बेहतरीन आबोहवा की पहचान रखने वाले दून में देहरादून-मसूरी रोड पर सुरम्य घाटी में शहर से दस किमी के फासले पर मालसी में है देहरादून चिड़ियाघर। ज्यादा वक्त नहीं बीता, जब लोग इसे मालसी डीयर पार्क के नाम से जानते थे। लेकिन, समय के साथ यह डीयर पार्क भी कब देहरादून चिड़ियाघर में तब्दील हो गया, पता ही नहीं चला। इसी चिड़ियाघर के आहाते में है मुस्कुराहट बिखेर रहा है कैक्टस गार्डन। करीब साढ़े चार हजार वर्ग मीटर में फैला सरकारी स्तर पर यह राज्य का पहला कैक्टस गार्डन है। इसमें न सिर्फ देश के विभिन्न राज्यों, बल्कि मैक्सिको व सहारा मरुस्थल में पाई जाने वाली कैक्टस व सेंकुलेट्स की 450 प्रजातियां वहां आने वाले सैलानियों को बरबस ही अपनी ओर खींचती हैं। इनका दीदार करते ही जुबां से यही शब्द फूटते हैं-भई वाह! …तो आइये! लिए चलते हैं आपको देहरादून चिड़ियाघर के इसी कैक्टस गार्डन की सैर पर।
‘कांटों भरी,
अपनी हरियाली के संग,
जीते रहे जीवनपर्यंत,
भूलकर अपना सारा दर्द,
मुस्कुराते रहे,
अभावों के रेगिस्तान में’।
अनाम कवि की यह पंक्तियां कैक्टस पर एकदम सटीक बैठती हैं। वास्तव में कैक्टस ऐसा फूल है, जिसकी दुनिया एकदम तिलिस्मी सी लगती है। विकट हालात में कैसे जिया जाए, इसकी सीख लेने के लिए कैक्टस से बेहतर शायद कुछ नहीं है। मरुस्थल हो अथवा सूखे व पथरीली स्थान या फिर पहाड़ी इलाके, कहीं भी किसी भी परिस्थिति में खुद को ढाल लेता है कैक्टस। दुनियाभर में कैक्टस की तीन हजार से ज्यादा प्रजातियां विद्यमान हैं। कोई कैक्टस संगीत जैसी ध्वनि बिखेरता प्रतीत होता है तो कोई कोई कांटों के बीच मुस्कुराहट बिखेरता नजर आता है। खुशगवार आबोहवा वाले देहरादून शहर में भी कैक्टस का अनूठा संसार अपनी चमक बिखेर रहा है।
ऐसे अस्तित्व में आया कैक्टस गार्डन
मालसी डीयर पार्क के चिड़ियाघर में उच्चीकृत होने के बाद वहां काफी संख्या में वन्यजीवों को लाया गया तो कुछ ऐसा करने की भी चिड़ियाघर प्रशासन ने ठानी, जो एकदम अलग हो। चिड़ियाघर के निदेशक आइएफएस पीके पात्रो बताते हैं कि वर्ष 2017 में चिड़ियाघर में कुछ नया करने की ठानी गई तो कैक्टस गार्डन का विचार आया। पड़ताल की गई तो पता चला कि सरकारी स्तर पर राज्य में ऐसा कोई गार्डन नहीं है। लिहाजा, चिड़ियाघर परिसर में कैक्टस गार्डन की योजना तैयार की गई। करीब साढ़े चार हजार वर्ग मीटर हिस्से में इसे बनाने का निश्चय किया गया। साथ ही इसके पौधों का इंतजाम होने के बाद वर्ष 2018 में जनवरी से इसकी स्थापना की शुरुआत की गई और पांच अक्टूबर को यह अस्तित्व में आ गया। इसके साथ ही चिड़ियाघर के खाते में राज्य के पहले कैक्टस गार्डन के रूप में एक नई उपलब्धि जुड़ गई।
मनमोहक है कैक्टस का संसार
कैक्टस गार्डन में कैक्टस (कांटेदार) और सेंकुलेंट्स (बिना कांटों के मोटे पत्ते वाले) की 450 प्रजातियां अनुपम छटा बिखेर रही हैं। चिड़ियाघर के निदेशक पात्रो बताते हैं कि इन प्रजातियों को कलिंगपोंग (पश्चिम बंगाल), चंडीगढ़, पुणे, दिल्ली, कोलकाता से मंगाया गया, जबकि कुछ प्रजातियां राज्य के भीमताल समेत अन्य स्थानों से मंगाई गईं। गार्डन में लगाई गईं कैक्टस की प्रजातियों में काफी संख्या में मैक्सिको और सहारा मरुस्थल में पाई जाने वाली प्रजातियां हैं। कैक्टस में कांटों के बीच खिलने वाले फूल हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींचते हैं। साथ ही ये संदेश भी देते हैं कि परिस्थितियां चाहे कैसी भी हों, हर हाल में मुस्कुराना चाहिए।
विशेष ढंग से होती है देख-रेख
कैक्टस गार्डन की मन को मोह लेने वाले कैक्टस की देखभाल कम आसान नहीं है। हर प्रकार के कैक्टस की देखभाल का अलग तरीका है। मसलन, किस कैक्टस को कितनी धूप, कितना पानी, कितनी छाया चाहिए, भूमि में किस प्रकार के तत्व होने चाहिए, इनकी बारीकी से मॉनीटरिंग होती है। इस कार्य के लिए चिड़ियाघर प्रशासन ने विशेष रूप से दो कर्मियों को रखा है।
पूछे बगैर नहीं रह पाते सैलानी
चिड़ियाघर पहुंचने वाले सैलानियों की कैक्टस गार्डन पर नजर पड़ते ही वहां उगे कैक्टस उन्हें न सिर्फ अपनी ओर खींचते हैं, बल्कि मन में उत्कंठा भी जगाते हैं। यही कारण है कि सैलानी वहां मौजूद कर्मियों से कैक्टस की प्रजाति, इनके औषधीय महत्व समेत तमाम बिंदुओं पर जानकारी लेते हैं।
औषधीय गुणों से भी हैं भरपूर
कैक्टस न सिर्फ सजावटी हैं, बल्कि ये औषधीय गुणों से भी भरपूर हैं। कैक्टस से निकलने वाले तरल पदार्थ का त्वचा संबंधी रोगों में उपचार के अलावा फ्रेशनर के तौर पर भी किया जाता है। यही नहीं, कुछ सजावटी कैक्टस ऐसे भी हैं, जो करीब 25 फुट की ऊंचाई तक के होते हैं। कैक्टस गार्डन में ऐसी जानकारियां भी लोगों से साझा की जा रही हैं।
रियायती दर पर कैक्टस पौध
यह कैक्टस की खूबसूरती का ही नतीजा है कि लोग अब इन्हें घरों, अपार्टमेंट में सजावटी पौधों के रूप में सजाने लगे हैं। हालांकि, इसके पौधे आसानी से उपलब्ध नहीं होते और इसीलिए इनकी कीमत भी ज्यादा है। इसे देखते हुए चिड़ियाघर प्रशासन ने रियासती दर पर कैक्टस की विभिन्न प्रजातियां भी लोगों को उपलब्ध कराने की पहल की गई है। इसके अच्छे नतीजे आए हैं। अब इस मुहिम को वृहद स्वरूप देने की तैयारी है।
तीन श्रेणियां हैं कैक्टस की
ऑपेसिया, मामिल्लारी व रॉड, कैक्टस की ये तीन श्रेणियां हैं। नाग के फन जैसे चपटे तने वाले कैक्टस को ऑपेसिया, गेंद की तरह तने वाले को मामिल्लारी और डंडे की तरह गोल लंबे तने वाले कैक्टस को रॉड कैक्टस के नाम से जाना जाता है।
कैक्टस से जुड़े कुछ तथ्य
कैक्टस शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा से हुई है। ग्रीक शब्द ‘काक्टोस’ से कैक्टस बना है। ग्रीक में काक्टोस का अर्थ कांटेदार पौधा होता है।
भारत में कैक्टस की 800 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें लगभग 250 हिमालयी क्षेत्र में मिलती हैं।
कैक्टस गोल, चपटे, लंबे, छोटे, घेरदार, बौने, खजूर व ताड़ छाप भी होते हैं।
कैक्टस बिना पानी के भी उग जाते हैं। वजह ये कि ये वायुमंडल से नमी सोख कर पानी की कमी पूरी कर लेते हैं।
विश्व में कैक्टस की 1300 प्रजातियां ऐसी हैं, जिनमें पत्तियां और कांटे उगे नजर आते हैं।
अलग-अलग प्रजातियों के कैक्टस पर लाल, नीले, पीले, हरे, भूरे, गुलाबी, सिंदूरी, सफेद, काले, जामुनी, नारंगी, सुनहरे, बादामी, बैंगनी, सुर्ख फूल खिलते हैं।