नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष और जम्मू कश्मीर के पूर्व सीएम फारूक अब्दुल्ला ने शनिवार को कहा है कि उर्दू कभी भी किसी धर्म या संप्रदाय की भाषा नहीं रही, किन्तु “सांप्रदायिक मानसिकता” के कुछ लोग इसके बारे में “दुर्भावना के साथ” दुष्प्रचार कर रहे हैं। जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम फारूक ने स्थानीय भाषाओं को भी बराबर सम्मान देने की जरुरत को रेखांकित करते हुए आरोप लगाया कि लोगों पर बिना किसी कारण एकरूपता थोपी जा रही है।
अब्दुल्ला ने कहा ही कि, ‘सांप्रदायिक मानसिकता’ के कुछ लोग उर्दू भाषा को लेकर दुर्भावना पूर्वक दुष्प्रचार कर रहे हैं। उर्दू कभी भी किसी धर्म विशेष या संप्रदाय विशेष के लोगों की भाषा नहीं रही।’ उन्होंने कहा है कि,’उर्दू भारत की गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक है। हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों ने इस भाषा को सींचा है। उर्दू जबान ने मुंशी प्रेमचंद और अन्य लोगों को बहुत कुछ दिया है।’
आपको बता दें कि एनसी प्रमुक्ष और जम्मू कश्मीर के पूर्व सीएम फारूक अब्दुल्लाह ने यह बातें राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद (एनसीपीयूएल) द्वारा कश्मीर विश्वविद्यालय में आयोजित किए गए 23वें अखिल भारतीय उर्दू पुस्तक मेले के उद्घाटन पर मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए कहीं। इस दौरान वहां भारी मात्रा में लोग मौजूद थे।