क्या है स्कंद षष्ठी
आषाढ़ शुक्ल पक्ष और कार्तिक मास कृष्णपक्ष की षष्ठी को स्कन्द-षष्ठी के नाम से जाना जाता है। यह तिथि भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र और श्री गणेश के छोटे भाई कार्तिकेय को समर्पित है। कार्तिकेय को स्कंद देव, मुरुगन, सुब्रह्मन्य नामों से भी पूजा जाता हैं। पुराणों के अनुसार इस कार्तिकेय भगवान का जन्म हुआ था। जिस तिथि में षष्टी में पंचमी तिथि समाहित होती है उसे व्रत के लिए सर्वोत्म माना गया है। इस माह 30 मई को स्कंद षष्ठी का पूजन होगा।
स्कंद षष्ठी का महत्व
स्कंदपुराण के नारद-नारायण संवाद पर विश्वास करें तो संतान प्राप्ति और संतान की पीड़ाओं को दूर करने में ये व्रत सहायक होता है। इस व्रत को करने से काम, क्रोध, मद, मोह, अहंकार से भी मुक्ति मिलती है और सन्मार्ग पर चलने की प्रेणना मिलती है। इस व्रत को चम्पा षष्ठी भी कहते हैं, इस दिन भगवान कार्तिकेय के पूजन करने से रोग, राग, दुःख और दरिद्रता से भी मुक्ति मिलती है।
कैसे करें पूजा
स्कंद षष्ठी पर कार्तिकेय की स्थापना करके साथ में शंकर-पार्वती की पूजा करें। इस दिन स्नान करके पवित्र होने के बाद भगवान के आगे अखंड दीपक जलायें, और स्कंद षष्ठी महात्म्य का पाठ करें। भगवान को स्नान करा कर नए वस्त्र पहनायें फिर पूजन करें। फल, मिष्ठान का भोग लगायें। विशेष कार्य की सिद्धि के लिए इस दिन कि गई पूजा-अर्चना विशेष फलदायी होती है। इस दिन कई साधक तंत्र साधना भी करते हैं। इसके लिए मांस, शराब, प्याज और लहसुन आदि का त्याग करें और ब्रह्मचार्य का संयम सहित पालन करें। इस पूजा में नीचे लिखे मंत्रों का विशेष महत्व है। ‘ॐ तत्पुरुषाय विधमहे: महा सैन्या धीमहि तन्नो स्कंदा प्रचोदयात’ और
ॐ शारवाना-भावाया नम: ज्ञानशक्तिधरा स्कंदा वल्लीईकल्याणा सुंदरा, देवसेना मन: कांता कार्तिकेया नामोस्तुते