अनिंद्रा: कब सामान्य, कब एक रोग
नींद न आना, जिसे हिन्दी में अनिंद्रा और अँग्रेजी में इनसोमनिया (Insomnia) कहते है; एक सामान्य घटना भी हो सकती है और एक रोग भी । इसके बारे में चिंता करें या न करें, यह समझने के लिए जरूरी है कि हम यह समझें कि यह कब सामान्य घटना होती है और कब एक रोग ।
दैनिक दिनचर्या में आये हुए हुए किसी बड़े बदलाव के कारण शरीर के द्वारा समंजस्य बैठाने की प्रक्रिया में भी बहुत बार नींद आती है । जैसे आप यदि दिन में सो लिए हैं और आपको थकान या नींद की आवश्यकता नहीं रही तो नींद नहीं आना एक सामान्य बात है । उसी तरह जब आप पर किसी खास कम की ज़िम्मेदारी होती है जैसे विद्यार्थियों को परीक्षा की और शादी के घर वालों को शादी के इंतज़ामों की, तब भी उनकी नींद उड़ जाती है, यह भी सामान्य बात है । जब आप किसी बात से बहुत उत्साहित या उत्तेजित होते हैं तो भी नींद रूठ सकती है । ऐसे में जब मन शांत को शांत हो जाएगा या आप सप्रयास उसे शांत करेंगे, तो नींद आ जायेगी ।
अनिंद्रा कब रोग बन जाती है ?
किन्तु यदि क्रोध, चिंता, ईर्ष्या या तनाव के कारण नींद नहीं आ रही है, तो ऐसे नकारात्मक सोच से जल्दी मुक्त होना, मन को शांत करना व सकारात्मक विचार अपनाना बहुत जरूरी है । हालांकि यह किसी विशेष परिस्थिती के कारण कभी-कभार ही हुआ है, तो यह भी सामान्य ही है और इसे रोग नहीं मानना चाहिये । लेकिन यदि ऐसी स्थितियाँ लंबे समय तक रहने लगे और ‘नींद नहीं आना आपके लिए सामान्य या रोज की बात बन जाय, तो यह रोग की श्रेणी में आ जाता है । इस प्रकार के दीर्घ-कालीन तनाव या नकारात्मक भावनाएं अनिंद्रा के सबसे बड़े कारण हैं । ऐसे में आपको सही सलाह, सुसंगति और तनाव-मुक्ति के अन्य उपाय जरूर करना चाहिये । योगासन, प्राणायाम और ध्यान इसमें बहुत मददगार हो सकते हैं ।
कई बार उक्त नकारात्मक भावनाओं के कारण बने हुए तनाव के साथ निराशा (डिप्रेशन) की भावना भी जुड़ जाती है और यह इस मानसिक रोग को बहुत बढ़ा देती है । जब अनिंद्रा से पहले बताए गए उपायों से निजात नहीं मिलती है, तो हमे अवश्य ही मानो-चिकित्सक (सायक्रियेटिस्ट) से सलाह लेना चाहिये; इसमें संकोच नहीं करना चाहिये । जैसे शरीर के रोगों के लिये इलाज की आवश्यकता होती है, वैसे ही मन के रोगों के लिए भी समय पर इलाज करवा लेना चाहिये । मानो-चिकित्सक केवल पागलपन के इलाज के लिए ही नहीं होते है, वे मन को हर स्थिति में स्वस्थ्य रखने के उपाय भी बताते हैं ।
कई बार नींद आपके सोने की जगह की प्रतिकूलता की वजह से भी नहीं आती है । यदि आपकी जैसी परिस्थिती में सोने की आदत है, वहाँ वैसी स्थिति न रहे जैसे प्रकाश / रोशनी ज्यादा या कम हो, शोर ज्यादा या कम हो अथवा तापमान में बहुत अंतर हो जाए या खिड़कियां खुली रखके सोने वाले को बंद खिड़कियों वाले कमरे में और बंद कमरे मे सोने वाले को खुले कमरे में सोने पर नींद नहीं आती । ऐसे परिस्थितियों के बदलाव के कारण होने वाली अनिंद्रा कोई रोग नहीं है, सामान्य बात है । नशे के आदि लोगों को नशे का साधन (शराब / भांग आदि) नहीं मिलने पर भी नींद नहीं आती है । यह भी इसी प्रकार से सामान्य ही है ।
सामान्य अच्छी नींद कैसे लें:
बेहतर है की आप सोने के संबंध में अच्छी आदतें डालें । एक स्वस्थ्य प्रोढ़ व्यक्ति को समान्यतः 5 से 8 घंटे की नींद लेना चाहिये । बच्चों, किशोरों और मेहनत के काम करने वालों की नींद की आवश्यकता अधिक होती है । आपकी दिनचर्या सुनियोजित, संतुलित और नियमित होगी तो आपकी नींद भी अच्छी होगी । साथ ही जिन लोगों को कोई भौतिक श्रम का कार्य नहीं करना होता है उनके लिए जरूरी है कि वे इसकी भरपाई कोई न कोई योग/ कसरत/ व्यायाम या ऐरोबिक्स करें । क्योंकि पेशियों में थकान होने पर ही स्वभाविक अच्छी नींद आती है । आपका भोजन संतुलित और पौष्टिक होगा, सोने से करीब एक घंटे पहले किया होगा और संतुष्टिदायक होगा तो भी आपकी नींद अच्छी होगी । सोने का कमरा खुला /वेंटीलेटेड हो, वातावरण शांत हो, मद्धिम रोशनी हो और बिस्तर आरामदायक हों, साथ ही मौसम के अनुकूल पंखा, कूलर, रूम-हीटर, मच्छरदानी जैसी चीजों का इंतजाम हो तो ये अच्छी नींद के लिये आदर्श स्थितियाँ हैं । अपवाद स्वरूप कुछ लोगों को इसकी विपरीत स्थिति मे सोने की आदत हो जाती है तो उनको अच्छी स्थिति भी खराब लगती है । जैसे किसी खास आवाज के साथ सोने वाले को शांत माहौल में नींद नहीं आती है ।
नशे के प्रभाव से भी लोग अच्छी नींद लेने लगते हैं, किन्तु फिर वे नशे के गुलाम बन जाते हैं, उतना ही नशा पाने के लिए आपको नशे की चीज अधिक मात्र में लेना पड़ती है और उसके प्रभाव से आपका सामान्य जीवन ही खत्म हो जाता है, इसलिए बेहतर है कि आप थोड़े समय के सुकून के लालच में नशे के चक्र में न फंसे ।
अनिंद्रा जब रोग की स्थिति मे पहुँच जाए तो इलाज से न कतराएँ । यह भी हो सकता हैं कि यह अनिंद्रा किसी अधिक गंभीर रोग का लक्षण हो, तो यह और भी जरूरी है कि आप सायक्रियेटिस्ट / डॉक्टर की सलाह लें और उनके बताए अनुसार अपनी आवश्यक जाँच करवाएँ । तनाव और डिप्रेशन का इलाज भी मानो-चिकित्सक परामर्श के अलावा दवाइयों की मदद से भी करते हैं ।