धरना प्रदर्शन की मियाद कितनी होती है? दो चार दिन या कभी-कभी एक दो महीने लेकिन आपको पता है कि मजदूरों के इस शहर में श्रमिकों का एक आंदोलन अनवरत रूप से चल रहा है। एल्गिन मिल एक के बाहर चल रहा धरना 18 मई को 15 साल पूरा कर लेगा।
कहानी एल्गिन मिल की
पार्वती बागला रोड स्थित एल्गिन मिल नंबर एक की स्थापना 1864 में हुई थी और डिप्टी का पड़ाव स्थित कानपुर कॉटन मिल को 1959-60 में खरीद कर एल्गिन मिल-दो का नाम दिया गया। ब्रिटिश इंडिया कारपोरेशन को भारत सरकार द्वारा अधिग्रहीत करने के बाद 11 जून 1981 से एल्गिन मिल भारत सरकार का प्रतिष्ठान बन गया। अधिग्रहण के बाद घाटा बढ़ने पर 15 मई 1992 को ये मिल बायफर (बोर्ड फार इंडस्ट्रियल फाइनेंस एंड रिकंस्ट्रक्शन) को संदर्भित कर दी गई।
-जून 1994 में एल्गिन नंबर एक और नवंबर 1995 में एल्गिन दो का उत्पादन बंद
-2000 में मिल पूरी तरह से बंद कर दी गई
इसलिए शुरू हुआ धरना
सरकार ने स्थायी व संविदा कर्मियों को तो उनके देयक दिए पर 15-20 वर्षों तक मिल में अपना खून पसीना बहा रहे अस्थायी कर्मचारियों को दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंका। ऐसे 1800 मजदूरों में 169 ने श्रम विभाग में मुकदमा कर दिया। साथ ही मजदूर नेता मो. समी और भाजपा के श्रम प्रकोष्ठ के नेता ऋषिकांत तिवारी के नेतृत्व में अस्थायी मजदूरों ने एल्गिन मिल एक के सामने 18 मई 2003 को धरना शुरू कर दिया। तब से अनवरत रूप से दिन-रात धरना चल रहा है।
मो. समी ने बताया कि श्रम विभाग से वह मुकदमा जीत चुके हैं। सुनवाई हाईकोर्ट में चल रही है। 15 वर्षो के दौरान सैंकड़ों मजदूरों की मृत्यु हो चुकी है। वादकारी श्रमिकों में केवल 59 ही बचे हैं। भाजपा नेता ऋषिकांत तिवारी भी अब नहीं हैं। जवानी के जोश में शुरू किए गए आंदोलन के अधिकतर प्रदर्शनकारियों के कंधे झुक चुके हैं लेकिन उम्र के इस पड़ाव पर आकर भी उन्हें इंसाफ की उम्मीद है।
अब कोई नहीं सहारा
धरनास्थल पर बैठे मजदूरों ने बताया कि जब संख्याबल था तो हर नेता यहां माथा टेकने आता था। केंद्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल से लेकर कैबिनेट मंत्री सतीश महाना आकर भरोसा दिलाते रहे पर मजदूरों के हक में कुछ नहीं हुआ।
परिवारों की हालत खराब
श्रमिक रज्जन ने बताया कि उन्होंने धरनास्थल के बगल में ही पंचर बनाने की दुकान खोली है। उसी से परिवार की गुजर बसर हो रही है। 65 की उम्र में किसी तरह तीन में दो बेटियों की शादी हो सकी। दूसरे प्रदर्शनकारी अयोध्या प्रसाद ने बताया कि परिवार का पेट पालने के लिए फलों का ठेला लगाते हैं। ऐसे ही हालात लगभग सभी परिवारों के हैं।
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