगी और उस दिन केवल अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़े दो कार्यक्रमों में हिस्सा लेंगी। पहले वे प्रतिष्ठित सेंट स्टीफेन्स कॉलेज में छात्रों और शिक्षकों को संबोधित करेंगी। उसके बाद दोपहर तीन बजे से कांस्टीट्यूशन क्लब में कैथोलिक बिशप कांफ्रेंस ऑफ इंडिया (सीबीसीआई) के एक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि होंगी। ये कार्यक्रम भले ही राजनीतिक न हों, लेकिन राजनीतिक महत्व के अवश्य हैं। अगले दिन यानी एक अगस्त को वे पूरे दिन संसद भवन में ही रहकर सभी राजनीतिक दलों के नेताओं से भेंट करेंगी।
राहुल का रणनीतिक फैसला
कांग्रेस कार्यसमिति के फैसले के बावजूद राहुल ने खुद को प्रधानमंत्री पद की दौड़ से अलग कर एक तीर से कई निशाने साधे हैं। कांग्रेस नेताओं का मानना है कि इस एक ऐलान से राहुल ने उन भाजपाइयों के आरोपों की हवा निकाल दी है, जो उन्हें ‘सत्ता का भूखा’ करार दे रहे थे। साथ ही इससे ‘एक परिवार के शासन’ के आरोप भी नहीं लग पाएंगे।
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