सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस एमबी लोकुर ने कहा है कि राजद्रोह कानून का इस्तेमाल लोगों की आवाज को दबाने के लिए किया जा रहा है. जस्टिस लोकुर ने कहा कि सरकारें आवाज पर हथौड़े की तरह राजद्रोह कानून का उपयोग कर रही है. वे सोमवार को ‘फ्रीडम ऑफ स्पीच एंड ज्यूडिशियरी’ विषय पर आयोजित वेबिनार में बोल रहे थे.
सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज ने कहा कि अचानक आपके सामने ऐसे कई केस हैं, जिनमें लोगों के खिलाफ राजद्रोह की धारा का उपयोग किया गया. एक आम नागरिक कुछ कहता है तो उसके खिलाफ राजद्रोह की कार्रवाई हो रही है. उन्होंने कहा कि देश में इस साल अब तक राजद्रोह के 70 केस दर्ज हो चुके हैं.
उन्होंने कहा कि सरकारें आवाज नियंत्रित करने के लिए एक और तरीके का इस्तेमाल कर रही है. किसी क्रिटिकल विषय पर राय देने पर उस व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है और फर्जी समाचार फैलाने के आरोप लगाए जा रहे हैं.
रिटायर्ड जज एमबी लोकुर ने रिपोर्टिंग के दौरान कोरोना वायरस के केस और वेंटिलेटर की कमी जैसे मुद्दों को उजागर करने वाले पत्रकारों का उदाहरण दिया और कहा कि इनके खिलाफ फर्जी समाचार से जुड़े कानून के तहत कार्रवाई की गई थी.
उन्होंने यूपी के डॉक्टर कफील खान का भी जिक्र किया और नागरिकता संशोधन कानून के तहत उनके बयानों के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत कार्रवाई भी गलत थी. जस्टिस लोकुर ने प्रशांत भूषण से जुड़े अवमानना मामले पर भी अपनी राय रखी. उन्होंने प्रशांत भूषण के बयान को गलत बताया.
वहीं, वयोवृद्ध पत्रकार एन राम ने कहा कि प्रशांत भूषण के मामले में सुनाई गई सजा असंगत है. उन्होंने कहा कि न्यायपालिका के लिए मेरे मन में बहुत सम्मान है. यह न्यायपालिका है, जो प्रेस की स्वतंत्रता को संविधान में पढ़ता है.
एन राम ने कहा कि आने वाले समय में न्यायपालिका का और अधिक सूक्ष्म परीक्षण होगा. उन्होंने कहा कि प्रशांत भूषण के ट्वीट की तुलना में कहीं अधिक कठोर बातें कही गईं.