सुबह की शुरुआत अगर अच्छी हो तो सारा दिन अच्छे से गुजरता है. सुबह का असर आपके पूरे दिन के काम पर होता है। इसलिए जरुरी है कि आप दिन की शुरुआत इस तरह से करें कि सब कुछ आपके अनुकूल हो।
इसके लिए भगवान श्रीकृष्ण ने एक आसान उपाय बताया है जो हमे ध्यान रखना है।
चलिए आपको बताते हैं कौन सा है वो उपाय …
भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं,
महर्षयः सप्त पूर्वे चत्वारो मनवस्तथा। मद्भावा मानसा जाता येषां लोक इमाः प्रजाः।।
ऊपर श्लोक का मतलब है कि स्वयं भगवान कहते है की सप्तर्षि मेरे ही मन से उत्पन्न हुए हैं और मेरी ही विभूति हैं। जो व्यक्ति सुबह उठकर इनके नाम का ध्यान करता है उनका पूरा दिन उत्साह और आनंद में बीतता है।
आइए आपको बताते है वो कौन से ऋषि है जिन्हें भगवान ने अपने मन की उत्त्पत्ति कहा है :
वशिष्ठ – राजा दशरथ के कुलगुरु एवं उनके पुत्रो के गुरु मह्रिषी वशिष्ट थे। इनके ही कहने पर दशरथ ने अपने चारों पुत्रों को ऋषि विश्वामित्र के साथ भेजा था ताकि वे आश्रम में राक्षसों का वध कर सके। इनके कुल के मैत्रावरूण वशिष्ठ ने एक बार सरस्वती नदी के किनारे सौ सूक्त एक साथ रच दिए थे।
विश्वामित्र- विश्वामित्र पहले एक राजा थे, एक बार ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को हड़पने के लिए उन्होंने युद्ध किया था, लेकिन वे हार गए थे। इसी वजह से उन्होंने घोर तपस्या की थी। इनकी तपस्या इतनी घोर थी कि देवराज इंद्रा का सिंघासन भी ढोलने लगा था।
भारद्वाज- भगवान राम के समय से भी पहले के ऋषि थे मह्रिषी भरद्वाज. रामायण में जब श्रीराम वनवास जा रहे थे तो इनके आश्रम में भी ठहरे थे. जो ऐतिहासिक दृष्टि से त्रेता-द्वापर का संधिकाल था।
अत्रि- भगवन ब्रह्मा के पुत्र, सोम के पिता और कर्दम प्रजापति व देवहूति की पुत्री अनुसूया के पति थे। इन्होने ही ऋग्वेद के पंचम मंडल रचे थे.
वामदेव- मह्रिषी वामदेव ऋग्वेद के चतुर्थ मंडल के सूक्त रचने वाले और जन्मत्रयी के तत्ववेत्ता माने जाते हैं। इनको ही संगीत का जनक माना जाता है.
शौनक- शौनक पहले एसे ऋषि थे जिनके आश्रम में एक साथ दस हजार विद्यार्थियों को गुरुकुल की शिक्षा देते थे. इस लिए इन्हें कुलपति का विलक्षण सम्मान दिया गया. उस समय वो ऐसा करने वाले पहले ऋषि थे।