देश में क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड और ऑनलाइन पेमेंट जैसी सुविधाओं के बावजूद जीडीपी (1.4 ट्रिलियन डॉलर या 90 लाख करोड़ रुपये) का दो-तिहाई हिस्सा पूरी तरह कैश पर निर्भर है. देश में सामान खरीदने के लिए, सेवाओं को लेने के लिए और सैलरी आवंटन में कैश का भरपूर इस्तेमाल होता है. अब 8 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ऐलान के बाद से अर्थव्यवस्था के इस दो-तिहाई हिस्से में अफरा-तफरी का आलम है. 500 और 1000 रुपये की करेंसी अमान्य की जा चुकी है और 500 और हजार की नई नोट धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था में पहुंच रही है. इस बीच 100 रुपये और 50 रुपये की करेंसी नोट अपने आप में कमोडिटी बन चुकी है. जरूरत की खरीदारी इन्हीं करेंसी से हो रही है लिहाजा लोग इसे खुलकर खर्च करने से कतरा रहे हैं. जानिए देश में कहां-कहां कारोबार कैश में और सिर्फ कैश में होता है
ट्रांसपोर्ट और माल ढुलाई
हाइवे पर ट्रकों के जरिए माल ढुलाई और पब्लिक ट्रांसपोर्ट का अधिकांश कारोबार कैश पर निर्भर है. देश में चल रहे लाखों ट्रक सिर्फ और सिर्फ कैश इकोनॉमी पर दौड़ रहे हैं. ट्रांसपोर्ट कंपनियां अपनी ट्रकों को देश के एक कोने से दूसरे कोने पर भेजने के लिए कैश पर निर्भर हैं क्योंकि यात्रा के वक्त ट्रकों में ईंधन, ड्राइवर और अन्य स्टाफ का खर्च, टोल और चुंगी टैक्स के साथ-साथ यात्रा के दौरान ट्रकों में खराबी आने पर मरम्मत का काम सिर्फ और सिर्फ कैश पर चलता है. वहीं देश में पब्लिक ट्रांसपोर्ट जैसे ट्रेन, बस, मेट्रो और शहरी आवामगन जैसे ऑटो, रिक्शा कैश व्यवस्था पर ही पूरी तरह निर्भर हैं.
फूड और ग्रोसरी मार्केट
भारत का फूड और ग्रोसरी मार्केट दुनिया का छठा सबसे बड़ा मार्केट है. इस क्षेत्र में लगभग 70 फीसदी रीटेल कारोबार है. फूड और ग्रोसरी मार्केट में करोंड़ो छोटे दुकानदार (रीटेलर) और उपभोक्ता सिर्फ और सिर्फ कैश पर खरीदारी करते हैं. इसके शीर्ष पर बैठी गल्ला मंडियों में कैश की शुरुआत तब होती है जब किसान अपना अनाज लेकर मंडियों में बेचने पहुंचता है. किसानों को अपने गल्ले के लिए सिर्फ और सिर्फ कैश की उम्मीद रहती है क्योंकि बैंकिंग के मॉडर्न साधन जैसे चेक, ड्राफ्ट, अकाउंट ट्रांसफर पर भरोसा नहीं रहता है. इसके अलावा इन मंडियों में बिकवाली कई स्तर पर होती है और आमतौर पर किसान और उपभोक्ता के बीच तीन-चार बिचौलियों की मौजूदगी रहता है जिसे कैश व्यवस्था से ही फायदा होता है.
कंस्ट्रक्शन सामान- सीमेंट, सरिया, बालू, ईंट इत्यादि
कंस्ट्रक्शन सेक्टर में आम आदमी को मकान निर्माण के लिए सीमेंट, सरिया, बालू, ईंट जैसी रीटेल खरीदारी के लिए पूरी तरह कैश पर निर्भर रहना पड़ता है. इसके चलते पूरे रियल स्टेट पर कैश हावी रहता है. 8 नवंबर से शुरू हुए करेंसी संकट की सीधा असर सीमेंट और सरिया की सेल पर दिखाई दे रहा है. जहां सीमेंट कंपनियां मान रही हैं कि नई करेंसी की उपलब्धता नहीं होने से उनकी रीटेल बिक्री 50 फीसदी से ज्यादा गिर गई है वहीं इस सेक्टर का दूसरा अहम उत्पाद सरिया की स्थिति ज्यादा खराब है. जहां सीमेंट की थोक बिक्री में चेक अथवा ड्राफ्ट से हो जाती है लेकिन रीटेल बिक्री पूरी तरह कैश पर निर्भर रहने के कारण थोक खरीदारी के एडवांस ऑर्डर स्थगित किए जा रहे हैं. वहीं बाजार में सरिया पूरी तरह से कैश पर निर्भर है.
लेबर और असंगठित उद्योग में सैलरी
विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में प्रति माह लगभग 10 लाख लोग वर्कफोर्स में शामिल होते हैं. इनमें से अधिकांश बड़ी-छोटी फैक्ट्रियों और रियल एस्टेट सेक्टर में बतौर लेबर शामिल होते हैं. नोटबंदी के पहले तक इन सेक्टर में लेबर की दिहाड़ी पूरी तरह से कैश पर निर्भर रहती है. श्रम मंत्रालय के मुताबिक देश में लेबर को प्रतिदिन औसतन देहाड़ी 250 से 300 रुपये तक मिलती है. इस दिहाड़ी में लेबर का प्रति दिन खाने पर खर्च लगभग 20 रुपये आता है क्योंकि आमतौर पर 5 -6 लेबर पैसा मिलाकर खाद्य सामग्री की खरीदारी करते हैं. लेकिन नोटबंदी के बाद से देश में बड़ी से बड़ी कंपनी और छोटे से छोटे कंस्ट्रक्शन साइट पर काम लगभग रुक गया है क्योंकि सभी को करेंसी की समस्या का सामना करना पड़ रहा है. नतीजा यह है कि ज्यादातर लेबर काम नहीं करने पर मजबूर है क्योंकि उधार पर काम करने के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं हैं. इसके चलते नोटबंदी के बाद से ज्यादातर लेबर अपनी जमापूंजी पर गुजर-बसर इस उम्मीद पर कर रहे हैं कि जल्द से जल्द कैश की समस्या खत्म हो जाए.
ज्वैलरी और सोना, चांदी
मौजूदा समय देश में शादियों का है. यह वक्त ज्वैलरी के तेज कारोबार का भी था. लेकिन नोटबंदी के फैसले से देश में सोना, चांदी और ज्वैलरी की खरीदारी पर भी संकट में पड़ गई है. फैसला आते ही कुछ लोगों ने अपने अनअकाउंटेड कैश को ठिकाने लगाने की कोशिश की लेकिन यह तरकीब भी कुछ घंटों से ज्यादा सफल नहीं हो सकी. दरअसल, शादी-विवाह के लिए ज्वैलरी की खरीदारी हो या फिर अनअकाउंटेड पैसे को सुरक्षित करने के लिए सोने-चांदी की खऱीदारी हो, यह पूरी तरह से हार्ड कैश पर निर्भर था. इस सेक्टर में खरीदारों से कैश मिलने के चलते ज्वैलर्स अपने कारोबारी करेंट अकाउंट में बड़ी मात्रा में कैश जमा करते थे. इसके अलावा छोटे-बड़े ज्वैलर्स कैश के सहारे ही बुलियन मार्केट में सोने और चांदी की खरीदारी भी करते थे. लेकिन नोटबंदी के फैसले से जहां ग्राहकों के सामने शादी-विवाह जैसे उपक्रम के लिए ज्वैलरी खरीदने की चुनौती खड़ी है वहीं ज्वैलर्स भी अब कैश पेमेंट से बचने के लिए बुलियन मार्केट को दिए एडवांस ऑर्डर को कैंसल करने पर मजबूर हैं.