सावन महीने की पूर्णिमा को रक्षाबंधन मनाने के बाद अगले दिन भाद्रपद महीने की प्रतिपदा को भुजरिया पर्व मनाया जाता है। जी हाँ और इसको कजलिया पर्व भी कहा जाता है। आपको बता दें कि इस साल आज यानी कि 12 अगस्त 2022 को भुजरिया पर्व मनाया जाएगा। जी दरअसल इस दिन लोग एक-दूसरे से मिलकर गेहूं की भुजरिया देते हैं और उन्हें भुजरिया पर्व की शुभकामनाएं देते हैं। कहा जाता है यह पर्व अच्छी बारिश होने, फसल होने, जीवन में खूब सुख-समृद्धि आने की कामना के साथ मनाया जाता है। हालाँकि इस दिन लोग एक-दूसरे को धन-धान्य से भरपूर होने की शुभकामना के संदेश देते हैं। यह पर्व बुंदेलखंड में सबसे ज्यादा धूमधाम से मनाया जाता है।

आपको बता दें कि गेहूं और जौ के दानों से भुजरिया उगाई जाती हैं और इसके लिए सावन के महीने की अष्टमी और नवमीं को बांस की छोटी टोकरियों में मिट्टी बिछाकर गेहूं या जौं के दाने बोए जाते हैं। उसके बाद उन्हें रोजाना पानी दिया जाता है। करीब एक सप्ताह में इनमें अंकूर फूट आते हैं और भुजरिया उग आती हैं। आपको बता दें कि भुजरिया पर्व के दिन यही भुजरिया एक-दूसरे को बांटी जाती हैं और बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लिया जाता है।
इसके अलावा इन भुजरियों की पूजा भी की जाती है ताकि इस साल अच्छी बारिश हो और फसल हो सके। आपको बता दें कि इन भुजरियों की पूजा अर्चना करने के साथ यह कामना की जाती है, कि इस साल बारिश बेहतर हो जिससे अच्छी फसल मिल सकें। जी दरअसल ये भुजरिया चार से छह इंच की होती हैं और नई फसल की प्रतीक होती हैं। भुजरिया को लेकर पौराणिक कथा है कि राजा आल्हा ऊदल की बहन चंदा से जुड़ी है। आल्हा की बहन चंदा जब सावन महीने में नगर आई तो लोगों ने कजलियों से उनका स्वागत किया था। तब से ही यह परंपरा चली आ रही है।
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