1 जुलाई 2017 को लागू हुए गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) ने भारतीय अर्थव्यवस्था में कई आमूलचूल परिवर्तन ला दिए।जीएसटी ने बजट से जुड़े सस्पेंस और मिस्ट्री को खत्म कर दिया क्योंकि इसमें पूरा का पूरा इनडायरेक्ट टैक्स समाहित हो गया। अब वस्तुओं एवं सेवाओं के लिए जीएसटी काउंसिल टैक्स रेट तय करती है। दरअसल, वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अगले कुछ महीनों में जीएसटी लागू होने की आस में अपने पिछले बजट में ही इनडायरेक्ट टैक्स से जुड़े प्रस्तावों को दरकिनार कर दिया था। अब जीएसटी लागू हो जाने के बाद बजट कुल मिलाकर विभिन्न मदों के लिए धन का आवंटन, डायरेक्ट टैक्सेज, कस्टम्स ड्यूटीज और लेवीज का मामला रह गया है। इनडायरेक्ट टैक्स की वजह से बजट बड़े वर्ग के लिए उत्सुकता का विषय हुआ करता था। हालांकि, इनकम टैक्स बजट का अब भी मुख्य आकर्षण बिंदु होगा। पहले बजट को लेकर सड़क किनारे बीड़ी-सिगरेट-तंबाकू बेचनेवालों से लेकर जूलरी खरीदनेवाली गृहणियों तक में उत्साह होता था। लोग यह जानने को उत्सुक होते थे कि बजट के बाद कौन सी चीजें सस्ती होंगी, कौन सी महंगी।
अक्सर ऐसा होता था कि बजट में जिन सामानों के महंगे होने की आशंका जताई जाती थी, छोटे दुकानदार उन्हें स्टॉक करने लग जाते थे। इनडायरेक्ट टैक्सेज के कारण बजट हर भारतीय की जिंदगी से सीधा जुड़ा होता था। अमीर-गरीब, युवा-बुजुर्ग, स्टूडेंट-प्रफेशनल, बिजनसमैन-रेहड़ी पटरी वाले वेंडर, हर किसी पर बजट का असर पड़ता था। लेकिन अब इनकम टैक्स के सिवा आम आदमी के लिए बजट पर चर्चा का कोई बड़ा मुद्दा ही नहीं रहा। हालांकि, कृषि से लकर आवास जैसी योजनाओं का असर आम भारतीयों के जीवन पर पड़ता है, लेकिन अप्रत्यक्ष कर का असर लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी पर पड़ता है।