भगवान शिव की पूजा में शंख का प्रयोग नहीं होता है, इस बात को तो आप सभी जानते ही होंगे. वहीं भोलेनाथ की पूजा में उन्हें शंख से जल भी नहीं दिया जाता है. जी दरसल इसके पीछे एक कारण हैं जो आज हम आपको बताने जा रहे हैं.
कथा – जी दरअसल एक पौराणिक कथा के मुताबिक एक बार राधा गोलोक से कहीं बाहर गयी थी उस समय श्री कृष्ण अपनी विरजा नाम की सखी के साथ विहार कर रहे थे. संयोगवश राधा वहां आ गई. विरजा के साथ कृष्ण को देखकर राधा क्रोधित हो गईं और कृष्ण एवं विरजा को भला बुरा कहने लगी. लज्जावश विरजा नदी बनकर बहने लगी.
वहीं कृष्ण के प्रति राधा के क्रोधपूर्ण शब्दों को सुनकर कृष्ण का मित्र सुदामा आवेश में आ गया. सुदामा कृष्ण का पक्ष लेते हुए राधा से आवेशपूर्ण शब्दों में बात करने लगा. कहते हैं सुदामा के इस व्यवहार को देखकर राधा नाराज हो गई. राधा ने सुदामा को दानव रूप में जन्म लेने का शाप दे दिया. क्रोध में भरे हुए सुदामा ने भी हित अहित का विचार किए बिना राधा को मनुष्य योनि में जन्म लेने का शाप दे दिया. राधा के शाप से सुदामा शंखचूर नाम का दानव बना. वहीं शिवपुराण में भी दंभ के पुत्र शंखचूर का उल्लेख मिलता है. आप सभी को बता दें कि वह अपने बल के मद में तीनों लोकों का स्वामी बन बैठा और साधु-संतों को सताने लगा.
वहीं इस बात से नाराज होकर भगवान शिव ने शंखचूर का वध कर दिया. इस वजह से विष्णु एवं अन्य देवी देवताओं को शंख से जल अर्पित किया जाता है लेकिन शिव जी ने शंखचूर का वध किया था इस कारण शंख भगवान शिव की पूजा में वर्जित माना गया.
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