वित्त मंत्रालय ने यह बात स्वीकार की है कि पिछले वित्त वर्ष यानी 2018-19 में अर्थव्यवस्था की रफ्तार थोड़ी सुस्त पड़ गई है. हालांकि वित्त मंत्रालय का यह भी कहना है कि शेयर बाजार में तेजी और महंगाई में कमी की वजह से अर्थव्यवस्था के लिए आउटलुक यानी आगे का नजरिया सकारात्मक बना हुआ है.निर्यात टारगेट के मुताबिक न होने, निजी खपत उम्मीद से कम और फिक्स्ड इनवेस्टमेंट में नरम बढ़त की वजह से वित्त वर्ष 2018-19 में भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार सुस्त पड़ी है.
खुद वित्त मंत्रालय की नवीनतम मासिक आर्थिक रिपोर्ट में यह बात स्वीकार की गई है. हालांकि वित्त मंत्रालय का यह भी कहना है कि शेयर बाजार में तेजी और महंगाई में कमी की वजह से अर्थव्यवस्था के लिए आउटलुक यानी आगे का नजरिया सकारात्मक बना हुआ है और आगे अर्थव्यवस्था की रफ्तार अच्छी रहेगी.
मीडिया में आई तमाम रिपोर्ट्स के अनुसार, वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘जनवरी से मार्च 2019 के दौरान शेयर बाजार में तेजी और महंगाई में नरमी की वजह से ग्रोथ आउटलुक आशावादी बना हुआ है. कम महंगाई की वजह से 2018-19 के दौरान रिजर्व बैंक द्वारा रेपो रेट जैसे शॉर्ट टर्म लेंडिंग रेट में मौद्रिक नरमी के लिए गुंजाइश बनी. हालांकि बैंकों ने कर्ज दरों में अभी इसका फायदा नहीं पहुंचाया है.’
रिपोर्ट के अनुसार, रिजर्व बैंक ने इस कैलेंडर साल में ही रेपो रेट में आधा फीसदी की कटौती कर दी है, लेकिन बैंक कम दरों का फायदा ग्राहकों को नहीं मिला है. IL&FS ग्रुप जैसी कंपनियों द्वारा डिफाल्ट करने से पिछले छह महीने में नकदी की हालत सख्त रही है, इस वजह से बैंक कर्ज दर में ज्यादा गिरावट नहीं कर पा रहे.
रिपोर्ट में अर्थव्यवस्था के सामने मौजूद कई अन्य चुनौतियों की भी जानकारी दी गई है. निर्यात में फिर से तेजी लाना, फिक्स्ड इनवेस्टमेंट में बढ़त को फिर से कायम करना और कृषि क्षेत्र में आई सुस्ती को दूर करना भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अगले महीनों की प्रमुख चुनौतियां हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘2018-19 की चौथी तिमाही में असल प्रभावी विनिमय दर बढ़ी है और यह निकट भविष्य में निर्यात बढ़ाने के रास्ते में चुनौती पैदा कर सकती है. हालांकि, जीडीपी के प्रतिशत के लिहाज से देखें तो फिक्स्ड इनवेस्टमेंट साल 2017-18 से ही बढ़ रहा है. लेकिन अब इसमें ब्रेक लग सकता है. इसी तरह चौथी तिमाही में गैर खाद्य बैंक कर्ज की वृद्धि दर में भी कमी आई है.
गौरतलब है कि 2018-19 की तीसरी यानी अक्टूबर से दिसंबर की तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था महज 6.6 फीसदी बढ़ी है, जो पिछली छह तिमाहियों में सबसे धीमी गति है. केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO) ने भी 2018-19 के जीडीपी ग्रोथ अनुमान को 7.2 फीसदी से घटाकर 7 फीसदी कर दिया है. जनवरी-मार्च 2019 में जीडीपी ग्रोथ में गिरावट के साथ ही निजी खपत में भी गिरावट आई है. लेकिन सरकार ने अपना खर्च नहीं बढ़ाया है.
इसके पहले एशियाई विकास बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भी भारतीय अर्थव्यवस्था में जीडीपी में ग्रोथ के अनुमान को घटाया है. एडीबी ने कहा कि वित्त वर्ष 2020 में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 7.2 फीसदी ही रहेगी. IMF का अनुमान है कि 2019-20 में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 7.3 फीसदी रहेगी, जो 2020-21 में बढ़कर 7.5 फीसदी पर पहुंच जाएगी.