वैज्ञानिको को ऐसी त्वचा बनाने का आईडिया समुद्री जीव ऑक्टोपस से ही आया है। इनकी त्वचा काफी लचीली होती है और ये आसपास के हिसाब से रंग भी बदलती हैं। इस तरह की त्वचा बनाने में कामयाबी का दावा अमेरिका के कॉरनेल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रॉब शेफर्ड ने किया है। उन्होंने इटली के इंस्टीटयूट ऑफ टेक्नोलोजी के साथ मिलकर इसे इजाद किया है।
शेफर्ड की मानें तो आने वाले दिनों में रोबोट का उपयोग और बढ़ जाएगा। हमें ऐसे पदार्थ की जरूरत होगी, जिनका इलेक्ट्रॉनिक चीजों में इस तरह का उपयोग हो सके, जो कि वैसे तो सख्त हो, लेकिन जरूरत होने पर लचीली हो जाएं।
शेफार्ड और उनके सहयोगी क्रिस लार्सन का कहना है कि पानी या किसी तरल पदार्थ के साथ घुल जाने वाले हाइड्रोजेल का इसकी विपरीत आदत वाले सिलिकॉन के साथ मिश्रण बनाना एक मुश्किल काम था। इसमें सफलता मिलने से ऐसी त्वचा बन सकी जो छह गुना तक फैल सकती है। अब तक जो भी त्वचा बनाने में सफलता मिली है, वह अधिकतम दो गुनी तक ही फैल सकती है।
कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में रोबोटिक्स विशेषज्ञ माइकेल टॉली का कहना है कि सॉफ्ट रोबोट या ह्यूमन रोबोट के खयाल से यह त्वचा काफी उपयोगी हो सकती है। सार्वजनिक कार्यालयों में काम आने सर्विस रोबोट या मनोरंजन और इसी तरह के क्षेत्रों में उपयोग वाले रोबोट में इस तरह की त्वचा ज्यादा हो सकेगी। पहने जाने वाले इलेक्ट्रॉनिक्स में भी इसका बेहतर उपयोग हो सकता है।
इससे पहले हार्वर्ड के वैज्ञानिक जॉर्ज व्हाइटसाइड्स और शिगांग सुओ ने साल 2013 में सबसे पहले इसी तरह के पदार्थ के बारे में खोज की थी। इसे ही शेफर्ड और उनकी टीम ने विकसित किया है। यह त्वचा पांच स्तरों वाली है। इसके बाहरी तल में सिलिकॉन है जो आसपास के हिसाब से रंग बदल सकता है। इसमें जिंक सल्फाइड पाउडर मिलाया गया है। इसमें दो तल तरल हाइड्रोजेल के हैं। बाद के अन्य दो तल भी सिलिकॉन के हैं।