इस साल मकर संक्रांति दो दिन मनाया जा रहा है तो, शिवजी का त्योहार भी दो दिनों का आया है। दरअसल 14 तारीख मकर संक्रांति को प्रदोष व्रत है तो, 15 चतुर्दशी व्रत जिसे मास शिवरात्रि कहा जाता है। इसके साथ ही माघ महीने की कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को नरक निवारण चतुर्दशी भी कहा जाता है। हालांकि इस साल सोमवार को चतुर्दशी यानि मास शिवरात्रि का होना बहुत ही शुभ संयोग माना जा रहा है। चलिए जानते हैं इस सुअवसर पर भगवान शिव के रूद्र रूप की गाथा… जानें, भगवान रूद्र से जुड़े तथ्य
भगवान शिव के इस प्रखर रूप को रूद्र रूप की परिभाषा हमारे शास्त्रों में काफी तरह से दी गई है, जिन्हें जानना अपनेआप में काफी रोचक अनुभव है। दरअसल लिंगपुराण के अनुसार, सृष्टि के चक्र को तीव्रता प्रदान करने के लिए भगवान शिव ने ही स्वयं अपने 11 अमर व शक्तिशाली रूद्र रूप की संरचना की थी। हालांकि इनकी चर्चा अलग प्रसंग में हर जगह अलग तरह से होती है। जैसे कहीं यह रौद्र रूप में दिखते हैं तो कहीं सौम्य रूप में दर्शन देते हैं। हालांकि कह सकते हैं कि ये दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं।
भगवान रूद्र से जुड़े रोचक तथ्य
हमारे शास्त्रों में भगवान रूद्र का बेहद ही सुंदर वर्णन मिलता है। जिसमें उनके पांच सिर और धड़ एकदम पारदर्शी और चमकीला बताया गया है। उनके बाल में चंद्रमा विद्यामान है और वहां से गंगा निरंतर प्रवाहित होती दिखती है। गले में सर्प और बगल में माता पार्वती उनके पास बैठी दिखाई देती हैं। त्रिनेत्रधारी रूद्र भगवान के चार हाथों में से एक में त्रिशूल, बाकी आशीर्वाद-वरदान देते और हिरण के साथ दिखाई देते हैं। इसी कारण से भगवान शिव का रूद्राभिषेक भी जब किया जाता है तो वह भी उनके रूपों की भांति 11 बार ही करने की परंपरा चली आ रही है। वहीं ऐसी मान्यता है कि भगवान हनुमान उनके 11 वें रूद्रावतार ही हैं, जो इस रूप में श्रीराम की उनके इस धरती पर अवतार की सहायता करने के लिए आए थे।
आपको जानकर आश्चर्य होगा, मगर भगवान रूद्र के नाम में ही उनके पालनहार होने के रहस्य छुपे हैं। दरअसल रू का अर्थ होता है चिंता और द्र का अर्थ होता है दूर करना। इस कारण से रूद्र का अर्थ हुआ जो आपके सारी समस्याएं और चिंताओं का नाश कर दे। हालांकि भगवान शिव के रूद्र रूप को पालनहार और संहारक दोनों ही संज्ञा प्राप्त है। इसीलिए जब वह इस रूप में आते हैं तो हर कहीं प्रलय आ जाती है।
वह हैं लोक-परलोक दोनों के भगवान
ऋग्वेद और यजुरवेद में रूद्र भगवान को पृथ्वी और स्वर्ग के बीच बसी दुनिया के ईष्टदेव के रूप में बताया गया है। दरअसल इस सृष्टि में जैसे जीवित रहने के लिए प्राणवायु का महत्व है, उसी प्रकार रूद्र रूप का भी अस्तित्व सर्वोपरि है। इसके अलावा उपनिषदों में भगवान रूद्र के ग्यारह रूपों को शरीर के 10 महत्वपूर्ण ऊर्जा स्रोत मानने के साथ ही 11 वें को आत्म स्वरूप माना गया है। इस तरह कह सकते हैं कि सृष्टि में जो भी जीवित है, इन्हीं की बदौलत है। इसी वजह से मृत्यु पश्चात् आपके अंदर से यह सारी ऊर्जा जाने के बाद, आपके सगे-संबंधियों को आपके कारण रोना आता है। इसीलिए दूसरों को रुलानेवाला भी रूद्र के लिए कहा जाता है।